अटल आख्यान
केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में बातचीत के दौरान उस समय को याद किया जब संसद में बहस और विपक्ष दोनों का मान होता था। पटेल राहुल गांधी के भाषण और संसद से उनके निलंबन के सवालों पर बात कर रहे थे। प्रहलाद सिंह पटेल ने कहा कि मैं अपने सार्वजनिक जीवन की प्रेरणा अटल जी के समय से लेता हूं। संसद की किसी बहस में कोई भाषण कितना महान है, यह उसे देनेवाला नहीं तय कर सकता है। संसदीय परंपरा में विरोधियों के भाषण पर मेजें थपथपाने का लंबा इतिहास रहा है। पटेल ने विपक्ष के रिश्ते को वामपंथी नेता सोमनाथ चटर्जी और अटल जी के उदाहरण से समझाते हुए कहा-अटल जी कहते थे कि हमें हर जनप्रतिनिधि को सुनना चाहिए। कोई भी दस लाख मतदाताओं के बीच से चुनकर आता है। उसमें कोई बात होगी तभी सदन में आया है। मैं ईयरफोन लगा कर सुन रहा था।
सोम दा बोले- तुमने आज बहुत बेइज्जत करवाया
अटल जी ने जो बात हिंदी में कही सोमनाथ दा उसे सुन नहीं पाए। उन्होंने वही बात अंग्रेजी में कहते हुए अटल जी की आलोचना शुरू कर दी। प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि मैं खड़ा होकर बोला-दादा जो बात आपने अंग्रेजी में कही वही बात अटल जी ने हिंदी में कही तो झगड़ा कहां है? कार्यवाही खत्म होने के बाद गलियारे में आए तो सोमनाथ दा ने मुझसे कहा, चलो तुम्हें कॉफी पिलाते हैं। लेकिन, तुमने आज बहुत बेइज्जत करवाया। तुम इतने ध्यान से सुनते हो। पता नहीं कैसे गड़बड़ हुई कि मैं अटल जी की बात पूरी सुन नहीं पाया। उन्होंने कहा कि यही भरोसा संसद की ताकत होती है। ये जो चीजें होती हैं ये है ताकत संसद की। संसद में यह मायने नहीं रखता कि आप आगे बैठे हैं, पीछे बैठे हैं या आपका राजनीतिक कद कितना बड़ा है। सदन का और आसन का ध्यान आकर्षित करने का सामर्थ्य आपके भीतर होना चाहिए। जो सदन का ध्यान न खींच पाए और बाहर बहस का केंद्र बन जाए, उसे मैं संसदीय जीवन की सफलता नहीं मानता।
दक्षिण की दृष्टि
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष एकजुट होने को लेकर थोड़ा गंभीर दिख रहा है। दक्षिण के नेता भी विपक्षी एकता को लेकर सक्रिय हुए हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसी मकसद से सामाजिक न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाने के मुद्दे पर चेन्नई में तीन अप्रैल को रैली का आयोजन किया है। इसमें सभी गैर राजग दलों को आमंत्रित किया गया है। तमिलनाडु में भाजपा को पांव जमाने में मुश्किल हो रही है। अन्ना द्रमुक का लगातार बिखराव हुआ है। पिछले लोकसभा चुनाव में राजग के विजय रथ को केरल और तमिलनाडु ने ही रोका था। स्टालिन का दावा है कि उनकी इस रैली में चौदह दलों के नेता भाग लेंगे। ये दल तो केंद्रीय जांच एजंसियों की भूमिका को लेकर पहले भी सुप्रीम कोर्ट में साझा याचिका दायर कर अपनी एकता का सबूत दे चुके हैं। सभी मान रहे कि 2024 में भाजपा को नहीं रोक पाए तो फिर उनका अपना वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा। लेकिन, सबके अपने विरोधाभास इस राह में रोड़ा बने हैं।
मसलन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तेलंगाना में केसीआर, दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को चुनाव से पहले कांग्रेस से हाथ मिलाना अभी घाटे का सौदा लग रहा है। चेन्नई की रैली को लेकर एक नई बात उभरी है। द्रमुक सूत्रों का दावा है कि विपक्षी एकता से दूरी बनाए रखने वाले और केंद्र सरकार का समर्थन करने वाले बीजू जद (ओडिशा) और वाइएसआर कांग्रेस (आंध्र) भी इस रैली में शामिल होंगे। नवीन पटनायक से ममता बनर्जी की मंत्रणा हुई है और जगनमोहन से शरद पवार की। ये दोनों दल आ गए तो भाजपा खेमे में खलबली मचेगी। शरद पवार की पहल पर ही राहुल गांधी ने अब सावरकर के मुद्दे पर पीछे हटने की हामी भरी है। इससे महाराष्ट्र में शिवसेना की किरकिरी होने से बचेगी। राहुल को भी दिख रहा है कि महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस का गठबंधन चुनाव में भाजपा को टक्कर दे सकता है।
बात बेतुकी नहीं
गृह मंत्री अमित शाह ने एक कार्यक्रम में कहा कि यूपीए सरकार के दौरान जब एक फर्जी मुठभेड़ मामले में सीबीआइ ने उन्हें गिरफ्तार किया था तो उन पर दबाव बनाया था कि अगर वे तबके गुजरात के मुख्यमंत्री पर आरोप लगा दें तो उन्हें छोड़ दिया जाएगा। तब अमित शाह गुजरात के गृह मंत्री थे। अमित शाह ने खुद बताया कि उन्हें करीब तीन महीने जेल में रहना पड़ा था। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली। बाद में अदालत से ही वे इस मामले में बरी हो गए थे। लेकिन उन्होंने तब की केंद्र की यूपीए सरकार के खिलाफ इस मुद्दे पर कोई आंदोलन नहीं किया था।
अमित शाह कहना चाहते थे कि केंद्रीय जांच एजंसियों के कामकाज को लेकर कांग्रेस और दूसरे विरोधी दल भाजपा और केंद्र सरकार के खिलाफ जो हो-हल्ला मचा रहे हैं, वह अनुचित है। उन्हें अपनी लड़ाई कानूनी तरीके से अदालत में लड़नी चाहिए। पर अमित शाह के बयान से यह तथ्य तो सामने आया ही कि सीबीआइ सरकार के इशारे पर काम करती है और लोगों को फंसाने से भी गुरेज नहीं करती। ऐसे में विरोधी दलों के इस आरोप को कैसे नकारा जा सकता है कि सीबीआई और दूसरी केंद्रीय जांच एजंसियां केंद्र सरकार के इशारे पर उन्हें फंसा रही हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)