भाजपा ने तीन दिन पहले (गुरुवार 23 मार्च 2023) बिहार समेत चार राज्यों में अपने प्रदेश अध्यक्षों को बदल दिया। इसके पीछे 2024 के लोकसभा चुनाव और संबंधित राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले जातीय समीकरण साधने की वजह होने की चर्चा रही। बिहार में संजय जायसवाल की जगह सम्राट चौधरी को सूबे की कमान सौंपी गई है। ऐसा कहा जा रहा है कि पार्टी जनता दल (यू) के पिछड़े मतदाताओं को अपनी ओर खींचने के लिए सम्राट चौधरी पर भरोसा जताया है।
आठ साल की पारी में प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर तय कर लिए चौधरी
सम्राट चौधरी की राजनीतिक पारी केवल आठ साल की रही है। आठ साल में ही वे प्रदेश अध्यक्ष तक का सफर तय करके पार्टी में अपनी काबिलियत जता दी है। वे न तो आरएसएस बैकग्राउंड के हैं और न ही मूल रूप से भाजपा से ही सियासी सफर शुरू किये हैं। इनके पहले प्रांतीय अध्यक्ष रहे संजय जायसवाल, नित्यानंद राय, मंगल पांडे वगैरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े रहे है। जाहिर है भाजपा का निशाना 2024 लोकसभा और 2025 बिहार विधानसभा चुनाव ही है।
रवींद्र रंजन ने बताया लालू-नीतीश गठजोड़ का कारगर इलाज
भाजपा नेता सह स्वामी सहजानंद किसान वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रवींद्र रंजन का कहना है कि लालू प्रसाद और नीतीश कुमार का कारगर राजनीतिक उपचार सम्राट चौधरी के पास है। ये मुखर और प्रखर नेता है। और इनमें राजनीतिक कौशल है। बिहार के ये भावी भविष्य है। वे इनको लंबी रेस का घोड़ा भी बताते है।
दरअसल भाजपा का शीर्ष नेतृत्व यह मान चुका है कि राजद के माई समीकरण को दरकाना टेढ़ी खीर है। मुस्लिम और यादव राजद के पक्के वोटर हैं। जदयू के जातीय संरचना में सेंध लगाने की कोशिश में भाजपा जुट गई है। इससे पहले आरसीपी सिंह के जरिए कोशिश की गई थी, लेकिन उनसे उतनी कामयाबी नहीं मिली। भाजपा और नीतीश के बीच में आरसीपी ने अपना भविष्य गंवा दिया। ऐसा जानकार बताते है।
असल में सम्राट चौधरी पर भाजपा की नजर उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए से अलग होने के बाद ही लगी थी। नित्यानंद राय के अध्यक्ष रहते इन्हें प्रांतीय उपाध्यक्ष मनोनीत किया गया। संजय जायसवाल के अध्यक्ष के नेतृत्व में इन्हें एमएलसी बनाया। और भाजपा-जदयू सरकार में पंचायती राज मंत्री बनाया। और सरकार से अलग होने पर सम्राट को विधान परिषद में नेता विपक्ष बनाया गया। और अब भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत कर यह साबित कर दिया कि पार्टी पिछड़ों को साधने में जुट गई है। और सम्राट के मार्फ़त अपना भविष्य देख रही है। हालांकि उपेंद्र कुशवाहा के जदयू से अलग होते ही वाई श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराकर पिछड़ा कार्ड को पुख्ता किया है। चिराग पासवान और पशुपतिनाथ पारस भी एनडीए का हिस्सा है। उधर मुकेश साहनी को वाई श्रेणी की सुरक्षा देकर भाजपा ने अपनी ओर खींचने की कोशिश की है।
फिलहाल कुशवाहा मतदाता जदयू के आधार माने जाते है, हालांकि उमेश सिंह कुशवाहा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष है। लव- कुश जदयू के कोर वोटर है। अतिपिछड़ा भी जदयू के साथ माना जाता है। भाजपा के साथ सवर्ण मतदाता माने जाते है। यदि पिछड़े वोटरों में सेंध लगा लेती है तो भाजपा जदयू को आइना दिखा सकती है। यों अबतक तीन लगातार भाजपा अध्यक्ष पद पर पिछड़ी समुदाय के ही नेता मनोनीत हुए है। लेकिन उस वक्त जदयू-भाजपा साथ थी। अबकी तीसरे अध्यक्ष के तौर पर सम्राट चौधरी मनोनीत हुए है। और सत्ता से बिहार में अलग है। इनके सामने कठिन चुनौती है। भाजपा की मनोकामना ये कितना पूरा कर पाते है? यह समय बताएगा।
वैसे सम्राट चौधरी राजनीतिक घराने से ही आते है। इनके पिता शकुनि चौधरी तारापुर से कई दफा विधायक चुने गए। राजद में मंत्री रहे। फिर जदयू में गए। फिर जीतनराम मांझी की हम में रहे। इनकी माता स्व. पार्वती देवी भी तारापुर से विधायक चुनी गई थी। सम्राट खुद राजद में रहे। फिर जदयू में गए। अब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोनीत किए गए है। भाजपा के सत्ता से हटने के बाद इन्होंने अपने माथे पर केसरिया पगड़ी बांध ली है। उन्होंने घोषणा की है कि भाजपा अपने दम पर बिहार में सरकार बनाएगी, तभी पगड़ी खोलेंगे। यह इनका संकल्प है।