खामोशी की गूंज
वसुंधरा राजे ने भाजपा को अपनी शक्ति का अहसास करवा दिया है। पार्टी में बेशक उनका परिचय 2018 का विधानसभा चुनाव हारने के बाद से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का है पर वे खुद इस पद पर कभी भी सक्रिय नहीं दिखी। आलाकमान उनकी लगातार उपेक्षा करता रहा और वे भी खामोशी से सही वक्त का इंतजार करती रहीं। उनकी अनदेखी कर उनके विरोधी विधायक सतीश पूनिया को पार्टी का सूबेदार बनाया गया और कई बार के लोकसभा सदस्य होने के बावजूद उनके बेटे को केंद्र में मंत्री नहीं बनाया गया। लेकिन अब चुनावी वर्ष आया तो वसुंधरा ने अपनी ताकत दिखाने के लिए सक्रियता बढ़ा दी।
आलाकमान को भी अपने आकलन में समझ आ गया कि वसुंधरा की अनदेखी कर सूबे में सत्ता वापस पाना सरल नहीं होगा। तभी तो पिछले साल हैदराबाद में गृहमंत्री अमित शाह ने पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में उनका परिचय राजस्थान की यशस्वी पूर्व मुख्यमंत्री कहकर कराया था। इस साल पार्टी के राजस्थान के बैनर पोस्टरों पर भी वसुंधरा का फोटो नजर आने को भी आलाकमान के रुख में बदलाव के रूप में ही देखा जा रहा है।
हालांकि, अभी तक भी आलाकमान ने यह साफ नहीं किया है कि विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का चेहरा वसुंधरा होंगी। वसुंधरा ने अलबत्ता अपनी ताकत दिखा दी। जन्मदिन तो उनका आठ मार्च को होता है पर इस बार चार मार्च को ही मना लिया। वह भी चुरू जिले के सालासर स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में पूजा-अर्चना से। बाद में एक जनसभा को भी संबोधित किया। उसी दिन पार्टी के सूबेदार सतीश पूनिया ने जयपुर में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर एक प्रदर्शन का आयोजन कर दिया। विधायकों और सभी पार्टी नेताओं को इस प्रदर्शन में शामिल होने का निर्देश भी दिया।
पर, अपने सियासी भविष्य की चिंता में ज्यादातर नेता उस दिन जयपुर के बजाए सालासर पहुंचे। और तो और, पार्टी के सूबे के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह तक आए। कुल मिलाकर 12 सांसद, 52 विधायक और 118 पूर्व विधायक जन्मदिन के फागोत्सव में शामिल हुए। करीब एक लाख लोगों के भोजन का बंदोबस्त किया था महारानी ने। बेचारे पूनिया के निर्देश की परवाह ज्यादातर नेताओं ने की ही नहीं। इस तरह एक ही दिन हुए पार्टी के दो विरोधी खेमों के शक्ति-प्रदर्शन में वसुंधरा की शक्ति का रुतबा भारी पड़ता दिखा।
मंत्री की मनमानी
जननायक जनता पार्टी के कहने को हरियाणा में दस विधायक हैं। सूबे में मनोहर लाल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में जजपा हिस्सेदार भी है। इसके नेता दुष्यंत चौटाला खुद उपमुख्यमंत्री हैं तो उनके विधायक देविंदर बबली मंत्री हैं। पार्टी के विधायकों में अनुशासन कभी दिखा ही नहीं। तभी तो नारनौंद के विधायक रामकुमार गौतम शुरू से ही दुष्यंत के खिलाफ बागी तेवर अपनाए हैं। गौतम ने भाजपा के कद्दावर नेता कैप्टन अभिमन्यु को हराया था।
इस नाते मंत्रिपद का ख्वाब देख रहे थे। पर, दुष्यंत ने भाव नहीं दिया। तभी तो दुष्यंत की तुलना सांप तक से करने में नहीं हिचकिचाए। दुष्यंत की पार्टी के ज्यादातर विधायक भाजपा में शामिल होने को आतुर रहे हैं। पर मनोहर लाल ने गठबंधन धर्म के पालन के कारण जजपा में सेंध नहीं लगाई। दुष्यंत को भी अपनी हैसियत का अंदाज है तभी तो दिल्ली में चले किसान आंदोलन के दौरान खामोश बने रहे। रही देविंदर बबली की बात तो वे भी दुष्यंत की परवाह कहां करते हैं। पिछले दिनों टोहाना नगर परिषद के एक इंजीनियर ने उन पर अपने साथ अभद्र व्यवहार करने और धमकी देने का आरोप लगाया था।
बकौल इंजीनियर पंचायत व विकास मंत्री बबली ने उन्हें अपने निवास पर बुलाकर वहां मौजूद एक ठेकेदार का भुगतान करने को कहा। ठेकेदार का काम खराब होने की बात कह उन्होंने भुगतान में असमर्थता जताई तो उनको अपमानित किया। इससे पहले फतेहाबाद के एक सरपंच ने भी मंत्री के अभद्र व्यवहार की मुख्यमंत्री से शिकायत की थी। पर कोई नतीजा नहीं निकला। देखते हैं ऐसा कब तक चलता है।
पूर्वोत्तर की हर समस्या का उत्तर
हिमंत बिश्वा सरमा भाजपा में नायक बन चुके हैं। पूर्वोत्तर के जिन तीन राज्यों के पिछले दिनों विधानसभा चुनाव हुए, वहां की सरकारों से कांग्रेस का पत्ता साफ करने में अहम भूमिका असम के मुख्यमंत्री सरमा की ही रही। सरमा ने मेघालय में भाजपा को अलग रख सरकार बनवाने के तृणमूल कांग्रेस के नेता अभिषेक बनर्जी के प्रयासों को नाकाम कर दिया। सबसे बड़ी पार्टी के नेता संगमा को इस बात के लिए रजामंद किया कि वे भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाएं। नगालैंड और मेघालय में मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण समारोह में प्रधानमंत्री को बुलवाया।
नगालैंड में सर्वदलीय सरकार का गठन करने में भी अहम भूमिका निभाई और त्रिपुरा में माणिक साहा को ही फिर सरकार की कमान दिलाई। भाजपा आलाकमान केंद्रीय मंत्री प्रतिमा भौमिक को मुख्यमंत्री बनाने के मूड में था। सरमा भाजपा में 2015 में कांग्रेस से इस्तीफा देकर शामिल हुए थे। असम की तीन कांग्रेस सरकारों में वे लगातार मंत्री रहे। पर 2015 में मुख्यमंत्री तरुण गोगोई से नहीं पटी और दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान ने उनकी बात नहीं सुनी तो भाजपा में आ गए।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)