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राजपाट: शह और मात

हरियाणा में एक तरफ दुष्यंत सरकार के मोहपाश को छोड़ने को तैयार नहीं तो दूसरी तरफ उनके चाचा और इनेलोद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर धमाका कर दिया है।

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हरियाणा के डिप्टी चीफ मिनिस्टर दुष्यंत चौटाला और हरिद्वार में लगा कुंभ मेला।

किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की उलझन बढ़ गई है। पर न उगलते बन रहा है और न निगलते। इस चक्कर में भाजपा ने अपने सबसे पुराने और भरोसेमंद साथी शिरोमणी अकाली दल को भी खो दिया। राजस्थान में सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी भी राजग से अलग हो गई। हरियाणा में भी दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी के विधायक किसानों के असंतोष को लेकर डरे हुए हैं। तभी तो दुष्यंत चौटाला दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से मिले। जाहिर है कि उन्होंने किसानों के मुद्दे की गंभीरता को बताया होगा।

एक तरफ दुष्यंत सरकार के मोहपाश को छोड़ने को तैयार नहीं तो दूसरी तरफ उनके चाचा और इनेलोद के विधायक अभय सिंह चौटाला ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर धमाका कर दिया है। वे अब हरियाणा में किसान ट्रैक्टर यात्रा निकालेंगे। ताऊ देवी लाल की विरासत को सहेजने का यह उनका दांव है। हां, दुष्यंत से मुलाकात के बाद अमित शाह की हरियाणा भाजपा को हिदायत काबिले गौर रही। उन्होंने पार्टी के लोगों को समझा दिया कि वे कृषि कानूनों के समर्थन में कोई आयोजन न करें। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने रैली कर ऐसी कोशिश की थी पर किसानों के उग्र विरोध को देखते हुए मैदान छोड़कर भागना पड़ा था।

एक तरफ किसान अड़े हुए हैं और सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में भी उनके वकील नहीं गए। सुप्रीम कोर्ट के कानूनों पर अमल टालने के औपचारिक आदेश से पहले ही किसानों ने खुलासा कर दिया था कि सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की सलाह दे रही है। वह खुद कानूनों पर न तो अमल रोकना चाहती है और न उन्हें रद्द करना। अदालत के फैसले के पीछे सरकार की गुप्त सहमति देखने वालों के अपने तर्क हैं।

नया खिलाड़ी
उत्तर प्रदेश भाजपा में कुछ बड़ा बदलाव होने के संकेत नजर आ रहे हैं। अरविंद कुमार शर्मा ने आइएएस का अपना ग्लैमर युक्त करियर सिर्फ अदना सा एमएलसी बनने के लिए तो दांव पर नहीं लगाया होगा। गुजरात काडर में थे शर्मा। नरेंद्र मोदी के चहेते अफसरों में गिने जाते थे। मूल रूप से यूपी के मऊ जिले के निवासी ठहरे। मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आए तो अरविंद शर्मा को साथ लाए। तूती बोलती थी उनकी। अचानक नौकरी से इस्तीफा दे दिया। अभी तो दस साल की नौकरी बाकी थी। बुधवार को उत्तर प्रदेश भाजपा के मुखिया स्वतंत्र देव सिंह ने उन्हें पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण करा दी।

जाहिर है कि विधान परिषद चुनाव के मद्देनजर तेजी से सारा घटनाक्रम चला। पिछले हफ्ते ही योगी आदित्यनाथ दिल्ली जाकर पहले गृहमंत्री अमित शाह से और फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिले थे। शायद तभी प्रधानमंत्री ने अरविंद शर्मा को लेकर अपनी कार्ययोजना योगी को बताई होगी। पूर्व नौकरशाह के प्रवेश ने उत्तर प्रदेश में भाजपा के धुरंधरों की सिट्टी पिट्टी गुम कर दी है। उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने से लेकर अहम मंत्री पद मिलने की बात हो रही। मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री के साथ कामकाज देखने के कारण प्रशासनिक क्षमता और सरकारी तंत्र की समझ तो शर्मा को बेशक बेहतर ही होगी। रही बात राजनीतिक धरातल की तो उत्तर प्रदेश में भाजपा के चारों बड़े नेताओं में एक भी तो विधानसभा का सदस्य नहीं है।

खुद योगी हों या उनके दोनों उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और केशव मौर्य, सभी विधान परिषद के सदस्य ठहरे। पार्टी के सूबेदार स्वतंत्र देव सिंह भी इसी सदन के सदस्य हैं। तो शर्मा पर ही कौन सवाल उठा सकता है। बस देखना यह होगा कि वे उप मुख्यमंत्री बनेंगे तो क्या उत्तर प्रदेश में अब तीन उप मुख्यमंत्री हो जाएंगे। या फिर केशव मौर्य और दिनेश शर्मा में से किसी की छुट्टी होगी। मौर्य ठहरे पिछड़े तबके के नेता और शाह के करीबी। पर योगी आदित्यनाथ से नहीं बनती। एक बार इस्तीफे की धमकी भी दे डाली थी। अगर मौर्य को हटाया तो दोनों उप मुख्यमंत्री ब्राह्मण हो जाएंगे जो भाजपा के सामाजिक समरसता के फार्मूले को बिगाड़ सकता है।

रंग संतों का
मकर संक्रांति के साथ ही हरिद्वार में कुंभ की शुरुआत हो गई। अखाड़ों की अपनी राजनीति होती है। आचार्य, महामंडलेश्वर और महंत कुंभ पर्व के दौरान ही बनाए जाते हैं। इस बार श्री निरंजनी पंचायती अखाड़ा सबसे ज्यादा चर्चा में है। इस अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर के पद पर अभी तक कांग्रेस समर्थित शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी प्रज्ञानानंद नियुक्त थे। पर वे महामंडलेश्वर होते हुए अखाड़े के भगवान कार्तिकेय को न मत्था टेकने आए और न महंतों से संपर्क किया। सो अखाड़े के सचिव महंत नरेंद्र गिरी और महंत रविंद्र पुरी की जोड़ी ने पासा ऐसा पलटा कि प्रज्ञानानंद आचार्य महामंडलेश्वर पद से वंचित हुए ही, अखाड़े से भी बाहर हुए। यह पद स्वामी कैलाशानंद को मिला।

दिलाने में भूमिका निभाई नरेंद्र गिरी, रविंद्र पुरी, और उत्तराखंड सरकार के मंत्री मदन कौशिक ने। कैलाशानंद गिरी के शिवपाल यादव से भी करीबी रिश्ते ठहरे। ब्रह्मचारी से संन्यासी की दीक्षा उन्हें दी है जगदगुरू शंकराचार्य स्वामी राजराजेश्वराश्रम महाराज ने। पट्टाभिषेक समारोह का भी खासा आकर्षण रहा। साधु-संतों के अलावा सूबे की राज्यपाल बेबी रानी मौर्य भी पहुंचीं। (प्रस्तुति: अनिल बंसल)

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First published on: 16-01-2021 at 00:33 IST
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