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कारोबार में शोध और नवाचार

यूरोपीय संघ में आरएंडडी पर जीडीपी का करीब दो फीसद व अमेरिका, जापान और अन्य कई विकसित देशों में इस पर तीन फीसद से भी अधिक व्यय किया जा रहा है।

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

जयंतीलाल भंडारी

इन दिनों राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर प्रकाशित हो रही अध्ययन रिपोर्टों में यह बात उभर कर सामने आ रही है कि भारत में आर्थिक और औद्योगिक विकास को तेज करने के लिए सरकार के साथ-साथ देश के उद्योगों को भी शोध और विकास (आरएंडडी) पर अधिक ध्यान देना होगा। गौरतलब है कि नवीनतम रिपोर्टों के मुताबिक इस समय दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब दो फीसद शोध और विकास में व्यय किया जाता है।

यूरोपीय संघ में आरएंडडी पर जीडीपी का करीब दो फीसद व अमेरिका, जापान और अन्य कई विकसित देशों में इस पर तीन फीसद से भी अधिक व्यय किया जा रहा है। जबकि इस समय भारत में इस पर जीडीपी का करीब 0.67 फीसद व्यय हो रहा है। इस समय दुनिया में शोध और विकास पर जो वार्षिक राशि व्यय की जाती है, उसमें अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी और दक्षिण अफ्रीका की हिस्सेदारी करीब तीन चौथाई से अधिक है। ये सभी देश आरएंडडी के बल पर उद्योग-कारोबार के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी हैं।

हाल ही में इंदौर में आयोजित ‘इंडियन सोसायटी आफ क्रिटिकल केयर मेडिसिन’ की उनतीसवीं वैश्विक क्रांफ्रेंस में स्वास्थ्य शोध क्षेत्र में अभूतपूर्व वैश्विक योगदान देने वाले फ्रांस के जैन लुइस टेबोल ने कहा कि भारत में ज्ञान का भंडार है, लेकिन शोध की कमी है। अगर भारत में सरकार के साथ उद्योग शोध और नवाचार (रिसर्च-इनोवेशन) पर अधिक ध्यान देंगे तो भारत दुनिया में स्वास्थ्य सहित विभिन्न आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्रों में तेजी से ऊंचाई पर पहुंच सकेगा।

हालांकि शोध और नवाचार के मामले में पिछले एक दशक में भारत के कदम आगे बढ़े हैं, लेकिन अब भी दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्था वाले देशों की तुलना में बहुत पीछे है। पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र की एजंसी ‘वर्ल्ड इंटलेक्चुअल प्रापर्टी आर्गेनाइजेशन’ (डब्ल्यूआइपीओ) द्वारा जारी ‘ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स’ 2022 में भारत चालीसवें स्थान पर पहुंच गया, जबकि 2021 में छियालीसवें पायदान पर था।

2015 में इक्यासीवें स्थान पर था। सबसे बड़ी बात है कि निम्न मध्यम आय वर्ग के वैश्विक नवाचार सूचकांक में भारत पहले स्थान पर पहुंच गया है। इस समूह में दुनिया के छत्तीस देशों को शामिल किया गया है। वैश्विक नवाचार सूचकांक में स्विट्जरलैंड पहले, अमेरिका दूसरे और स्वीडन तीसरे स्थान पर हैं। थाइलैंड, वियतनाम, रूस और ब्राजील जैसे देशों की तुलना में नवाचार के मामले में भारत आगे निकल चुका है।

गौरतलब है कि पिछले दिनों ‘स्मार्ट इंडिया हैकाथान’ समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इस समय शोध और नवाचार सूचकांक में भारत की रैकिंग बढ़ रही है। शोध और नवाचार के कारण बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य, डिजिटल, कृषि, शिक्षा, रक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हो रही है। भारत के नवाचार दुनिया में सबसे प्रतियोगी, किफायती, टिकाऊ, सुरक्षित और बड़े स्तर पर लागू होने वाले समाधान प्रस्तुत कर रहे हैं।

आज भारत में सत्तर हजार से अधिक स्टार्ट-अप हैं, जिनमें सौ से अधिक यूनिकार्न हैं। ऐसे में भारत शोध और नवाचार को और अधिक प्रोत्साहन देते हुए देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने सहित विभिन्न क्षेत्रों में विकास को नई रफ्तार देने की डगर पर आगे बढ़ रहा है।

कोविड-19 भारत में नए चिकित्सीय शोध और नवाचार को बढ़ावा देने का एक अवसर भी था। जब फरवरी-मार्च 2020 में देश में कोरोना संक्रमण की पहली लहर शुरु हुई, तब उसकी रोकथाम के लिए कोरोना टीके से संबंधित शोध और उत्पादन के विचार आने शुरू हुए थे। सामान्य तौर पर किसी बीमारी का टीका बनाने में कई वर्ष लगते हैं, लेकिन भारत में कोरोना विषाणु की चुनौती के मद्देनजर कुछ महीनों के अंदर इसका टीका बनाने का कठिन लक्ष्य पूरा किया गया।

