वसुंधरा राजे खामोश हैं। कहने को भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ठहरी। पर राष्ट्रीय राजनीति में न उनकी दिलचस्पी है और न कोई पूछ। पार्टी आलाकमान ने एक तरह से हाशिए पर पहुंचा रखा है राजस्थान की सियासत में दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी महारानी को। उन्हें अपनी उपेक्षा का तो दर्द है ही अपने बेटे दुष्यंत को भी केंद्र में मंत्रिपद नहीं दिए जाने की शिकायत भी होगी।
पार्टी के सूबेदार सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत से छत्तीस का आंकड़ा है उनका। पूनिया उन्हें पार्टी कार्यक्रमों में बुलाते ही नहीं। उल्टे आलाकमान से उनकी शिकायत जरूर करते हैं कि वे समानांतर संगठन चलाती हैं और गुटबाजी को बढ़ावा देती हैं।
वसुंधरा अपनी तरफ से आलाकमान की नाराजगी दूर करने की पूरी कोशिश कर रही हैं और चाहती हैं कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर दे। लेकिन, सूबे के प्रभारी महासचिव अरुण सिंह कई बार कह चुके हैं कि चेहरा पेश किए बिना लड़ेगी पार्टी। हद तो तब हो गई जब हिमाचल और गुजरात चुनाव के लिए स्टार प्रचारकों की पार्टी की सूची से भी महारानी का नाम गायब दिखा। जबकि सूबेदार सतीश पूनिया गुजरात में जुटे हैं।
पिता के पैमाने पर
उत्तर प्रदेश के तीन उपचुनाव अखिलेश यादव के लिए कड़ी चुनौती हैं। रामपुर और खतौली की विधानसभा सीटों का उपचुनाव पिछले विजेताओं मोहम्मद आजम खान और विक्रम सैनी के अयोग्य घोषित हो जाने और मैनपुरी लोकसभा सीट का उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के निधन के कारण हो रहा है। मैनपुरी और रामपुर सीटें सपा के पास थी जबकि खतौली भाजपा के। मैनपुरी में अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल को उतारा है तो रामपुर में आजम खान की पसंद के असीम रजा खान को। रामपुर में असीम रजा का भाजपा के आकाश सक्सेना से मुकाबला है तो मैनपुरी में डिंपल का भाजपा के रघुराज शाक्य से। जो पहले सपा में ही थे।
खतौली सीट अखिलेश ने सहयोगी रालोद को दी है। जिसने पूर्व विधायक बाहुबली मदन भैया को तो भाजपा ने निवर्तमान विधायक की पत्नी राजकुमारी सैनी को उम्मीदवार बनाया है। गनीमत है कि अखिलेश ने नाराज चाचा शिवपाल की मनुहार कर ली। उपचुनाव में इससे पहले आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटें भाजपा ने सपा से छीन ली थी। रामपुर विधान सभा सीट पर भी आजम खान का मनोबल कमजोर दिख रहा है। दो दिन पहले अखिलेश ने एलान कर दिया कि वे 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
पसंद भी बता दी कन्नौज। पर सपा के कार्यकर्ताओं की शिकायत है कि अखिलेश में न तो पिता मुलायम की तरह जमीन पर संघर्ष करने का वैसा माद्दा है और न ही कार्यकर्ताओं से उनका मुलायम जैसा नाता है। मुलायम तो छोटे-बड़े हर कार्यकर्ता के दुख-सुख में शिरकत करते थे पर अखिलेश तो मीडिया से मिलने तक में कतराते हैं। राहुल गांधी से ही सबक ले सकते थे जो भारत जोड़ो यात्रा पर हैं। अखिलेश से तो विधानसभा चुनाव से पूर्व भी प्रचार अभियान देर से शुरू करने की शिकायत है उनके समर्थकों को।
मुद्दे पर आफत
भ्रष्टाचार पर घिरी आम आदमी पार्टी को एक मुद्दे पर अदालती राहत मिली है। अदालत में हाल ही में दर्ज सीबीआइ के आरोपपत्र में आम आदमी पार्टी के नेता और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का नाम नहीं लिया गया है। इससे भाजपा के उन नेताओं को झटका लगा है जो चुनाव से पहले इस मामले को लेकर सवाल खड़े कर रहे थे। भाजपा नेताओं को लग रहा है कि गुजरात विधानसभा और दिल्ली निगम के चुनावी माहौल के बीच यह आरोपपत्र कुछ दिन बाद सामने आना चाहिए था। दोनों ही राज्यों में भाजपा आम आदमी पार्टी को आबकारी नीति पर घेर रही है। इसके केंद्रबिंदु में मनीष सिसोदिया हैं। उनका नाम आरोपपत्र में नहीं होने से भाजपा का उठाया यह मुद्दा ही बेकार हो जाएगा।
अपनों पर ही सितम
दुश्मन न करे दोस्त ने वो काम किया है…राजनीति में छवि निर्माण आसान नहीं होता है। इस मामले में गैर तो छोड़िए अपने भी सितम कर बैठते हैं। भाजपा नेता मनोज तिवारी ने पिछले दिनों एक मंच पर कहा था कि पहले उन्हें दुख होता था जब उन्हें गवैया कह कर खारिज किया जाता था, पर अब वे इससे जूझना सीख गए हैं। मनोज तिवारी की छवि पर हालिया हमला संसद में उनकी सहयोगी मीनाक्षी लेखी ने ही कर दिया। मीनाक्षी लेखी से एक टीवी बहस में सवाल किया गया कि आम आदमी पार्टी आरोप लगा रही है कि मनोज तिवारी अरविंद केजरीवाल की हत्या करना चाहते हैं।
इसके जवाब में मीनाक्षी लेखी ने कहा, जहां तक मुझे मालूम है मनोज तिवारी गायक प्रवृत्ति के हैं और एक्टिंग-वैक्टिंग भी किया है। थोड़ी देर के लिए तो समाचार प्रस्तोता से लेकर दर्शक भी चकरा गए कि लेखी क्या कह रही हैं। जब अपनी ही पार्टी के नेता मनोज तिवारी को सार्वजनिक मंच पर इस व्यंग्यात्मक लहजे में लेंगे तो विपक्ष से क्या उम्मीद की जा सकती है। मनोज तिवारी ने खुद को सक्रिय व गंभीर राजनीति में पूरी तरह झोंक दिया है लेकिन उन्हें अभी भी गैर के साथ अपने लोगों के व्यंग्यात्मक हमले को झेलते रहना होगा, लेखी ने न चाहते हुए भी यह संदेश दे दिया।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)