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सुरक्षा कानून और असुरक्षित उपभोक्ता

व्यावसायिक जगत में यह मान्यता प्रचलित है कि उपभोक्ता बादशाह होता है।

consumer protection law
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

इस कानून के अंतर्गत मिले अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में अगर हम आम उपभोक्ता की स्थिति जानने का प्रयास करें, तो लगेगा कि अधिकतर मामलों में उपभोक्ता के अधिकारों का हनन ही होता है। व्यवसाय और उद्योग जगत, सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों और संस्थाओं द्वारा नित नए तरीके से उपभोक्ताओं के शोषण का रास्ता निकाला जाता है।

व्यावसायिक जगत में यह मान्यता प्रचलित है कि उपभोक्ता बादशाह होता है। मगर आज के दौर में वह कितना बड़ा और प्रभावी बादशाह रह गया है, यह विचारणीय सवाल है। प्रत्येक व्यक्ति, जो मूल्य देकर किसी वस्तु या सेवा का क्रय करता है, वह उपभोक्ता है, चाहे उसकी आयु, लिंग, व्यवसाय, समुदाय तथा धार्मिक विचारधारा कुछ भी हो।

उपभोक्ता के अधिकारों के सरंक्षण हेतु संयुक्त राष्ट्र की भावना के अनुरूप बहुत से देशों में उपभोक्ता संरक्षण कानून बनाए गए हैं। भारत में भी 1986 में पहली बार उपभोक्ताओं के हितों की सुरक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम लागू किया गया। इससे पहले उपभोक्ताओं को किसी एक कानून के अंतर्गत सुरक्षा नहीं मिलती थी। इस अधिनियम के अंतर्गत उपभोक्ताओं हितों की सुरक्षा की दृष्टि से पहली बार उनके कुछ मूलभूत अधिकार शामिल किए गए। वर्ष 2019 में नए व्यावसायिक परिवेश को देखते हुए 1986 के कानून में व्यापक परिवर्तन करते हुए उसके स्थान पर एक नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 लागू किया गया। यह 20 जुलाई, 2020 से लागू है।

वर्ष 1986 में जब पहली बार उपभोक्ता कानून लागू किया गया था, तब उपभोक्ताओं को शोषण से मुक्त कराने के मकसद से उपभोक्ता अधिकारों को सुदृढ़ किया गया था। नए कानून में भी उपभोक्ता के अधिकारों का दायरा बढ़ाते हुए जो अधिकार शामिल किए गए, उनमें (क) ऐसे माल, उत्पाद या सेवाएं, जो व्यक्ति के जीवन और संपत्ति के लिए हानिकारक हैं, उनके विपणन के विरुद्ध सरंक्षण पाने का अधिकार (ख) माल उत्पाद या सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, शक्ति, शुद्धता, मानक और कीमत के विषय में सूचना प्राप्त करने का अधिकार (ग) उपभोक्ता को विक्रय किए जाने का विभिन्न प्रकार के माल, उत्पादों या सेवाओं तक प्रतिस्पर्धी कीमतों पर पहुंच का अधिकार (घ) अगर माल, उत्पाद या सेवा में किसी प्रकार की त्रुटी या कमी है तो उसकी शिकायत सुने जाने और उपयुक्त मंच पर उसकी शिकायत का समाधान पाने के अधिकार को संरक्षित किया गया। (च) अगर व्यवसायी द्वारा अनुचित व्यापार व्यवहार से उपभोक्ताओं का अनैतिक शोषण किया जाता है, तो उसके विरुद्ध समुचित उपचार प्राप्त करने का अधिकार और (छ) उपभोक्ता शिक्षा और जागरूकता से जुड़े अधिकार प्रमुख हैं।

इस कानून के अंतर्गत मिले अधिकारों के परिप्रेक्ष्य में अगर हम आम उपभोक्ता की स्थिति जानने का प्रयास करें, तो लगेगा कि अधिकतर मामलों में उपभोक्ता के अधिकारों का हनन ही होता है। व्यवसाय और उद्योग जगत, सेवा प्रदान करने वाली कंपनियों और संस्थाओं द्वारा नित नए तरीके से उपभोक्ताओं के शोषण का रास्ता निकाला जाता है। ई-कामर्स कंपनियां, जो आनलाइन विक्रय का काम करती हैं, वे इस कानून की अस्पष्टता का भरपूर लाभ उठाते हुए उपभोक्ताओं को लूटने की कोशिश करती हैं।

इन कंपनियों द्वारा विज्ञापन में दिखाया गया माल नहीं भेजना, नकली माल देना, ज्यादा पैसे वसूल करना, पैसा वापसी की गारंटी होने के बावजूद माल वापस लौटाने पर भुगतान की गई राशि को वापस न लौटाना, पुराना और टूटा-फूटा माल भेजना, तकनीकी खामियों वाला माल भेजना जैसी शिकायतें आम हैं। ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं।

