राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन आ सकते हैं। सचिन पायलट और अशोक गहलोत की जुबानी जंग तो पहले से ही जारी थी, अब पायलट ने अपने चुनावी दौरे भी तेज कर दिए हैं। किसान सम्मेलन के नाम पर वे खुद को उसी रूप में पेश कर रहे हैं जैसा 2018 में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते किया था।
चर्चा है कि भाजपा विधानसभा चुनाव से पहले अशोक गहलोत की सरकार को गिरा सकती है। उनके पांच मंत्रियों और कुछ विधायकों के भाजपा नेतृत्व के संपर्क में होने की खबरों से यह संभावना तेज हुई है। भाजपा अब जोड़-तोड़ से अपनी सरकार बनाने के बजाए राष्ट्रपति शासन में चुनाव कराने की रणनीति बुन रही है। सूबे में हर चुनाव में सरकारें बदलने की परंपरा रही है। हिमाचल प्रदेश की तरह। इस नाते भाजपा मानकर चल रही है कि चुनाव बाद सरकार उसी की बनेगी। इससे सचिन पायलट की बेचैनी और बढ़ी है।
आलाकमान ने तो उन्हें 2018 में ही मुख्यमंत्री बनाने का भरोसा दे रखा था। पर, अशोक गहलोत की हेकड़ी ने पानी फेर दिया। उन्हें उप-मुख्यमंत्री का पद पाकर ही संतोष करना पड़ा। पार्टी के सूबेदार भी वे थे ही। लेकिन, 2020 की उनकी बगावत ने उन्हें फायदे की जगह नुकसान पहुंचाया। उप मुख्यमंत्री और पार्टी अध्यक्ष दोनों पद जाते रहे। तभी से वे खुद को हाशिए पर पा रहे हैं।
मुख्यमंत्री उनके बारे में अभद्र टिप्पणी तक कर रहे हैं। नाम लिए बिना संकेतों में पिछले दिनों उन्हें कोरोना बताया था। पायलट अब अपने किसान सम्मेलनों में खुलकर कह रहे हैं कि बुजुर्गों को युवा पीढ़ी के बारे में सोचना चाहिए। युवाओं को न्याय मिलना चाहिए। पर, गहलोत कम से कम पायलट के लिए पद छोड़ने को तैयार नहीं। पिछले दिनों इस तरह की कोशिश हुई तो उन्होंने आलाकमान के खिलाफ ही बगावत कर दी थी।
पार्टी का नुकसान न हो, इस भय से आलाकमान उन्हें छेड़ नहीं रहा। पर, सचिन पायलट भी तो यही पूछ रहे हैं कि बकरे की मां कब तक खैर मनाए। इसी हफ्ते टोंक के एक कार्यक्रम में उनके समर्थकों ने जब उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के नारे लगाए तो पायलट ने भी कहा कि जनता की आवाज सुननी होगी।
चर्चा है कि सचिन पायलट जल्द ही कांग्रेस छोड़कर अपनी क्षेत्रीय पार्टी बना सकते हैं। उनके पास मुख्यमंत्री पद की हसरत पूरी करने का और कोई विकल्प है भी नहीं। भाजपा उन्हें यह पद देने से रही। चुनाव बाद अगर विधानसभा त्रिशंकु हुई तो जरूर वे उसी तरह मुख्यमंत्री पद की सौदेबाजी कर पाएंगे जैसी कर्नाटक में कांग्रेस से एचडी कुमारस्वामी ने की थी।
विघ्नसंतोषी
उपेंद्र कुशवाहा विघ्नसंतोषी लगते हैं। नजरिया भी अतिवादी दिखता है। समर्थन करते हैं तो पूरे भक्तिभाव से और चिढ़ जाएं तो जड़ें खोदने पर आमादा हो जाते हैं। बिहार की सियासत में बड़ा वजूद नहीं बना पाए बेचारे। बेशक पिछड़े तबके के नेता की छवि रही। नीतीश और उपेंद्र को कभी क्रमश: कुर्मी और काछी समुदाय के कद्दावर नेता के तौर पर देखा जाता था।
लालू यादव जब सूबे में पिछड़े तबके के सबसे बड़े नेता की छवि बना चुके थे तब सियासी पंडित यही कहते थे कि नीतीश-उपेंद्र की जोड़ी से वे घबराते हैं। आजकल नीतीश कुमार के साथ उनका चूहे-बिल्ली वाला खेल चल रहा है। नीतीश के खिलाफ खुली बगावत पर उतारू हैं। नीतीश ने उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड का मुखिया बना रखा है। विधान परिषद का सदस्य तो खैर शुरू में ही बना दिया था। पर उपेंद्र कुशवाहा की महत्वाकांक्षा उप-मुख्यमंत्री नहीं तो कम से कम काबीना मंत्री बनने की जरूर रही होगी। तभी तो आजकल असंतुष्ट हैं।
नीतीश उन्हें खुद पार्टी से निकालना नहीं चाहते पर छूट जरूर दे चुके हैं कि जहां जाना हो, चले जाएं। कुशवाहा खुद छोड़ने के मूड में नहीं क्योंकि आगे कोई राह दिख नहीं रही। नीतीश तो अपने मिजाज के नेता ठहरे। शरद यादव, जीतनराम मांझी, आरसीपी सिंह और प्रशांत किशोर के साथ छोड़ जाने से विचलित नहीं हुए तो जनाधार गंवा चुके उपेंद्र कुशवाहा की मनुहार भला क्यों करेंगे?
पठान तो नहीं, बयान पर प्रतिबंध
नरोत्तम मिश्र के सुर एकदम बदल गए। प्रधानमंत्री ने भाजपा कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के उन बड़बोले नेताओं को फटकार लगाई थी जिन्हें सुर्खियों में रहने और प्रचार के लिए कोई भी हथकंडा अपनाने की लत है। लगे हाथ नसीहत भी दी थी कि कुछ लोगों का अकारण किसी का विरोध करना या बयानबाजी करना पार्टी के करे-धरे पर पानी फेरता है।
नाम नहीं लिया था किसी का। पर इशारा मध्यप्रदेश के गृहमंत्री की तरफ ही था। नरोत्तम मिश्र ने सबसे पहले फरमाया था कि शाहरुख खान की फिल्म पठान पर वे मध्यप्रदेश में प्रतिबंध लगाएंगे। ‘बेशर्म रंग’ गाने में दीपिका पादुकोण के केसरिया परिधान पहनने पर उन्हें सख्त एतराज जो था।
अब फिल्म प्रदर्शित हो गई तो सफाई दे रहे हैं कि विरोध का अब कोई औचित्य ही नहीं रहा जब फिल्म सेंसर बोर्ड ने फिल्म को मंजूरी दे दी है। कहां तो सपना देख रहे थे मुख्यमंत्री पद का। सोच रहे थे कि शिवराज चौहान की छुट्टी हो तो उन्हें मौका मिले और कहां अब मंत्री के पद तक पर संकट के बादल मंडराते नजर आने लगे हैं। पठान पर तो नहीं हां, बयान पर प्रतिबंध जरूर लग गया। (संकलन : मृणाल वल्लरी)