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खेल की लत, सेहत की दुश्मन

जब कोई बच्चा लगातार घंटों मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलता है, तो उसकी आंखों और अन्य अंगों पर उसके गंभीर दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं।

खेल की लत, सेहत की दुश्मन
सांकेतिक फोटो।

महेश तिवारी

जब कोई बच्चा लगातार घंटों मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलता है, तो उसकी आंखों और अन्य अंगों पर उसके गंभीर दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं। ऐसे में जब चीन अपने देश का बचपन सुरक्षित करने के लिए आनलाइन गेमों को लेकर कानून बना सकता है, तो फिर हमें और हमारी व्यवस्था को क्यों नहीं इस दिशा में सोचना चाहिए। आनलाइन गेमों पर अंकुश आज की जरूरत है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

आज नित्य नए मोबाइल धारकों की बढ़ती संख्या पर हमारी व्यवस्था भले इठला ले, कि इक्कीसवीं सदी में हम अंगुलियों पर सब कुछ संभव बना रहे हैं। मगर शायद तकनीक में मशगूल होकर यह भूलते जा रहे हैं कि इससे हम अपनी अमिट पुरातन विरासत को तो क्षीण कर ही रहे हैं, बाल मन और युवावस्था को पथभ्रष्ट तथा अपनी जिंदगी को काल के गाल में ढकेल रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि जो उम्र मैदानी खेल खेलने की होती है, वीर, प्रतापी महापुरुषों की कहानियां सुनने, किताबें पढ़ने की होती है, उस उम्र में हमारे युवा और बच्चे आनलाइन गेम की तरफ बढ़ गए हैं। आज के भौतिकवादी युग में अभिवावकों के पास समय का अभाव है, जिसके चलते वे जिस उम्र में बच्चे के हाथ में खिलौना, सिर पर माता-पिता का प्रेम होना चाहिए, उसमें उसे मोबाइल फोन थमा देते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

यों आनलाइन गेम के प्रति युवाओं और बच्चों का बढ़ता झुकाव कोई सिर्फ भारत की समस्या नहीं। बीते कुछ वर्षों में दुनिया भर के बच्चों में इसे लेकर एक अलग प्रकार की दीवानगी पनपी है, जो कहीं न कहीं अब लत बनती जा रही है। लत किसी भी चीज की हो, अगर उसकी अति हो जाए, तो नुकसान भयानक होता है। अनेक अध्ययनों से पता चलता है कि इससे बच्चों के शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। शायद यही वजह है कि कुछ महीने पहले चीन ने अपने यहां बच्चों के लिए नया नियम बनाया है जिसके तहत अब वे हफ्ते में तीन घंटे ही आनलाइन गेम खेल सकेंगे। निश्चित रूप से यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण कदम है।

गौरतलब है कि वहां नए नियमों के अनुसार आनलाइन गेम कंपनियां अब बच्चों को सिर्फ शुक्रवार, शनिवार और रविवार को एक-एक घंटे के लिए आनलाइन गेम की सुविधा दे पाएंगी। चीन ने दो साल पहले भी बच्चों के नब्बे मिनट से अधिक आनलाइन गेम खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। तब साप्ताहांत या सार्वजनिक छुट्टियों में बच्चे प्रतिदिन तीन घंटे तक आनलाइन गेम खेल सकते थे। यही नहीं, दिशानिर्देश के अनुसार सोलह साल से कम उम्र के बच्चों को आनलाइन गेम पर प्रतिमाह दो सौ युआन, जबकि सोलह से अठारह साल के बीच के किशोरों को चार सौ युवान युआन खर्च करने की अनुमति दी गई थी।

वहीं 2015 में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि मोबाइल फोन और आनलाइन गेमों से पचास करोड़ चीनी नागरिकों की आंखों की रोशनी प्रभावित हुई। अब आप सोच सकते हैं कि आनलाइन गेम आपके बच्चों को किस तरफ ढकेल रहा है! मगर भारत की स्थिति क्या है, यह हम सबको पता है। यहां तो एक-दो साल के बच्चों को भी हाथ में मोबाइल थमा दिया जाता है और वह बड़े चाव से मोबाइल देखते-देखते बड़ा होता है। फिर भारत इस मामले में कहां खड़ा है, इसका आकलन हमें करना चाहिए।

गौरतलब है कि इसी साल जुलाई में चीन की सबसे बड़ी गेमिंग कंपनी ‘टेन्सेंट’ ने घोषणा की थी कि वह रात दस बजे से सुबह आठ बजे के बीच गेम खेलने वाले बच्चों को रोकने के लिए फेशियल रिकग्निशन (चेहरे की पहचान) शुरू कर रही है। यह कदम इस आशंका के बाद उठाया गया कि बच्चे नियमों को दरकिनार करने के लिए वयस्क आईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं।

