अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने तीन लोगों का एक पैनल बनाया है जो राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद की लड़ाई को लेकर मध्यस्थता करेगा। अरसे से चल रही इस समस्या का हल ढूंढने के लिए जिन तीन लोगों के नाम हैं उनमें एक नाम आध्यात्मिक गुरु और आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्रीश्री रविशंकर भी शामिल हैं। ऐसे में उनका 15 महीने पहले दिए गए एक बयान की चर्चा जरूरी है। नवंबर 2017 में अपनी अयोध्या यात्रा के दौरान उन्होंने कहा था, ‘अगर इस मसले का हमेशा के लिए हल ढूंढना है तो दोनों समुदायों के सहयोग से भव्य राम मंदिर बनाना पड़ेगा।’
उस दौरान श्रीश्री ने अपने दौरे की शुरुआत 15 नवंबर को लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात कर की थी। अगले दिन वे अयोध्या गए और राम जन्मभूमि न्यास के प्रमुख नृत्य गोपाल दास, जमीन विवाद मामले में पक्षकार इकबाल अंसारी, निर्मोही अखाड़े के संतों और मामले में याचिकाकर्ता हाजी महबूब से मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने संघ के प्रचारक महिराजद्वाज सिंह, दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास, कई मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधि, निर्मोही अखाड़े के राजा रामचंद्राचार्य और हिंदू महासभा के स्वामी चक्रपाणि से भी मुलाकात की थी।
इन मुलाकातों के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘सौ सालों के बाद कोई एक पक्ष सोच सकता है कि इंसाफ नहीं हुआ था। फिर यही मसला दोबारा सामने आएगा। अगर इसका हमेशा के लिए हल करना है तो एक ही तरीका है। इसके लिए दोनों समुदायों के सहयोग से वहां भव्य राम मंदिर बनना चाहिए। इस सपने को सच किया जा सकता है। देश में दोनों समुदायों के लोगों में सद्भाव, प्यार और भाईचारा है। मोटे तौर पर मुस्लिम भी राम मंदिर का विरोध नहीं कर रहे। मैं खुले दिमाग के साथ इस दौरे पर आया हूं, कोई फॉर्मूला लेकर नहीं। ताकि सभी पक्षों के साथ मंथन किया जा सके। मैं इस उम्मीद के साथ आया था कि बातचीत से समस्या को हल किया जा सके।’
उल्लेखनीय है कि 2017 में उनकी मध्यस्थता की बात नाकाम रही थी। हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने उनका विरोध किया था। विश्व हिंदू परिषद के प्रवक्ता शरद शर्मा ने शुक्रवार को कहा कि उस यात्रा के बाद श्रीश्री ने किसी संत से चर्चा नहीं की। वहीं इकबाल अंसारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि श्रीश्री ने उनसे मुलाकात की थी लेकिन इसके बाद वे कभी नहीं मिले। अंसारी ने कहा कि उन्होंने विवादित जमीन पर मंदिर बनाने और मस्जिद के लिए लखनऊ या कहीं और जमीन देने की बात कही थी जो कि मंजूर करने लायक नहीं है।