विनोद के. शाह
देश की अड़तीस नदियां सर्वाधिक प्रदूषित मानी गई हैं। उनके पानी में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है। बेतवा नदी भी उनमें शामिल है। भोपाल के नजदीक रायसेन जिले के छोटे से गांव झिरी की विंध्य पहाड़ियों से निकली बेतवा अपने उद्गम स्थल से चंद किलोमीटर की दूरी पर ही गंदे नाले में तब्दील हो जाती है।
नदियां जीवनदायिनी हैं। मगर अत्यधिक बारिश के बाद भी शीत ऋतु के दौरान ही नदियों का सूख जाना भविष्य में नदियों के समाप्त हो जाने का पूर्व संकेत है। नदियों के किनारे भले धार्मिक स्मारक खड़े हैं, जनता जल का आचमन भी करती है, मगर समाज और सरकार ने नदियों को गंदगी समेटने, रेत खनन और कृषि सिंचाई जल स्रोत से अधिक की मान्यता नहीं दी है।
संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिर्पोट बताती है कि विश्व की छब्बीस फीसद आबादी तक सुरक्षित पेयजल की पहुंच नहीं है। पूरे विश्व के सामने जलवायु परिवर्तन से पर्यावरण को बचाना और मानवाधिकार के रूप में आबादी को शुद्व पेयजल उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती है। इस रिर्पोट पर भारत को गंभीर चिंतन-मनन करने की जरूरत है।
देश में जल स्रोतों की हो रही कमी और घटते भूजल स्तर को देखते हुए नदियों को जोड़ने की परिकल्पना की गई है। मगर इसमें पर्यावरण को भारी नुकसान और पेयजल का सुरक्षित न रह पाना, परियोजना के औचित्य पर सवालिया निशान लगाता है। नदियों को आपस में जोड़ने की लगभग तीस योजनाओं पर काम चल रहा है। इनमें बेतवा-केन जोड़ परियोजना महत्त्वपूर्ण। जून 2021 में इसकी आधारशिला रखी गई। मगर दो साल बाद पर्यावरणविदों की निरंतर चेतावनियों के बाद मध्यप्रदेश सरकार खुद संशय में है कि यह परियोजना वास्तविकता में परिवर्तित हो भी पाएगी या मिथक ही साबित होगी।
मध्यप्रदेश से निकल कर उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में युमना में मिलने वाली बेतवा और केन नदी को जोड़ कर दोनों राज्यों की बारह लाख हेक्टेयर कृषि भूमि को सिंचित करने के साथ बुंदेलखंड को पानीदार बनाने की बात कही गई है। इसका अधिकतम खर्च केंद्र सरकार को उठाना है, इसलिए राज्यों ने इसके अच्छे और बुरे प्रभावों पर बहुत अधिक अध्ययन भी नहीं किया है।
देश की अड़तीस नदियां सर्वाधिक प्रदूषित मानी गई हैं। उनके पानी में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक है। बेतवा नदी भी उनमें शामिल है। भोपाल के नजदीक रायसेन जिले के छोटे से गांव झिरी की विंध्य पहाड़ियों से निकली बेतवा अपने उद्गम स्थल से चंद किलोमीटर की दूरी पर ही गंदे नाले में तब्दील हो जाती है। नदी के उद्गम के पास स्थापित मंडीद्वीप औद्योगिक परिसर से इतना अधिक रासायनिक कचरा बेतवा में डाला जा रहा है कि अपने पहले ही पड़ाव, विदिशा, पर यह नदी एक गंदे नाले में बदल जाती है।
विदिशा नगरपालिका छह अलग-अलग नालों के जरिए बगैर शोधन किए गंदगी इसमें मिलाती है, जिससे नदी में घुलनशील कार्बन डाइआक्साइड की मात्रा अपने खतरनाक स्तर को पार कर चुकी है। उद्गम से कुछ ही किमी की दूरी पर बेतवा जल का पीएच मान 6.5 के तय मानक से बहुत अधिक, 9.03 हो चुका है। नदी में मिलने वाला चोरघाट नाला, जो विदिशा सहित राजधानी भोपाल का निस्तार लेकर आता है, नदी से बेरोक-टोक मिलता है।
कारखानों के खतरनाक रसायनों और त्योहारों के दौरान मूर्ति विर्सजन से नदी में जलचरों का जीवन ही समाप्त हो चुका है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में प्रत्येक दस-बीस किमी की दूरी पर निस्तार की गंदगी को समेटती यह नदी आगे बढ़ती, जहरीली बनती जाती है। पारीछा ताप बिजलीघर की चपेट में आकर इस नदी में मशीनों का ग्रीस, तेल और राख मिल कर पानी को इतना जहरीला बना देते हैं कि नदी किनारे के गांवों के पशुपालक नदी के पानी को जानवरों के पीने लायक भी नहीं मानते हैं। नदी के अस्तित्व के संकट को विदिशा के पास हलाली नदी का बांध अपने पानी से नदी की टूटती सांसों को समय-समय पर जीवनदान देता रहता है।
