कभी राष्ट्रीय स्तर की मान्यता प्राप्त पार्टी रही बसपा के सांसदों में इन दिनों बेचैनी है। बेचैनी अपने सियासी भविष्य को लेकर तो है ही, पार्टी की सुप्रीमो और देश के सबसे बड़े सूबे की चार बार मुख्यमंत्री रहने का कीर्तिमान बना चुकी मायावती की निष्क्रियता को लेकर भी है। उत्तर प्रदेश में 2017 से सत्ता में तो भाजपा है पर मायावती के निशाने पर 2019 के बाद से सपा और कांग्रेस ही रही हैं। बसपा का 2014 के लोकसभा चुनाव में खाता भी नहीं खुल पाया था। जबकि 2019 में सपा से तालमेल के कारण पार्टी दस सीटों पर जीत गई थी। इसके बावजूद मायावती ने चुनाव नतीजों के कुछ दिन बाद ही सपा से गठबंधन तोड़ लिया था। वजह उन्होंने तो नहीं बताई थी पर उनकी पार्टी के ही सूत्रों ने केंद्रीय एजंसियों का दबाव कहा था।
पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें महज 12.8 फीसद वोट और एक सीट ही मिल पाई। वे अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का एलान कर चुकी हैं। पहली बार ऐसी नौबत आई है कि मायावती किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं। उनके दस लोकसभा सदस्यों में तीन मुसलमान हैं। बसपा को डर सता रहा है कि मुसलमान वोट उससे छिटक चुके हैं। जौनपुर के बसपा सांसद श्याम सिंह यादव तो भाजपा और सपा दोनों के ही संपर्क में बताए जा रहे हैं। चुनाव में अब एक साल का ही वक्त बचा है पर बहिनजी कतई फिक्रमंद नहीं दिख रही।
चार राज्यों में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बदलाव की बानगी
भाजपा ने उन चार राज्यों में प्रदेश अध्यक्ष बदले, जहां उसकी सरकार नहीं है। सबसे मजेदार है बिहार में किया गया बदलाव। यहां सम्राट चौधरी के नाम से चर्चित राकेश चौधरी को कमान मिली है। चौधरी न तो संघी अतीत वाले हैं और न पुराने भाजपाई। समता पार्टी, राजद और जद (एकी) तीनों में रह चुके हैं। भाजपा में तो वे 2014 में राजद छोड़कर आए थे। आखिर, यह पुरानी नहीं नई भाजपा ठहरी। चाल, चरित्र, चेहरा और अतीत तो पुरानी भाजपा के पैमाने थे। नई भाजपा के लिए इनकी अहमियत जुमलों से ज्यादा कुछ नहीं। सम्राट चौधरी के पिता शकुनि चौधरी बिहार के कद्दावर कुशवाहा नेता थे। वे लंबे समय तक जार्ज फर्नांडिज की समता पार्टी में रहे। समाजवादी के नाते वंशवादी राजनीति का विरोध करते रहे पर 1998 में उनकी पत्नी पार्वती को जार्ज ने तारापुर से विधानसभा टिकट नहीं दिया तो उन्होंने पत्नी को निर्दलीय ही चुनाव लड़ा दिया। वे जीत भी गईं।
राबड़ी देवी तब सूबे की मुख्यमंत्री थीं। बहुमत के लिए विधायकों की जरूरत पड़ी तो लालू ने शकुनि चौधरी को पेशकश कर दी कि पार्वती समर्थन दें तो उन्हें मंत्रिपद मिल जाएगा। शकुनि ने सहमति इस शर्त पर दी कि मंत्रिपद उनके बेटे सम्राट चौधरी को देना होगा। सम्राट किसी सदन का सदस्य न होते हुए भी 19 मई 1999 को बिहार सरकार के मंत्री बन गए। पर, सदन का सदस्य हुए बिना छह महीने ही रह सकते थे मंत्री। मंत्री थे तो भाजपा ने राज्यपाल से शिकायत कर दी कि वे नाबालिग हैं। बतौर सबूत उनका 1995 का एक हलफनामा पेश कर दिया जिसमें उन्होंने खुद को हत्या के एक मामले से बचाने के लिए तब नाबालिग बताया था। इस नाते मंत्रिपद की शपथ के वक्त वे 25 वर्ष के हो ही नहीं सकते थे। सम्राट ने अपनी जन्मतिथि 16 नवंबर 1968 बताई।
तब के राज्यपाल सूरज भान ने उनकी सफाई ठुकराते हुए उनके हलफनामे पर भरोसा किया और कार्यकाल समाप्त होने से तीन दिन पहले ही उन्हें मंत्रिपद से बर्खास्त कर दिया। जिस दिन वे अपना 31वां जन्मदिन मना रहे थे। जन्मतिथि के विवाद में ही सुप्रीम कोर्ट ने 2003 में भी एक निर्दलीय की चुनाव याचिका पर उनकी विधानसभा सदस्यता खत्म कर दी थी। उनके विरोधी ने बताया था कि उनकी तीन जन्मतिथि हैं। मतदाता सूची के हिसाब से 1999 में वे 32 के थे। जबकि जन्मप्रमाण-पत्र के हिसाब से 34 के और शपथ-पत्र के हिसाब से 23 के। भाजपा ने उन्हें न केवल एमएलसी बनाया बल्कि सूबे का उपाध्यक्ष भी बना रखा था। उनके बड़े भाई रोहित चौधरी दो साल पहले जद (एकी) में शामिल हुए थे।
उत्तराखंड: पुष्कर सिंह धामी के दो साल, हिंदुत्व के साथ
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने 23 मार्च को मुख्यमंत्री के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल को पूरा किया। इस अवसर पर हुए मुख्य आयोजन में धामी ने कहा कि उत्तराखंड राज्य अटल जी ने बनाया है और हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तराखंड को सजा रहे हैं, संवार रहे हैं। धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री को उत्तराखंड से बेहद लगाव है और उत्तराखंड उनकी कर्म और तपस्थली दोनों रही है। धामी ने उत्तराखंड को 2025 तक आत्मनिर्भर उत्तराखंड बनाने का अपना संकल्प दोहराया और धामी ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी से अपनी पिच तैयार कर ली और इस साल जुलाई में समान नागरिक संहिता बिल को लागू करने का एलान किया।
चैत्र नवरात्र में सार्वजनिक छुट्टी करके और महिलाओं को नियुक्ति पत्र देने तथा पूरे राज्य में चैत्र नवरात्रि पर देवी के मंदिरों में सरकारी खर्चे पर पूजा करने का एलान करके हिंदू पत्ते का दांव खेला। उत्तराखंड के सभी 13 जिलों के जिलाधिकारियों को एक-एक लाख रुपए चैत्र नवरात्र में पूजा अर्चना के लिए दिए गए और पहली बार उत्तराखंड में चैत्र नवरात्र में सरकारी खर्चे पर देवी के मंदिरों में पूजा अर्चना की जा रही है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)