जनसत्ता: सियासी तीरंदाजी, शर्म न हया
सत्तारूढ़ अकाली दल के खेमे में खलबली मचा दी है पंजाब कांग्रेस के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह ने।

सियासी तीरंदाजी
सत्तारूढ़ अकाली दल के खेमे में खलबली मचा दी है पंजाब कांग्रेस के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह ने। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र लंबी में चुनौती देंगे कैप्टन। हालांकि अपने गढ़ पटियाला से भी लड़ेंगे वे विधानसभा चुनाव। साफ है कि मंशा दो सीटों से लड़ने की है उनकी। यों अंतिम फैसला पार्टी आलाकमान पर ही छोड़ रखा है। पिछले 27 साल से लगातार विधानसभा चुनाव जीत रहे हैं बादल। पर इस बार जोखिम को नकारा नहीं जा सकता। न पार्टी की हालत अच्छी है और न कहीं से भी उनकी सरकार के कामकाज से लोगों के संतुष्ट होने की खबरें मिल रही हैं। अलबत्ता बादल परिवार के प्रति आक्रोश जरूर दिख रहा है हर तरफ। कैप्टन ने उनसे भिड़ने का एलान रणनीति के तहत किया है। दोनों कद्दावर नेताओं में जंग होगी तो अपने ही विधानसभा क्षेत्र में फंस कर रह जाएंगे बादल।
ऊपर से अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को बादल से भिड़ाने के पीछे लोगों में यह संदेश देना भी मंशा होगी कि कांग्रेस आगे है। वैसे भी दूसरी पार्टियों से नेता कांग्रेस में ही ज्यादा आए हैं। जैसे मान रहे हों कि सत्ता में यही पार्टी आएगी। कांग्रेस में न केवल पिता को बल्कि बेटे को भी घेरने की रणनीति पर विचार हो रहा है। रविवार को पार्टी में शामिल हुए पूर्व भाजपा सांसद नवजोत सिद्धू को सुखबीर बादल के खिलाफ जलालाबाद से उतार सकती है कांग्रेस। इसके लिए कैप्टन की तरह सिद्धू को भी एक और सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ाया जा सकता है। ऐसा हुआ तो बाप-बेटे दोनों को दिग्गजों से लोहा लेना पड़ेगा। जबकि अतीत में कभी ऐसी कांटे की लड़ाई की नौबत आई ही नहीं। पाठकों को बता दें कि इस रणनीति के पीछे पीके यानी प्रशांत किशोर का दिमाग बताया जाता है।
शर्म न हया
अनिल विज विधानसभा चुनाव के वक्त हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार विधायक बने संघी प्रचारक मनोहर लाल के सिर पर रख दिया ताज। तभी से नाराज चल रहे हैं विज अपनी पार्टी के आलाकमान से। उनके ऊटपटांग बयानों से विवाद भी कम नहीं हुए। हालांकि नाराजगी उन्होंने दबे ढंके अंदाज ेमें ही जताई। पर इस बार जुबान ज्यादा ही फिसल गई। खादी ग्रामोद्योग आयोग के सालाना कैलेंडर पर महात्मा गांधी के बजाए चरखा कातते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर छपने से उठे विवाद में टांग फंसा दी। फरमाया कि महात्मा गांधी की तस्वीर छापने से खादी का तो कोई भला हुआ नहीं। सो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बेहतर ब्रांड एंबेसडर हो नहीं सकते महात्मा गांधी।
नोट पर उनकी तस्वीर छापने का भी नुकसान ही हुआ। भारतीय मुद्रा का लगातार अवमूल्यन होता गया। लिहाजा धीरे-धीरे नोट से भी हटाई जाएगी गांधी की तस्वीर। इस बीच भाजपा में एक तबका मोदी के प्रति अगाध भक्तिभाव दिखाने के चक्कर में इस कैलेंडर को हर सरकारी दफ्तर में टांगने की वकालत कर रहा है। शायद इसी तबके को खुश करने के चक्कर में ट्विट कर बैठे विज। गनीमत है कि उनके विवादास्पद बयान को लेकर सारे देश में हंगामा मच गया तो उसे वापस लेने में भी देर नहीं लगाई विज ने। अलबत्ता बड़बोले विज अहंकार वश यह भी बोल गए कि खादी पर गांधी के नाम का कोई पेटेंट तो है नहीं।