आजकल आनलाइन गेम्स के बहुत से ऐप्प आ गए हैं, बड़ी-बड़ी नामचीन हस्तियां इनका विज्ञापन भी करती हैं। इनके माध्यम से लोगों को जुए की लत लग रही है। कई बार ऐप्प के माध्यम से किए जाने वाले लेन-देन की सूचनाओं के आधार पर लोगों के बैंक खाते से रकम उड़ाने की खबरें भी आती रहती हैं। आनलाइन बिक्री करने वाले घुटनों के दर्द का रामबाण इलाज, कद बढ़ाने, यौन शक्ति बढ़ाने, विभिन्न तंत्र-मंत्र वाली अंगूठियों, लाकेट, विभिन्न राशि वाले नगों आदि के विज्ञापन भी देते रहते हैं। इनके आधार पर किए गए लेन-देन में ज्यादातर मामलों में उपभोक्ता ठगी का शिकार हो ही जाता है।

इनके अलावा भी उपभोक्ताओं की परेशानियां कम नहीं हैं। खाद्य पदार्थों में सेहत के लिए नुकसानदेह माने जाने वाले पदार्थ मिलाकर बेचना एक आम प्रवृत्ति बन चुकी है। दूध में से मलाई यानी ‘फैट’ निकाल लिया जाता है, जिससे उसकी गुणवत्ता पर विपरीत असर पड़ता है। वस्तुओं की पैकिंग पर दी गई जानकारी से अलग सामग्री पैकेट के भीतर रखना, बिक्री के बाद गारंटी और वारंटी के अनुरूप समुचित सेवाएं न देना, अनुचित रूप से दोषयुक्त वस्तुओं की आपूर्ति करना, सही कीमत की जानकारी न देकर शर्तें लागू जैसी बातें लिख कर सुविधाएं सीमित करना या उनसे बचना, वस्तुओं के वजन और माप-तोल में झूठे या निम्न स्तर के साधन इस्तेमाल करना आदि बातें आम हैं।

कहने को तो उपयुक्त मंचों पर उपभोक्ता को शिकायत करने और उसका समाधान पाने का अधिकार है, लेकिन ये मंच भी न्यायालयों की तरह कार्य करते हैं। इनमें भी गवाह, सबूत आदि की प्रक्रिया चलती रहती है। महीनों, सालों तक लंबी कार्यवाही चलती है, उसके बाद भी न्याय मिले, इस बात की गारंटी नहीं होती। हालांकि इन मंचों पर उपभोक्ता अपनी पैरवी खुद कर सकता है, लेकिन आम उपभोक्ता को न तो कानून की जानकारी होती है और न ही अपनी पैरवी के लिए अदालतों के चक्कर लगाने का समय होता है। मंचों पर पैरवी के लिए वकील आदि की सेवाएं लेने पर कई बार वकीलों की फीस और अन्य खर्च वस्तु की कीमत से ज्यादा हो जाता है।

ग्राहक सामान्यतया वस्तु खरीदते समय रसीद नहीं लेता, अगर मांगता भी है तो विक्रेता द्वारा देने में आनाकानी की जाती है। कर जोड़ने का भय दिखाया जाता है। रसीद न होने की दशा में उपभोक्ता चाह कर भी मंच के माध्यम से अपने शोषण के विरुद्ध उपचार प्राप्त नहीं कर सकता। अधिनियम में उपभोक्ता शिक्षा का अधिकार भी है, लेकिन सरकार द्वारा आम उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक बनाने के प्रयास नगण्य ही हैं। उपभोक्ता की जागरूकता के लिए किए जाने वाले आयोजन, मसलन उपभोक्ता दिवस, उपभोक्ता अधिकार दिवस आदि, भी मनाने की औपचारिकता मात्र बन कर रह जाते हैं।

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में उपभोक्ता के अधिकारों के साथ-साथ कुछ दायित्व भी निर्धारित हैं। पहला है, वह खुद भी अपनी सहायता करे। आशय यही है कि वह जब भी किसी वस्तु या सेवा का क्रय करे, तब वह स्वयं ही उसके मूल्य, भार, ब्रांड, गुणवत्ता, उत्पाद में शामिल घटक, गारंटी, वारंटी आदि की शर्तों की अच्छी तरह से जानकारी प्राप्त कर ले। किसी विश्वसनीय निर्माता या विक्रेता से ही क्रय करे। जो भी उत्पाद या सेवा वह प्राप्त कर रहा है, उसके क्रय का प्रमाण रसीद, गारंटी, वारंटी कार्ड अदि के रूप में जरूर प्राप्त कर ले। विक्रेता के टालने या टैक्स लगने के भय से रसीद अदि लेने में लापरवाही न करे, क्योंकि कानून के अंतर्गत उपचार प्राप्त करने की सबसे पहली आवश्यकता प्रमाण ही है।

दूसरा दायित्व यह है कि जब भी उसके साथ किसी भी तरह का शोषण होता है, तो उसके विरुद्ध उचित मंच पर शिकायत अवश्य दर्ज करवाएं। कानून में एक ही तरह का उत्पाद खरीदने वालों और सेवाओं को प्राप्त करने वालों द्वारा सामूहिक शिकायत करने और उपचार प्राप्त करने की भी सुविधा है। उपभोताओं का यह भी दायित्व है कि वे क्रय की गई वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग पैकेज में दी गई जानकारियों और गारंटी, वारंटी की शर्तों के अनुरूप ही करें। कानून का दुरुपयोग या झूठी शिकायतें करके न्यायिक मंचों का कार्यभार न बढ़ाएं। इससे जो वास्तविक रूप से पीड़ित व्यक्ति है, उसको न्याय मिलने में देरी हो सकती है या वह न्याय से वंचित भी हो सकता है।

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First published on: 29-03-2023 at 22:49 IST