Doctor Missing Even In ICU In Bhagalpur Hospital: बिहार में सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था और डॉक्टरों की सक्रियता राम भरोसे हैं। सरकार के तमाम दावों के बावजूद न तो समय पर सीनियर डॉक्टर मिलते हैं और न ही ढंग से इलाज ही मुहैया होता है। नतीजतन मरीजों की जान खतरे में रहती है। शुक्रवार शाम केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के भाई निर्मल चौबे के निधन से व्यवस्था पर सवाल उठने लगे। उन्हें शाम को अचानक दिल का दौरा पड़ने पर परिजन फौरन भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन आरोप है कि उस समय कोई भी सीनियर डॉक्टर मौजूद नहीं थे। घर वालों का आरोप है कि जूनियर डॉक्टरों को कुछ भी समझ में नहीं आया। आलम यह था कि आईसीयू में भी कोई विशेषज्ञ डॉक्टर उपलब्ध नहीं थे। इससे थोड़ी देर बाद ही उन्होंने दम तोड़ दिया।
अश्विनी चौबे के फोन का भी नहीं पड़ा असर
नाराज परिजन और भाजपा कार्यकर्ताओं ने जमकर विरोध-प्रदर्शन और हंगामा किया। चौबे भारत सरकार के स्वास्थ्य राज्य मंत्री हैं एवं बिहार सरकार के स्वास्थ्य मंत्री रहे हैं। हंगामे के बाद एक्शन में आए अधीक्षक असीम कुमार दास ने दो जूनियर डॉक्टरों का निलंबित कर दिया। भाई की जान बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने स्वयं भागलपुर के कई सीनियर डॉक्टरों और अस्पताल के अधीक्षक को दिल्ली से फोन किया था, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। भागलपुर जेएलएन मेडिकल कालेज अस्पताल से सीनियर रेजिडेंट की बड़ी फ़ौज को 1 सितंबर 2021 को एक आदेश के तहत इस अस्पताल से हटा दिया गया। इसके बाद से अस्पताल की व्यवस्था बिगड़ गई है।
भागलपुर जेएलएन मेडिकल कालेज अस्पताल इलाके का सबसे बड़ा अस्पताल है, मगर गंभीर रोगों के इलाज की यहां कोई इंतजाम नहीं है। दिल का दौरा पड़ने पर एंजियोग्राफी तक की व्यवस्था नहीं है। यहां दूरदराज गांवों के मरीज आते है। वे ठगे से रहते है। इलाज न होने, डॉक्टरों के ड्यूटी से गायब रहने, दवा उपलब्ध न होने की वजह से मरीज बाहर से दवा खरीदने और बाहर से जांच कराने को मजबूर होते हैं। इसकी शिकायतें मिलती रहती है।
निर्मल चौबे करीब 60 वर्ष के थे। उनके परिवार में तीन बेटे हैं। भाजपा जिलाध्यक्ष रोहित पांडेय, कार्यकारी जिलाध्यक्ष सन्तोष कुमार, जिला उपाध्यक्ष डॉ रौशन सिंह समेत तमाम भाजपाइयों ने घटना पर दुख जताया है।