योगेश कुमार गोयल
संयुक्त राष्ट्र वैश्विक स्तर पर गरीबी खत्म करने का संकल्प लेते हुए प्रतिवर्ष नए लक्ष्य निर्धारित करता है, उसी प्रकार भारत में भी गरीबी उन्मूलन के लिए संकल्प लिए जाते हैं, लेकिन जिस प्रकार पिछले दो वर्षों में अधिसंख्य आबादी के संसाधन तेजी से सिकुड़े हैं और चंद अमीरों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है, उससे बढ़ती असमानता शांति की राह में बाधक बन सकती है।
स्विट्जरलैंड के दावोस में विश्व आर्थिक मंच पर पेश की गई आक्सफैम इंटरनेशनल की रिपोर्ट ने दुनिया भर में अमीरी और गरीबी के बीच बढ़ती खाई को लेकर कई सनसनीखेज खुलासे किए हैं। भारत को लेकर रिपोर्ट का सबसे चौंकाने वाला हिस्सा यही है कि देश में महज एक फीसद लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का चालीस फीसद हिस्सा है, जबकि देश की करीब पचास फीसद आबादी, जिनमें निचले तबके के लोग शामिल हैं, उनके पास महज तीन फीसद हिस्सा है।
इस रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के एक फीसद अमीरों की दौलत बीते दो सालों में दुनिया के बाकी निन्यानबे फीसद लोगों की तुलना में करीब दोगुनी तेजी से बढ़ी है। ‘सर्वाइवल आफ द रिचेस्ट’ शीर्षक वार्षिक असमानता की इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के अमीरों की दौलत प्रतिदिन बाईस हजार करोड़ रुपए बढ़ी है, जबकि विश्व के एक सौ सत्तर करोड़ मजदूर उन देशों में रहते हैं, जहां महंगाई मजदूरी से ज्यादा है। चिंताजनक स्थिति यही है कि दुनियाभर में जितनी तेजी से अमीरी बढ़ रही है, उतनी ही तेजी से गरीबी भी बढ़ जा रही है।
आक्सफैम इंटरनेशनल द्वारा हर साल विश्व आर्थिक मंच की बैठक में आर्थिक असमानता रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है। इस वर्ष जारी अपनी रिपोर्ट में उसने स्पष्ट कहा है कि बीते दो वर्ष अमीरों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद रहे हैं। एक ओर जहां आम आदमी अपनी रोजमर्रा की जरूरतें पूरा करने में ही खुद को खपा रहा है, वहीं अमीर लोग दिन-प्रतिदिन अमीर होते जा रहे हैं।
भारत के संदर्भ में आक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कोरोना के बाद से पिछले वर्ष नवंबर तक अमीरों की दौलत में एक सौ इक्कीस फीसद की बढ़ोतरी हुई है और इस दौरान अरबपतियों की संख्या में भी बहुत तेजी आई है। इस दौरान देश के शीर्ष अमीरों की प्रतिदिन की कमाई 3608 करोड़ रुपए रही। रिपोर्ट की सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि 2021 में पांच फीसद भारतीयों के पास देश की बासठ फीसद से भी ज्यादा दौलत थी, जबकि पचास फीसद गरीब आबादी के पास केवल तीन फीसद संपत्ति थी और इस समय देश के शीर्ष इक्कीस धनाढ्यों के पास ही भारत के सत्तर करोड़ लोगों की कुल संपत्ति से भी ज्यादा दौलत है।
देश में अरबपतियों की संख्या 2020 की 102 से बढ़कर 2022 में 166 हो गई है और इनमें ऐसे लोग शामिल हैं, जिनकी संपत्ति एक अरब डालर (करीब आठ हजार करोड़ रुपए) है। देश के सौ सबसे अमीर लोगों की कुल संपत्ति छह सौ साठ अरब डालर (करीब 54.12 लाख करोड़ रुपए) हो गई है, जो पूरे अठारह महीने के भारत के केंद्रीय बजट के बराबर है।
आक्सफैम इंडिया का कहना है कि गरीब लोग ज्यादा कर दे रहे हैं और उन्हें अमीरों की तुलना में जरूरी चीजों और सेवाओं पर ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है, इसलिए अब अमीरों पर कर लगाने का समय आ गया है। हैरानी की बात है कि जहां सबसे अमीर दस फीसद लोग केवल तीन प्रतिशत कर देते हैं, वहीं इनके मुकाबले देश के पचास फीसद लोग छह गुना कर चुकाते हैं और इन्हीं पचास फीसद लोगों से सरकार जीएसटी का करीब चौंसठ फीसद हिस्सा वसूलती है।
ऐसे में यह गंभीर सवाल खड़ा होता है कि आखिर देश का यह कैसा विकास है, जहां अमीर बेहद कम और गरीब प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सबसे ज्यादा कर चुकाते हैं? रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के अमीरों पर पांच फीसद कर लगाने से एक वर्ष में 1.7 लाख करोड़ रुपए इकट्ठे किए जा सकते हैं, जिससे दुनिया भर में दो अरब लोगों को आसानी से गरीबी रेखा से बाहर निकाला जा सकता है।
