बिहार में तलवारें खिंच गई हैं। अपना साथ छोड़कर राजद से जा मिलने पर तो भाजपा नीतीश से उतनी दुखी नहीं दिखी थी जितनी उनकी विपक्षी एकता की कोशिशों से दिख रही है। एक-दूसरे की लिहाज अब कोई खेमा नहीं कर रहा। भाजपा जहां जद (एकी) और नीतीश पर भी राजद की तरह हमले कर रही है, नीतीश भी उसी अंदाज में पार्टी को दिल्ली की सत्ता से बेदखल करने का दावा कर रहे हैं।
लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर दोनों खेमों ने एक-दूजे पर जमकर वार किए। भाजपा ने अभी तक बिहार में अपना कोई चेहरा बेशक घोषित नहीं किया है पर गृहमंत्री अमित शाह खुद इस सूबे पर ध्यान दे रहे हैं। जेपी की जयंती के मौके पर वे जेपी के गांव सिताबदियारा पहुंचे।
नीतीश ने उस दिन पटना में जेपी जयंती मनाई। अमित शाह ने लालू और नीतीश को घेरते हुए कहा कि जेपी ने जिस कांग्रेस के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी, उनके चेले आज उसी पार्टी की गोद में बैठ गए हैं। पलटवार करने में नीतीश ने भी देर नहीं लगाई। खिल्ली उड़ाते हुए पूछा कि उनकी उम्र कितनी है। जब जेपी आंदोलन कर रहे थे तो वे कहां थे। जेपी के बारे में हमें बताने वाले वे होते कौन हैं।
बदली फिजा
सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी ने हिमाचल प्रदेश में पांव जमाने की हसरत फिलहाल छोड़ दी है। जबकि पंजाब से सटा सूबा होने के नाते उसे हिमाचल में सफलता की ज्यादा उम्मीद लगानी चाहिए थी। अब तो अरविंद केजरीवाल ने अपनी पूरी ताकत गुजरात पर झोंक रखी है।
इसकी दीगर वजह भी है। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री दोनों ही गुजरात से नाता रखते हैं। भाजपा इस सूबे में पिछले 22 साल से लगातार सत्ता में है। पिछली दफा राहुल गांधी ने मेहनत कर सूबे में पार्टी की सीटें बढ़ाई थी। पर बाद में कांगे्रस के कई विधायक भाजपा में जा मिले। आए दिन कोई न कोई कांग्रेसी नेता भाजपा का दामन थामता दिखाई देता है। केजरीवाल को लगता है कि गुजरात में अगर आम आदमी पार्टी के पांव जम गए तो भाजपा के खिलाफ 2024 में राष्ट्रीय स्तर पर माहौल बनाना आसान होगा। वे पिछले कई महीने से गुजरात के लगातार दौरे कर रहे हैं।
स्थानीय निकाय चुनाव में पिछले दिनों उनकी पार्टी को कई जगह अच्छी सफलता मिली भी थी। पंजाब में जीत का सेहरा राघव चड्ढा के सिर बंधा था। जिन्होंने सरकार बनने के बाद दिल्ली की विधानसभा से इस्तीफा देकर पंजाब से राज्यसभा जाना बेहतर माना। केजरीवाल ने गुजरात में चुनाव की कमान भी राघव को सौंपी है। राघव युवा वर्ग में लोकप्रिय हैं।
खुद केजरीवाल दलितों और पिछड़ों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। शुरू में भाजपा उन्हें हल्के में ले रही थी पर जमीन पर कांग्रेस की सक्रियता न देख भाजपा को हवा का रुख समझ आ गया। तभी तो भाजपा ने केजरीवाल की घेरेबंदी तेज की। उन्हें शहरी नक्सली से लेकर कांगे्रस का एजंट तक बताया।
गुजरात का माहौल खराब करने की कोशिश जैसा आरोप भी लगा दिया। राजेंद्र पाल गौतम के विवाद के बाद केजरीवाल भाजपा के तीखे निशाने पर आ गए। रातोंरात गुजरात में केजरीवाल को हिंदू विरोधी बताने वाले काले रंग के होर्डिंग लग गए। इससे पहले दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया भी गुजरात के राजपूत मतदाताओं को लुभाने की मंशा से कह गए कि शराब घोटाले में भाजपा उन्हें गिरफ्तार करना चाहे तो कर ले। वे डरने वाले नहीं। महाराणा प्रताप के वंशज ठहरे।
इसी तरह का हथकंडा आम आदमी पार्टी के गुजरात के संयोजक गोपाल इटालिया ने अपनाया है। प्रधानमंत्री के बारे में पहले तो आपत्तिजनक टिप्पणी की फिर खुद को पाटीदार स्वाभिमान से जोड़ दिया। कभी हार्दिक पटेल के साथ पाटीदार आरक्षण आंदोलन मेंं सक्रिय थे इटालिया। राष्ट्रीय महिला आयोग ने दिल्ली तलब किया तो लगे शोर मचाने कि वे सरदार पटेल के वंशज हैं। जेल जाने से नहीं डरते। फिर भाजपा पर पाटीदार विरोधी होने का आरोप भी जड़ दिया।
तारीफ यूं ही नहीं होती…
राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता। यह सिद्धांत इन दिनों हर जगह सिद्ध होता रहता है। बिहार के ही संदर्भ में देखें तो दोस्तों और दुश्मनों का पूरा खेमा ही इधर से उधर हो चुका है। इसी के संदर्भ में पूर्व सांसद पवन वर्मा से पूछा गया कि सुशील कुमार कह चुके हैं कि बिहार में राजद जद (एकी) को खत्म कर देगा।
जद (एकी) से अपनी राजनीतिक शुरुआत करने वाले और नीतीश कुमार से अच्छे संबंध रखने वाले पवन वर्मा ने कहा कि आज के दौर में यह समझना जरूरी है कि भाजपा तेजस्वी यादव की तारीफ क्यों कर रही है? पत्रकारों के साथ एक बातचीत में वर्मा ने कहा कि आप हमारी आलोचना कितनी भी कीजिए लेकिन चाचा (नीतीश कुमार) की तारीफ मत कीजिए।
शायद यही वजह है कि तेजस्वी के खिलाफ चल रही केंद्रीय एजंसी की जांच में सुस्ती आ गई है। भाजपा की कोशिश आगे भी रहेगी कि इस गठबंधन की कमजोरी सामने आती रहे। हालांकि, पत्रकारों से बातचीत में पवन वर्मा ने यह भी माना कि जद (एकी) और राष्ट्रीय जनता दल का गठबंधन एक तरह से राजनीतिक शक्तियों का असंतुलन तो है। लेकिन ऐसी विडंबनाएं अब आम हो चुकी हैं।
पवन वर्मा ने कहा कि बिहार में जद (एकी) के लिए फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत अपनी जमीन मजबूत करना है, उसे अभी इसी पर पूरी तवज्जो देनी चाहिए। (संकलन : मृणाल वल्लरी)