क्या भारतीय जनता पार्टी और संघ के बीच मतभेद बढ़े हैं? हाल की दो घटनाओं ने इस अटकल को बल दिया है। उत्तर प्रदेश में पार्टी के महासचिव (संगठन) सुनील बंसल को जेपी नड्डा ने दिल्ली बुलाकर अपनी टीम में राष्ट्रीय महासचिव बना दिया। उन्हें पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और ओडिशा का प्रभार भी सौंपा है।
तीनों ही विपक्ष की सरकारों वाले सूबे ठहरे। बंसल मूल भाजपाई नहीं हैं। संघ के पूर्णकालिक प्रचारक के नाते वे भाजपा में डेपुटेशन पर थे। भाजपा में प्रांतीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय तीनों स्तरों पर आमतौर पर महासचिव (संगठन) आरएसएस के पूर्णकालिक प्रचारक के लिए आरक्षित पद हैं। लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर इस पद पर पहले से ही कर्नाटक के बीएल संतोष तैनात हैं।
इस नाते बंसल को अब भाजपा के नए दायित्व के निर्वाह के लिए संघ के प्रचारक पद से मुक्त होना पड़ेगा। वे पिछले आठ साल से उत्तर प्रदेश में कार्यरत थे। यहां मुख्यमंत्री से उनके मतभेद की खबरें भी खूब छाई रही। उन्हें सत्ता के समानांतर केंद्र के रूप में भी देखा जाने लगा था।
दूसरा फैसला केंद्रीय संसदीय बोर्ड और केंद्रीय चुनाव समिति के पुनर्गठन का है। शिवराज चौहान और नितिन गडकरी की संगठन की इन सर्वोच्च समितियों से छुट्टी किए जाने पर हर कोई हैरान है। गडकरी तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं। संसदीय बोर्ड में अभी तक सभी पूर्व अध्यक्षों के लिए जगह तय रहती थी। वैसे भी गडकरी एक तो संघ प्रमुख के करीबी माने जाते हैं। दूसरे उन्हें मोदी सरकार का सबसे कर्मठ मंत्री विरोधी दलों के नेता तक बताते रहे हैं।
संसदीय बोर्ड में कई ऐसे नए सदस्य शामिल किए गए हैं, जिनकी अभी तक संगठन स्तर पर कोई बड़ी पहचान नहीं रही। गडकरी ने अभी तक बगावत का कोई तेवर तो नहीं दिखाया है। इन फैसलों से कई संदेश गए हैं। यह सही नहीं है कि 75 पार के लोगों के लिए केवल मार्गदर्शक मंडल में जगह है। 76 की उम्र में येदियुरप्पा को कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनाया गया।
अब मार्गदर्शक मंडल की उम्र में ही आडवाणी और जोशी के लिए तो संसदीय बोर्ड का दरवाजा बंद है पर येदियुरप्पा के लिए खोला गया है। वे अपने दोनों बेटों के सियासी करिअर के लिए भी आलाकमान पर दबाव बनाए हैं। वंशवाद का विरोध करने वाली पार्टी येदियुरप्पा के वजूद से डरी हुई है।
चहका कुनबा
हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग के नव नियुक्त अध्यक्ष व सदस्यों के शपथ ग्रहण के रुक जाने की गूंज प्रदेश में ही नहीं दिल्ली तक भी पहुंच गई है। सबसे ज्यादा कुनबा अगर कोई चहका है तो वह है प्रदेश भाजपा का।
हालांकि प्रदेश कांगेस भी इस घटनाक्रम के मजे ले रही है। कांग्रेसियों का कहना है कि इस घटनाक्रम ने राजभवन व आयोग की गरिमा को भी तार-तार कर दिया है। अब चुनावों में सब कुछ बाहर तो आएगा ही। इन सदस्यों में एक सदस्य की चाहत आगामी दिनों में अर्की विधानसभा चुनाव लड़ने की भी थी। इसके लिए कोशिशें भी की जाती रही थीं। लेकिन टिकट मिल ही जाएगा यह पक्का नहीं था।
ऐसे में आयोग में पांव पक्के करने का काम भी साथ ही चल रहा था। लेकिन अब शपथ ग्रहण ही रुक गया तो समझा जा रहा है कि कहीं कुछ रुक गया है। लेकिन नेताओं की जमात है कि अपना रंग दिखा ही देती है। जैसे ही शपथ ग्रहण समारोह रुका भाजपा के कुछ लोगों ने इस मामले से जुड़ी तमाम खबरें अर्की विधानसभा हलके में बनाए गए विभिन्न वाटसऐप समूहों में भेजनी शुरू कर दी। पड़ताल में पता चला कि यह सब सुनियोजित तरीके से किया गया है।
अर्की में भाजपा पूरी तरह से बिखरी हुई है। ऐसे में एक सदस्य की अर्की में हाथ पांव मारने की कोशिश थी। भाजपा के भीतर कुछ समूह यह सब भांप ही रहे थे। उन्होंने मौका देखा और चुनावों से पहले ही अर्की की जनता को अपने तरीके से जागरूक करने का अभियान चला दिया। जब प्रत्याशी के लिए सर्वे होगा तो पहले किया गया काम ही तो नतीजे देगा।
दाग से बेपरवाह
नीतीश कुमार की घेरेबंदी जारी है। मंत्रियों के चयन को लेकर विपक्ष के हमलों की बात तो समझ आती है पर अपने ही विधायक भी सवाल करें तो चिंता स्वाभाविक है। सवाल उठ रहा है कि मंत्रियों में सत्तर फीसद के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।
नीतीश का विरोधियों को जवाब देने का अपना ही अंदाज है। ज्यादा नहीं बोलते। संकेतों में बात करते हैं। उनके सामने सवाल अपना और अपनी पार्टी का वजूद बचाने का था। आरसीपी सिंह जिस तरह का चक्रव्यूह रच रहे थे, उसे नीतीश वक्त रहते भांप गए। उन्हें राज्यसभा के लिए तीसरी बार मौका नहीं देकर ऐसा झटका दे दिया कि अर्श से फर्श पर आ गए। पहले बयान दिया था कि अपनी अलग पार्टी बनाएंगे। लेकिन भाजपा और जद (एकी) का गठबंधन टूट जाने के बाद संकेत भाजपा में जाने के दिख रहे हैं।
जहां तक दागी छवि के लोगों को मंत्री बनाने पर चौतरफा हमलों का सवाल है, दागी किस पार्टी और सरकार में नहीं हैं। गुजरात की सरकार ने बलात्कार और हत्या के आरोपियों को वक्त से पहले जेल से रिहा करके विपक्ष को बड़ा मुद्दा दे दिया है।
वहीं शाहनवाज हुसैन पर दिल्ली हाई कोर्ट ने बलात्कार का मामला दर्ज करने का निर्देश देकर भाजपा को औरों पर हमला करने से पहले अपने गिरेबां में झांकने की नसीहत दी है। छवि बेदाग होना अब सियासी दलों का पैमाना बचा कहां है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)