इस जहरीले नदी जल को केन-बेतबा जोड़ परियोजना के माध्यम से केंद्र सरकार सूखे से बेहाल बुंदेलखंड की प्यास बुझाने की उम्मीद जगा रही है। सन 2005 में केन-बेतवा नदी जोड़ परियोजना की राज्य शासन द्वारा प्रेषित डीपीआर रिर्पोट में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडिया गांव में नदी पर बांध निर्माण द्वारा बेतवा में जल के प्रवाह को निरंतर रखने की योजना सम्मिलित थी।
इस बांध के माध्यम से विदिशा और रायसेन जिलों के एक सौ चालीस गांवों में पेयजल के साथ बासठ हजार दो सौ तीस हेक्टेयर भूमि भी संचित करने का प्रस्ताव था। मगर मध्यप्रदेश सरकार ने डूब क्षेत्र अधिक बता कर मकौडिया बांध निर्माण को योजना से अलग कर दिया है। इस संशोधन के बाद योजना में पेयजल की शुद्धता पर प्रश्नचिह्न लग गया है।
नदी के अंतिम सिरे पर हमीरपुर तक अवैध रेत खनन, नदी किनारों के जंगल को काट कर भूमि पर अतिक्रमण, कंक्रीट के अवैध जंगलों का बेहताशा निर्माण, नदी के बचे अस्तित्व को नष्ट करने की पटकथा लिख चुका है। केन-बेतवा जोड़ परियोजना के तहत पूरे परियोजना क्षेत्र में पचास लाख वृक्ष काटे जाने हैं। इसमें अकेले पन्ना टाइगर रिर्जव क्षेत्र के तेईस लाख वृक्ष काटे जाएंगे। वन क्षेत्र की 6017 हेक्टेयर भूमि भी बांध के डूब क्षेत्र में है, जबकि परियोजना के अंतर्गत दौधन बांध से नौ हजार हेक्टेयर भूमि को डूबना है।
दौधन बांध से 220.2 किमी लंबी नहर से केन नदी का पानी वरुआ सागर में बेतवा में छोड़ा जाना है। इस जोड़ के माध्यम से बासठ लाख लोगों को पेयजल उपलब्ध कराने का सपना है। इसी खुली नहर के पानी का सिंचाई में भी उपयोग होना है। कृषि में इस्तेमाल रसायनों और कीटनाशकों से प्रदूषित नहर जल को उस बेतवा नदी में डाला जाना है, जिसे पहले ही नालों ने जहरीला बना दिया है। यह प्रदूषित नदी पेयजल के रूप में बुंदेलखंड की कैसे प्यास बुझाएगी? यह योजना पर सवालिया निशान है।
नमामि गंगे परियोजना के जरिए देश भर की नदियों को शुद्ध करने की कोशिश की जा रही हैं, मगर केन और बेतवा के उद्गम में मौजूद प्रदूषण को कम करने के प्रयास अभी तक नहीं किए गए हैं। गर्मी में बेतवा नदी अपने उद्गम से लेकर मध्यप्रदेश राज्य की सीमा में सिर्फ निस्तार और औद्योगिक इकाइयों से छोड़े गए पानी का संवाहक बनी रहती है। इसमें हलाली बांध का पानी का छोड़ कर इसे बहने योग्य बनाया जाता है। मगर किनारों पर स्थित नगरीय प्रशासन इसे पेयजल के रूप में भी उपलब्ध कराता है।
हमीरपुर में, जहां बेतवा और केन यमुना में मिलती है, बेतबा जल का टीडीएस 900 मिली ग्राम प्रतिलीटर और केन का 600 मिली प्रतिलीटर है। जबकि पेयजल के रूप में 200 से 500 टीडीएस की मात्रा पीने योग्य मानी जाती है। यमुना की प्रदूषण रिपोर्ट में बेतवा और केन के संगम से यमुना के प्रदूषण को रेखांकित किया गया है। इन हालात में प्रस्तावित परियोजना के माध्यम से जल के किस सुरक्षित स्तर तक बुंदेलखंड की जनता की प्यास बुझाने की उम्मीद की जाती है?
बेतवा के उद्गम को निरंतर प्रवहमान बनाए बिना इसे मानव उपयोगी बना पाना भी कठिन ही बना रहेगा। केन-बेतवा जोड़ परियोजना में बेतवा नदी के उद्गम के पास मकौडियां बांध बनाने का प्रस्ताव विशेषज्ञों ने इसीलिए रखा था कि नदी का प्रवाह निरंतर गतिमान बना रहे। जलवायु परिवर्तन की वजह से गंगा और सिंधु जैसी विशाल नदियों के प्रवाह में कमी की चेतावनी जारी की जा रही है, लेकिन बेतवा नदी पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को लेकर अभी तक सरकार चुप्पी ही साधे हुई है, जबकि केन-बेतवा जोड़ का लाभ और जल शुद्धता बेतवा नदी के निरंतर प्रवाह पर ही निर्भर है।