कृषि क्षेत्र को आगे बढ़ाने में भी कृषि संबंधी शोध और नवाचार की प्रभावी भूमिका है। केंद्रीय कृषि मंत्री के मुताबिक देश में कृषि शोध से जुड़ी सौ से अधिक रिसर्च इंस्टीट्यूट, पचहत्तर कृषि विश्वविद्यालयों और इंडियन काउंसिल आफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आइसीआर) के बीस हजार से अधिक वैज्ञानिकों के समर्पित शोध कार्य और नवाचार को बढ़ावा दिए जाने से कृषि क्षेत्र में विकास का नया अध्याय खुल रहा है।

इसके बावजूद इस क्षेत्र में भारत के उद्योग-कारोबार बहुत पीछे हैं। गौरतलब है कि यूरोपीय आयोग हर वर्ष शोध और नवाचार के मद्देनजर दुनिया की शीर्ष ढाई हजार कंपनियों की जानकारी प्रकाशित करता है। 2021 के आंकड़ों के मुताबिक इन कंपनियों में भारत की महज चौबीस कंपनियां शामिल हैं। जबकि अमेरिका की 822, चीन की 678, जापान की 233 और जर्मनी की 114 कंपनियां हैं।

स्थिति यह है कि भारत में आंतरिक शोध और विकास में एक भी ऐसी बड़ी शोध निवेशक कंपनी नहीं है, जो दुनिया में पहली पचास बड़ी कंपनियों की सूची में शामिल हो। देश की शीर्ष कंपनी टाटा मोटर्स शोध और नवाचार के मामले में दुनिया में अट्ठावनवें स्थान पर है। इतना ही नहीं, दुनिया की शीर्ष सात कंपनियां पूरे भारत द्वारा शोध और नवाचार पर किए जा रहे निवेश की तुलना में अधिक निवेश करती हैं।

देश में सर्वाधिक मुनाफे वाली साफ्टवेयर, वित्तीय सेवा, पेट्रोकेमिकल्स और धातु प्रसंस्करण क्षेत्र से जुड़ी कंपनियां भी शोध और नवाचार पर व्यय के मामले में बहुत पीछे हैं। स्थिति यह है कि देश में भारी कमाई करने वाली दस साफ्टवेयर कंपनियां अपनी बिक्री का महज एक फीसद शोध और नवाचार में लगाती हैं, जबकि इस क्षेत्र की वैश्विक कंपनियों का शोध और नवाचार पर औसत व्यय दस फीसद है।

इस मामले में पीछे रहने के कारण ही भारत कई अहम क्षेत्रों में आगे नहीं बढ़ पाया है। यही कारण है कि प्रौद्योगिकी हार्डवेयर, इलेक्ट्रानिक उपकरण, वैमानिकी, विनिर्माण सामग्री, रसायन, औद्योगिक अभियांत्रिकी, औषधि और वाहन क्षेत्रों में दुनिया के बाजार में भारतीय कंपनियों की पहुंच बहुत सीमित है।

शोध और नवाचार के बहुआयामी लाभ होते हैं। इसके आधार पर किसी देश में विभिन्न देशों के उद्यमी और कारोबारी अपने उद्योग-कारोबार शुरू करने संबंधी निर्णय लेते हैं। पूरी दुनिया की सरकारें भी वैश्विक नवाचार सूचकांक को ध्यान में रखकर अपने वैश्विक उद्योग-कारोबार के रिश्तों के लिए नीति बनाती हैं। जैसे-जैसे भारत में शोध और नवाचार बढ़ रहा है, वैसे-वैसे इसके लाभ दिखाई देने लगे हैं।

इसके चलते हुए अमेरिका, यूरोप और एशियाई देशों की बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने ‘ग्लोबल इन हाउस सेंटर’ (जीआइसी) तेजी से शुरू करती दिखाई दे रही हैं। ख्याति प्राप्त वैश्विक वित्तीय और वाणिज्यिक कंपनियां भारत में अपने कदम तेजी से बढ़ा रही हैं। इससे देश में प्रतिस्पर्धा का स्तर और रोजगार के अवसर बढ़ रहे हैं।

कोई छह-सात दशक में अमेरिका शोध और नवाचार पर अधिक खर्च करके सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, दवा, अंतरिक्ष अन्वेषण, ऊर्जा और अन्य तमाम क्षेत्रों में तेजी से आगे बढ़ कर दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बना है। भारत को भी आर्थिक शक्ति और विकसित देश बनने के लिए आरएंडडी की ऐसी सुविचारित रणनीति पर आगे बढ़ना होगा, जिससे सरकार, निजी क्षेत्र और शोध संस्थानों के बीच सहजीविता और समन्वय के सूत्र आगे बढ़ाए जा सकें।

खासकर देश में बड़ी कंपनियों के भीतर भी शोध और विकास पर निवेश बढ़ाना होगा। उम्मीद है कि सरकार और देश के उद्योग-कारोबार जगत द्वारा देश के तेज विकास और आम आदमी के आर्थिक-सामाजिक कल्याण के मद्देनजर दुनिया के विभिन्न विकसित देशों की तरह भारत में भी शोध और नवाचार पर जीडीपी की दो फीसद से अधिक धनराशि व्यय करने की डगर पर आगे बढ़ा जाएगा।

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First published on: 02-03-2023 at 22:43 IST
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