भारत के संबंध में रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि अगर यहां के अरबपतियों पर केवल दो फीसद कर लगा दिया जाए तो सरकारी खजाने में एक साल में 40423 करोड़ रुपए इकट्ठा हो जाएंगे, जिससे पूरे तीन वर्षों तक कुपोषित लोगों को भोजन दिया जा सकता है। देश के शीर्ष दस अमीरों के पास ही इतनी दौलत है कि वे चाहें तो देशभर के तमाम स्कूल-कालेजों को पच्चीस वर्षों तक नियमित चला सकते हैं। आर्थिक विशेषज्ञ इसीलिए सलाह देते रहे हैं कि अगर इन धन कुबेरों पर थोड़ा ज्यादा कर लगाते हुए उपभोक्ता वस्तुओं का कर घटा दिया जाए तो इसका सर्वाधिक लाभ देश की गरीब जनता को होगा, जिससे अमीरी-गरीबी के बीच बढ़ती खाई को कम करने में मदद मिलेगी।
रिपोर्ट में पहले भी बताया जा चुका है कि पिछले कुछ वर्षों में कारपोरेट कर के अनुपात में गिरावट आई है, वहीं केंद्र सरकार के राजस्व के हिस्से के रूप में परोक्ष कर बढ़ रहा है। दूसरी ओर अमीरों की संपत्ति पर लगाए जाने वाले कर को 2016 में ही खत्म कर दिया गया था और कोरोना काल में कारपोरेट कर को तीस से घटाकर बाईस फीसद कर दिया गया था, जिससे सरकार को डेढ़ लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
आक्सफैम के मुताबिक अगर भारत के शीर्ष दस फीसद अमीरों पर महज एक फीसद अतिरिक्त कर भी लगाया जाए तो उस धन से 17.7 लाख अतिरिक्त आक्सीजन सिलेंडर मिल जाएंगे और अगर सौ शीर्ष अरबपतियों पर एक फीसद अतिरिक्त कर लगाया जाए तो उससे एकत्रित राशि से दुनिया के सबसे बड़े स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम ‘आयुष्मान भारत’ को सात वर्षों तक चलाया जा सकता है। इस राशि से सरकार का स्वास्थ्य बजट 270 फीसद से भी ज्यादा बढ़ सकता है।
दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भी धनिकों की बड़ी भूमिका है। दुनिया के 125 सबसे अमीर अरबपतियों के निवेश से ही प्रतिवर्ष तीस लाख टन से ज्यादा कार्बन डाइआक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो आम आदमी की तुलना में दस लाख गुना ज्यादा है। ये अरबपति प्रतिवर्ष करीब 39.3 करोड़ टन कार्बन डाइआक्साइड का वित्तपोषण करते हैं, जो कि 6.7 करोड़ की आबादी वाले देश फ्रांस के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के बराबर है।
जीवाश्म र्इंधन और सीमेंट जैसे प्रदूषणकारी उद्योगों में अमीर अरबपतियों का निवेश मानक कमजोर समूह वाली पांच सौ कंपनियों के औसत से दोगुना है। दरअसल, दुनिया भर में सरकारें अपने अनुसार लक्ष्य तो तय कर लेती हैं, लेकिन अरबपति निवेशकों की लापरवाही को रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठातीं, जिस पर गंभीरता से विचार करने और इसमें बदलाव लाने की जरूरत है।
बहरहाल, जिस प्रकार चंद हाथों में पूंजी सिमटती जा रही है, उसके भावी खतरों की अनदेखी करना उचित नहीं होगा। असमानता बढ़ने से सामाजिक अस्थिरता भी बढ़ रही है। सवाल है कि आखिर बढ़ते अमीरों के देश में गरीब लगातार क्यों बढ़ते जा रहे हैं? संयुक्त राष्ट्र वैश्विक स्तर पर गरीबी खत्म करने का संकल्प लेते हुए प्रतिवर्ष नए लक्ष्य निर्धारित करता है, उसी प्रकार भारत में भी गरीबी उन्मूलन के लिए संकल्प लिए जाते हैं, लेकिन जिस प्रकार पिछले दो वर्षों में अधिसंख्य आबादी के संसाधन तेजी से सिकुड़े हैं और चंद अमीरों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है, उससे बढ़ती असमानता शांति की राह में बाधक बन सकती है।
आज देश में जिस प्रकार के आर्थिक-सामाजिक संकट के हालात बने हैं, ऐसे में अमीरों को और अमीर बनाने में सहायक सरकारी नीतियों के बजाय ऐसी नीतियों के क्रियान्वयन की सख्त दरकार है, जो रोजगार पैदा करने के साथ-साथ गरीबों को भी खुशहाली के मार्ग पर ले जाने वाली हों।