दलित ने संभाली देश के राष्ट्रपति की कुर्सी फिर भी नहीं बदली सूरत, सामाजिक बहिष्कार के शिकार 300 से ज्यादा परिवार भूख हड़ताल पर बैठे
कथित तौर पर सामाजिक बहिष्कार का मामला सामने आने के बाद पश्चिमी गोदावरी जिला प्रशासन की ओर से राजू समुदाय के लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।

दलित परिवार में जन्में रामनाथ कोविंद ने देश के 14वें राष्ट्रपति के रूप में मंगलवार को पद की शपथ ली। उनके राष्ट्रपति बनने को लेकर लोगों की आशा थी कि दलितों के प्रति लोगों की मानसिकता बदलेगी और उन पर अत्याचार कम होगा। वहीं, कथित तौर पर सामाजिक भेदभाव को लेकर आंध्र प्रदेश के दलित अनिश्चित कालीन हड़ताल पर बैठे हैं। आंध्र के पश्चिमी गोदावरी जिले के गरागापारु गांव के 300 से ज्यादा दलित परिवारों ने उच्च जाति समुदाय के सदस्यों द्वारा कथित सामाजिक बहिष्कार के विरोध में मंगलवार से अनिश्चितकालीन उपवास पर बैठ गए हैं। जानकारी के मुताबिक यह पूरा विवाद बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति स्थापना को लेकर शुरू हुआ था।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के रूप में मान्यता प्राप्त माला समुदाय से संबंधित परिवारों को कथित तौर पर पिछले तीन महीनों से आंध्र प्रदेश के एक प्रभावशाली समुदाय (राजू) के सदस्यों द्वारा सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक परेशानी उस समय शुरू हुई जब 24 अप्रैल को दलित समुदाय के लोगों ने भीमराव अंबेडकर का पुतला लगाया था। दलित वर्ग के इस कृत्या का उच्च वर्ग के लोगों द्वारा विरोध किया गया था और कुछ अज्ञात लोगों ने कुछ घंटों के भीतर की मूर्ति को हटा दिया था। जिसके बाद दूसरे के खेतों में काम करने वाले भूमिविहीन दलित समुदाय के लोगों ने कथित तौर पर उच्च वर्ग के लोगों के खेतों में काम करने से मना कर दिया था।
कथित तौर पर सामाजिक बहिष्कार का मामला सामने आने के बाद पश्चिमी गोदावरी जिला प्रशासन की ओर से राजू समुदाय के लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। हालांकि उन्हें जमानत मिल गई थी। रिपोर्ट के मुताबिक करीब एक महीने पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य के रामुलु ने 27 जून को गांव का दौरा किया था औप जिला प्रशासन से पूछा था कि उन्होंने गांव में हालात सामान्य करने के लिए क्या कदम उठाए। इसके कुछ दिन बाद वाईएसआर कांग्रेस के अध्यक्ष वाई एस जगन मोहन रेड्डी भी गांव का दौरा करने पहुंचे थे। इसके अलावा राज्य में सत्ताधारी दल तेलुगू देशम पार्टी (TDP) के भी मंत्री इलाके के दौरे के लिए पहुंचे थे। दलितों के सामाजिक बहिष्कार का यह पहला मामला नहीं है। आए दिन इस तरह की घटनाएं सामने आती रहती हैं।
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