प्रधानमंत्री अपने बिहारी मोदी से खुश हैं
प्रधानमंत्री अपने बिहारी मोदी से खुश हैं। फिर किसकी मजाल कि वह बिहारी मोदी का विरोध करे।

चतुर खिलाड़ी
सुशील मोदी बखूबी जानते हैं कि एक साधे सब मिले, सब साधे मिले न कोऊ। नीतीश कुमार को पहले भी साध रखा था। फिर साध लिया। पहले तो उनकी पार्टी के नेता तक उन्हें नीतीश की छाया बता कर उनकी खिल्ली उड़ाने लगे थे। पीठ पीछे उन्हें फिर उसी पुराने संबोधन से पुकार रहे हैं। हां, अब पहले की तरह किसी की चख-चख करने की मजाल नहीं। सुशील मोदी की क्षमता तो देख ही ली उनकी पार्टी के आला नेतृत्व ने। बिना किसी हो-हल्ले के भाजपा फिर बिहार की सत्ता में आ गई। हां, बिहार के मोदी ने जो भी किया, वह देश के मोदी को विश्वास में लेकर ही किया।
जाहिर है कि प्रधानमंत्री अपने बिहारी मोदी से खुश हैं। फिर किसकी मजाल कि वह बिहारी मोदी का विरोध करे। ऊपर से अपनी पार्टी के जिन नेताओं को सरकार में मंत्री पद दिलाया है, वे भी तो मुरीद हो गए। उनमें कुछ पहले विरोध भी करते रहे होंगे। पर अब तो सुशील मोदी ही हैं उनके भी नेता। बिहारी बाबू यानी शत्रुघ्न सिन्हा और भूमिहार नेता सीपी ठाकुर जैसे परम असंतुष्ट भी फिलहाल चुप्पी साधे हैं। सुशील मोदी चाहे जैसे हों पर उनकी वजह से पार्टी तो फिर सत्ता में हिस्सेदारी पा ही गई। नीतीश की छाया का छद्म फलीभूत हुआ है।
कुनबे की कलह
उत्तराखंड की भाजपाई गुटबाजी खत्म नहीं हो पा रही। रमेश पोखरियाल निशंक को पिछले विस्तार में मंत्री पद पाने की आस थी। पर प्रधानमंत्री ने निराश ही रखा उन्हें। मंत्री पद नहीं मिलने से बेचारे उतने परेशान नहीं हैं जितने हरिद्वार की स्थानीय सियासत के अपने प्रतिद्वंद्वी मदन कौशिक खेमे के इस प्रचार से कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नाम कटवा दिया निशंक का। भले उत्तराखंड से पांचों सांसद भाजपा के हैं पर न तो वहां कोई चुनाव नजदीक है और न ही यह सूबा पूरी तरह उपेक्षित है। दलित अजय टमटा को पहले ही राज्यमंत्री बना रखा है मोदी ने अपनी सरकार में। कैबिनेट मंत्री तो राजस्थान जैसे 25 सांसद देने वाले सूबे का भी कोई नहीं है केंद्र की भाजपा सरकार में।
जहां तक मदन कौशिक का सवाल है, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से उनकी निकटता जगजाहिर है। राजपूत मुख्यमंत्री को सियासी समीकरण के लिए एक ब्राह्मण नेता भी तो चाहिए। खंडूड़ी और निशंक से तो छत्तीस का आंकड़ा है ही। रही मदन कौशिक की बात तो स्वामी यतीश्वरानंद भी कम त्रस्त नहीं हैं उनसे। पिछले मुख्यमंत्री हरीश रावत को धूल चटाई थी उन्होंने चुनाव में। मंत्री पद पाने की उनकी हसरत पूरी नहीं हो पाने के पीछे भी खुद को ही श्रेय देते रहे है।
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