कर्नाटक में विधानसभा चुनाव को लेकर सभी दलों ने सक्रियता बढ़ा दी है। इसी साल मई तक होंगे इस सूबे में विधानसभा चुनाव। पिछले दो दशकों की तरह इस बार भी मुख्य रूप से तीन खिलाड़ी ही मैदान में होंगे। भाजपा, कांग्रेस और जनता दल (सेकु)। लेकिन, भाजपा पहली बार यह चुनाव बीएस येदियुरप्पा के नाम पर नहीं लड़ेगी। यह एक बड़ा बदलाव होगा। सूबे में भाजपा को सत्ता की सीढ़ी पर चढ़ाने का श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है। पर वे 80 वर्ष के हो चुके हैं। अपनी मर्जी से तो राजनीति से सेवानिवृत्त होने को तैयार नहीं थे पर पार्टी आलाकमान ने उनके दोनों बेटों के सियासी भविष्य का वास्ता देकर उन्हें मुख्यमंत्री पद छोड़ने को मनाया था।
उम्र का तकाजा और पार्टी के प्रति वफादारी
पिछले महीने तक यही हेकड़ी दिखा रहे थे कि राजनीति में उनकी अनदेखी कोई नहीं कर सकता। लेकिन, पिछले महीने विधानसभा के भीतर भावुक विदाई भाषण दे दिया। एलान किया कि वे अब सक्रिय राजनीति से संन्यास ले रहे हैं। पर, भारतीय जनता पार्टी के लिए ताउम्र लगे रहेंगे। एक तरफ उन्होंने पार्टी के प्रति वफादारी का एलान किया दूसरी तरफ दावा किया कि भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापस आएगी। वहीं, कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने येदियुरप्पा पर तंज कस दिया। फरमाया कि भाजपा ने उनके साथ अन्याय किया है।
येदियुरप्पा और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के बीच विवाद चल रहा है। बोम्मई ने अपने मंत्रिमंडल का विस्तार ही नहीं किया क्योंकि येदियुरप्पा के बेटे को मंत्री बनाना पड़ता। कांग्रेस सूबे की भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगा रही है। ज्यादातर विभाग मुख्यमंत्री ने अपने पास रखे हैं। जनता दल (सेकु) भी इस बार एचडी देवगौड़ा के बिना ही चुनाव में उतरेगी। देवगौड़ा अब पहले जैसे स्वस्थ और सक्रिय नहीं हैं। वे 89 वर्ष के हो चुके हैं।
बीच में अटकलें लगाई जा रही थी कि भाजपा देवगौड़ा के बेटे एचडी कुमार स्वामी के साथ गठबंधन कर सकती है। लेकिन, गृहमंत्री अमित शाह ने बंगलूर में जाकर साफ कर दिया कि भाजपा अपने दम पर लड़ेगी और सत्ता में आएगी। पूर्व में कांग्रेस और जद (सेकु) की साझा सरकार रह चुकी है सूबे में। कर्नाटक में लिंगायत जाति का समर्थन येदियुरप्पा के कारण भाजपा को मिलता रहा है। जनता दल (सेकु) को वोक्कालिगा
समुदाय और कांग्रेस को अल्पसंख्यकों व दलितों का ज्यादा समर्थन मिलता रहा है। हर बार सत्ता परिवर्तन का मिजाज रहा है कर्नाटक का। पर, 2013 में कांगे्रस ने जरूर सत्ता में वापसी की थी। दुविधा यह है कि सत्ता की दावेदारी तो भाजपा और कांगे्रस दोनों ही आत्मविश्वास के साथ कर रहे हैं पर अंदरूनी गुटबाजी से दोनों में कोई अछूता नहीं। इस बार कर्नाटक को लेकर भाजपा जिस तरह से सक्रिय है वह भी देखने की बात है।
धामी की धुन
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने विरोधियों पर काबू पाते दिख रहे हैं। धामी ने पहले भर्ती घोटाले की जांच बिठाकर और कई घोटालेबाजों को गिरफ्तार करवा कर तथा फिर सख्त से सख्त नकल विरोधी अध्यादेश लागू करवाकर जमकर वाह-वाही लूटी है। अब पूरे राज्य का दौरा कर के मुख्यमंत्री युवा रैलियों में भाग ले रहे हैं। इन रैलियों में नकल विरोधी अध्यादेश का जिक्र करके मुख्यमंत्री अपनी सरकार और भाजपा के पक्ष में माहौल बना रहे हैं। मुख्यमंत्री धामी की इन रैलियों में जबरदस्त भीड़ उमड़ रही है।
खासकर युवा इन रैलियों में जमकर भाग ले रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री भाजपा के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे हैं। इसमें वह कामयाब होते दिखाई दे रहे हैं। युवाओं के बीच में घुसकर उनका अभिनंदन करना उन्हें गले लगाना और कार्यकर्ताओं को नाम लेकर पुकारना मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की यह सब अदाएं युवाओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं। वे अपनी जनप्रिय छवि बनाने की पूरी कोशिश में लगे हैं, देखना है वक्त का क्या हासिल होगा।
कांग्रेस, अखबार और रद्दी
‘वे बोले इतना कि कल अखबार में छप गए, वक्त गुजरा तो आज रद्दी में बिक गए।’ हरियाणा विधानसभा में इस शेर को बोला हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने। सत्ता के शीर्ष से उपजी हुई सोच ही नीचे जाकर किसी खास चीज के लिए विषवमन करती है। बजट सत्र में कांग्रेस नेताओं पर वार करने के लिए मनोहर लाल खट्टर ने इस शेर को चुना। पत्रकारिता की अभिव्यक्ति को लेकर अक्सर उनकी भाव-भंगिमा पर सवाल उठते रहे हैं।
इस शेर के जरिए वे भूपिंदर सिंह हुड्डा व कांग्रेस के अन्य नेताओं पर सवा शेर बने या नहीं यह दूसरी बात है, लेकिन अखबार और पत्रकार को लेकर उनकी दुर्भावना सामने आ ही गई। अखबार में छपी चीजों की तुलना उन्होंने रद्दी से कर दी। हुड्डा और खट्टर पिछले सत्र में भी शेरो-शायरी के जरिए एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। इस बार भी फराज से लेकर अन्य शायरों को दोनों नेताओं ने जमकर उद्धृत किया। कांग्रेसियों पर कटाक्ष के साथ उन्होंने पत्रकारिता पर भी कटाक्ष कर बता दिया कि वे पत्रकारिता और विपक्ष दोनों को एक तरह ही देखते हैं।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)