ब्रह्मदीप अलूने
नोविचोक नर्व एजेंट एक रासायनिक पदार्थ है जिसे रूस की खुफिया एजेंसी अपने दुश्मनों के खिलाफ अचूक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती रही है। इससे बच पाना नामुमकिन है। लेकिन ब्लॉगर एलेक्सी नवेलनी न केवल इस जहर से बच निकलने में कामयाब रहे, बल्कि उन्होंने रूस के सर्वसत्तावादी पुतिन की राजनीतिक सत्ता को हिला कर रख दिया है।
नवेलनी को कुछ महीने पहले जहर देकर मारने की आशंका के बीच इलाज करवाने जर्मनी जाना पड़ा था और इसके बाद वहां उनके इस दावे की पुष्टि भी हुई थी। हाल में नवेलनी जैसे ही इलाज करवा कर रूस लौटे तो उन्हें हिरासत में ले लिया गया। इसके बाद रूस में पुतिन विरोधी प्रदर्शनों की बाढ़-सी आ गई है। देश के कई शहरों और कस्बों में जिस प्रकार नवेलनी के पक्ष में लोग लामबंद हो रहे हैं, वह अभूतपूर्व है। ऐसे में पुतिन की चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।
दरअसल समतामूलक वर्गविहीन समाज उदार, खुलेपन और स्वतंत्रता का पक्षधर होता है। सन 1917 में हुई रूस की क्रांति निरंकुश, एकतंत्री, स्वेच्छाचारी जारशाही की बंदिशों से आजाद होने के लिए ही हुई थी, जिसके बाद रूस में कुलीन जमींदारों, सामंतों, पूंजीपतियों आदि की आर्थिक और सामाजिक सत्ता को समाप्त करते हुए विश्व में मजदूर और किसानों की प्रथम सत्ता स्थापित हुई। वर्ष 1991 के बाद रूस में भारी परिवर्तन हुए, लेकिन रूस के लोगों का स्वभाव और विचार समतामूलक ही बना रहा। जबकि पुतिन की आर्थिक नीतियां रूस की साम्यवादी नीतियों से मेल नहीं खाती हैं।
बोरिस येल्तसिन के अल्प कार्यकाल के बाद पुतिन के नेतृत्त्व में रूस ने लंबा सफर तय किया है और इस समय वे सत्ता के सबसे शक्तिशाली केंद्र बन गए हैं। किसी भी जनतांत्रिक देश में किसी एक पार्टी का लंबे समय का कार्यकाल निरंकुशता को बढ़ावा देने की आशंका को बढ़ाता है और विपक्ष को खत्म करने की ओर अग्रसर होने लगता है।
रूस में पिछले कुछ सालों से यही सब देखने में आ रहा है। पुतिन की नीतियों के आलोचक नवेलनी के पहले भी पूर्व जासूसों, पत्रकारों और राजनेताओं को निशाना बनाने की घटनाएं हो चुकी हैं। रूस की सीक्रेट सर्विस के दो एजेंटों एलेक्जेंडर लित्वीनेन्को पर रेडियोएक्टिव पोलोनियम से 2006 में हमला हुआ था, जबकि सर्गेई स्क्रीपाल को जहरीले नर्व एजेंट नोविचोक से 2018 में लंदन में निशाना बनाया गया था।
नवेलनी को रूस में भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखने और लोगों को लामबंद करने के लिए जाना जाता है। वे रूस में इतने लोकप्रिय हैं कि देश के कई क्षेत्रों के स्थानीय चुनावों में उनके समर्थक तक जीत जाते हैं। उन्हें शासन में सुधार के एक विश्वसनीय चेहरे के रूप में पहचान हासिल है।
उन्होंने 2018 में राष्ट्रपति चुनाव में अपनी उम्मीदवारी जताने की कोशिश भी की थी, लेकिन उन्हें चुनाव न लड़ने देने की कोशिशों के तहत एक आरोप में दोषी ठहरा कर चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था। इन घटनाओं से नवेलनी की लोकप्रियता में वृद्धि ही हुई और अब वे पुतिन के खिलाफ विरोध का सशक्त चेहरा बन गए हैं।
इसीलिए उन्हें लेकर रूस की सरकार लगातार सख्त रुख अपना रही है। जबकि नवेलनी और उनके समर्थक दावा कर रहे हैं कि रूस की सरकार उन्हें जेल में ही रखना चाहती हैं क्योंकि वे घोटालों और भ्रष्टाचार का पदार्फाश करते हैं। बीते कुछ सालों में नवेलनी ने रूस के कई क्षेत्रों में ऐसे युवाओं का नेटवर्क खड़ा कर लिया है जो स्थानीय मुद्दों को उठाते हैं, चुनाव लड़ते हैं और प्रदर्शन भी आयोजित करते हैं। इसी वजह से रूस में सत्ताधारी लोग उन्हें अपने लिए खतरा मानने लगे हैं।