इतना ही नहीं, चीन में अब अठारह साल से कम उम्र के बच्चे एक तय समय और दिन ही वीडियो गेम खेल सकेंगे। वीडियो गेम खेलने की अनुमति केवल रात आठ बजे से रात नौ बजे के बीच होगी। गेमिंग कंपनियों को भी निर्देश दिया गया है कि इस समय सीमा से अलग बच्चों को वीडियो गेम खेलने से रोकें। एक सरकारी मीडिया आउटलेट ने तो आनलाइन गेम को ‘आध्यात्मिक अफीम’ तक कह दिया। अब आप समझ सकते हैं कि आनलाइन गेम की लत किस हद तक बच्चों को प्रभावित कर रही है।

बात भारत की करें, तो यहां आएं दिन आनलाइन गेम की लत के कारण बच्चों की होने वाली मौतों की खबरें हम सुनते-पढ़ते रहते हैं। इतना ही नहीं, कई बच्चे इसके इतने आदी हो जाते हैं कि खाना-पीना तक छोड़ कर दिन-रात उसी में लगे रहते हैं और उनकी नींद कम हो जाती है। खेलने से मना किया जाए तो वे चिड़चिड़ा कर जवाब देते हैं। कोरोना काल में पढ़ाई के आनलाइन हो जाने के कारण बच्चों में आनलाइन गेम की लत का खतरा और भी बढ़ गया है।

एक आंकड़े के मुताबिक भारत में करीब तीस करोड़ लोग आनलाइन गेम खेलते हैं और 2022 तक यह संख्या बढ़ कर पचपन करोड़ हो जाने की संभावना है। अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भारत की कितनी बड़ी जनसंख्या सिर्फ आनलाइन मोबाइल गेम खेलने में लगी हुई है। वहीं एक अन्य आंकड़े की बात करें तो वर्तमान में अपने देश में आनलाइन गेमिंग का बाजार करीब सात से दस हजार करोड़ रुपए के बीच है, जिसके अगले एक साल में उनतीस हजार करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की उम्मीद है।

इन आंकड़ों से ही स्थिति की भयावहता को समझा जा सकता है, लेकिन इसको लेकर न हमारी व्यवस्था सचेत नजर आती है और न ही परिजनों के पास इतना समय होता है कि वे हर पल बच्चों पर नजर रख सकें कि आखिर मोबाइल में उनका बच्चा क्या कर रहा है। बच्चों का मस्तिष्क इतना विकसित नहीं होता कि वे आनलाइन गेम की लत से खुद को बचा सकें, इसलिए अभिभावकों और सरकार का दायित्व बन जाता है कि वे बच्चों के हित में कदम उठाएं। मगर अभी इस दिशा में भी प्रयासों की बेहद कमी दिखाई पड़ती है।

बता दें कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी गेम खेलने की लत (जिसे गेमिंग डिसआर्डर नाम दिया गया) को मानसिक अस्वस्थता की स्थिति माना है। उसका कहना है कि गेमिंग कोकीन और जुआ के समान एक लत हो सकती है। कोरोना काल में समस्या और विकराल हुई है। इस दौरान कोरोना का डर और दूसरी अन्य वजहों से बच्चों का आनलाइन गेमिंग इकतालीस फीसद तक बढ़ा है और आनलाइन गेम का चस्का एकल परिवार के बच्चों में ज्यादा देखने को मिल रहा।

यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि आनलाइन गेमों में पड़ कर बच्चे आक्रामक और हिंसक बन रहे हैं, सो अलग। कई बार यही खेल उन्हें अवसाद की तरफ भी ढकेल देता है। भारत में ब्लू वेल जैसे गेम के चलते कई बच्चों की जान चली गई। उन खबरों को लगभग सभी ने सुना और पढ़ा भी, फिर भी आनलाइन गेम धड़ल्ले से हमारे देश में चल रहे हैं, वह भी बिना किसी नियम और शर्तों के।

जब कोई बच्चा लगातार घंटों-घंटों तक मोबाइल और कंप्यूटर पर गेम खेलता है, तो उसकी आंखों और अन्य अंगों पर उसके गंभीर दुष्प्रभाव भी पड़ते हैं। ऐसे में जब चीन अपने देश का बचपन सुरक्षित करने के लिए आनलाइन गेमों को लेकर कानून बना सकता है, तो फिर हमें और हमारी व्यवस्था को क्यों नहीं इस दिशा में सोचना चाहिए। वैसे संयुक्त परिवार की जड़ों से हमारे समाज का कटना भी कई समस्याओं का कारण है और इसके लिए हम सरकार को दोष नहीं दे सकते। फिर भी आनलाइन गेमों पर अंकुश आज की जरूरत है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए। भारत में भी आनलाइन गेमिंग कंपनियों पर चीन जैसा दबाव बनाए जाने और उनके नियमन की जरूरत है।

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First published on: 02-12-2021 at 20:00 IST
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