लेकिन यह जानना भी जरूरी है की नवेलनी पुतिन के लिए चुनौती क्यों समझे जाने लगे हैं। वास्तव में एलेक्सी नवेलनी एक विपक्षी कार्यकर्ता हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के कई बड़े मामलों की जांच की है और रूस के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। वे रूस के सोशल मीडिया में बहुत लोकप्रिय हैं और भ्रष्टाचार के खिलाफ उनके खुलासे को यूट्यूब चैनल पर करोड़ों लोग देख चुके हैं। वे खुल कर पुतिन और उनकी पार्टी की आलोचना कर उसे ठगों और चोरों की पार्टी बताते हैं।
यहीं नहीं वे तथ्यों के साथ पुतिन की नीतियों की आलोचना करते हैं। नवेलनी को रूस की खुफिया एजेंसी द्वारा निशाना बनाने के दावे पर विश्वास इसलिए भी किया जा सकता है क्योंकि पुतिन केजीबी के एजेंट और अधिकारी रहे हैं और उन्हें अपने देश की खुफियां एजेंसी का भरोसा प्राप्त है, जिसके बूते उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत और आक्रामक राजनेता के रूप में छवि बनाई है।
इन सबके बीच पुतिन ने अपनी सेना को आधुनिक सैन्य ताकत के रूप में नई पहचान दिलाई है और वे सेना की भी एकमात्र पसंद के रूप में उभरे है। रूस के लोग पुतिन की नीतियों को पसंद तो करते हैं, लेकिन युवाओं को लगता है कि इससे देश में लोकतंत्र कमजोर हुआ है और पुतिन अधिनायकवादी शासन व्यवस्था को बढ़ावा दे रहे है। खासकर पूंजीपतियों को लेकर उनकी नीतियां रूस के समतामूलक वर्गविहीन समाज की मान्यता के ठीक उलट हैं।
रूस की सत्ता में बने रहने के लिए पुतिन ने पूंजीपतियों को छूट देकर यह तय कर दिया कि मुल्क के सियासी मामलों में अब वे दखल नहीं दे सकेंगे। इससे पूंजीपति अपनी दौलत सुरक्षित रखने और उसे बढ़ाने में कामयाब तो हो रहे हैं, लेकिन इससे रूस में उदारवाद का अंत हो गया है। रूस में पुतिन की लोकप्रियता तो शिखर पर है, पर साथ ही रूस में उन्हें एक ऐसे राष्ट्रपति के तौर पर देखा जाने लगा है जिसका लोकतंत्र के प्रति नजरिया काफी हद तक संकीर्ण है।
नवेलनी को वैश्विक स्तर पर मिलता समर्थन भी पुतिन को परेशान कर रहा है। उन्हें अधिक समय तक जेल में रखने के प्रयास से रूस की वैश्विक बदनामी हो सकती है। रूस में शांतिपूर्ण और लोकतंत्र की बहाली की कोशिश करने के दावों के साथ नवेलनी का नाम इस बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए प्रस्तावित हुआ।
नवेलनी और मीडिया को रूस में निशाना बनाने के बाद यूरोप खुल कर रूस की आलोचना कर रहा है। दुनियाभर में आतंकवादी समूहों द्वारा रासायनिक हमलों की आशंका बढ़ी है और इसलिए रूस की सरकार द्वारा अपने विरोधियों पर इसका प्रयोग वैश्विक चिंता को बढ़ाने वाला है।
जबकि दुनियाभर में एक सौ नब्बे देशों ने वैश्विक रसायनिक हथियार संधि पर हस्ताक्षर किए हैं, इनमें रूस भी शामिल है। एस्तोनिया, लातविया और लिथुआनिया जैसे देश नवेलनी की गिरफ़्तारी के लिए जिम्मेदार रूसी अधिकारियों के खिलाफ कड़े प्रतिबंधों की मांग कर रहे हैं। पोलैंड के राष्ट्रपति एंद्रेज डूडा ने भी नवेलनी की गिरफ़्तारी के बाद यूरोपीय संघ से रूस पर प्रतिबंध बढ़ाने की अपील की है, वहीं फ्रांस के विदेश मंत्री ने रूस की सत्ता का विरोध प्रदर्शन के प्रति व्यवहार को अधिनायकवादी शासन की तरह बताया है।
पुतिन ने अपने शासनकाल में राष्ट्रवाद और धर्मवाद की राजनीति को देश में निरंतर बढ़ावा दिया है। इससे रूस का बहुसांस्कृतिक ढांचा टूट रहा है। लोग अब इसे रूस की वैश्विक पहचान के लिए भी संकट की तरह देख रहे हैं। इन सबके बीच पुतिन राजनीतिक सत्ता को जकड़ कर रखने वाले नेता के रूप में भी प्रचारित हुए हैं, जिससे जनता की नाराजगी बढ़ती हुई दिखाई दे रही है।
पुतिन की नीतियों के विरोध को लेकर नवेलनी को रूस में भारी जन समर्थन मिल रहा है। पुलिस की चेतावनियों को नजरअंदाज कर लोग नवेलनी की रिहाई के लिए रैलियां निकाल रहे हैं। जाहिर है, अमेरिका में ट्रंप के अधिनायकवादी व्यवहार के बाद उनकी विदाई का वैश्विक असर दिखने लगा है।