विशेषज्ञ बताते हैं कि कैंसर का इलाज करा रहे बहुत सारे मरीज मानते हैं कि कैंसर पीढ़ी-दर-पीढ़ी होने वाली बीमारी है, जबकि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार सिर्फ पांच फीसद कैंसर मां-बाप से आगे बच्चों को होता है। पंजाब में कैंसर की अधिक दर के पीछे कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को एक कारण माना गया है।
कोरोना काल में कैंसर, टीबी और हृदयाघात जैसी बीमारियों के आंकड़े सामने नहीं आ पाए थे। अब आए कैंसर के ताजा आंकड़े देश की भयावह स्थिति को दर्शाते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, और चंडीगढ़ में कैंसर रोगियों की संख्या लगातार बढ़ी है। खुद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने कुछ दिनों पहले राज्यसभा में आधिकारिक आंकड़े पेश करते हुए बताया कि 2020 और 2022 के बीच देश में कैंसर के अनुमानित मामले और इसके कारण होने वाली मौतों की दर में वृद्धि हुई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के अनुसार, 2020 में विभिन्न राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 13,92,179 थी और यह 2021 में बढ़ कर 14,26,447 और 2022 में 14,61,427 हो गई। भारत में कैंसर से अनुमानित मृत्यु दर 2020 में 7,70,230 थी और यह 2021 में बढ़ कर 7,89,202 और 2022 में 8,08,558 हो गई।
एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के आधार पर स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत राष्ट्रीय कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग, आघात रोकथाम और नियंत्रण कार्यक्रम (एनपीसीडीसीएस) के तहत राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
कैंसर एनपीसीडीसीएस का अभिन्न हिस्सा है और यह कार्यक्रम बुनियादी ढांचे को मजबूत करने, मानव संसाधन विकास, स्वास्थ्य संवर्धन और कैंसर की रोकथाम के लिए जागरूकता पैदा करने, उसके शीघ्र निदान, प्रबंधन और कैंसर सहित गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) के इलाज के लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करने पर केंद्रित है।
एनपीसीडीसीएस के तहत, 707 जिला एनसीडी केंद्र, 268 जिला देखभाल केंद्र और 5,541 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र स्थापित किए गए हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत और व्यापक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के एक हिस्से के रूप में सामान्य गैर-संचारी रोगों, यानी मधुमेह, उच्च रक्तचाप और सामान्य कैंसर की रोकथाम, नियंत्रण और जांच के लिए जनसंख्या आधारित पहल भी शुरू की गई है। इस पहल के तहत, तीस वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों को तीन सामान्य कैंसर- मुख, स्तन और गर्भाशय ग्रीवा की जांच के लिए लक्षित किया गया है।
2022 में कैंसर के मामलों की अनुमानित संख्या 1461427 थी, जिसमें पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा थीं। महिलाओं की संख्या 749251 थी, जबकि पुरुषों की संख्या 712176 थी। महिला और पुरुषों में सबसे अधिक कैंसर पाचन तंत्र के अंगों (2,88,054), स्तन (2,21,757), प्रजनन प्रणाली (2,18,319), मुख (1,98,438) और श्वसन तंत्र (1,43,062) में होता है।
महिला और पुरुषों में 74 साल की उम्र तक कैंसर पनपने का जोखिम नौ में से एक व्यक्ति को रहा है। पुरुषों में फेफड़ों के कैंसर के लिए 67 में से एक और महिलाओं में स्तन कैंसर 29 में से एक का जोखिम रहा है। भारतीय चिकित्सा परिषद अनुसंधान के दिसंबर 2022 के आंकड़ों के मुताबिक देश में स्तन कैंसर के लगभग 1,82,000 मामले पाए गए हैं।
2030 तक ये मामले बढ़ कर ढाई लाख तक पहुंच सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अनुमान के मुताबिक, 2018 में कैंसर से कुल छियानबे लाख मौतें हुर्इं थीं। इनमें से सत्तर फीसद मौतें गरीब देश या भारत जैसे मंझोली आय वाले देशों में हुर्इं। इसी रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कैंसर से 7.84 लाख मौतें हुर्इं। यानी कैंसर से हुई कुल मौतों की आठ फीसद मौतें अकेले भारत में हुर्इं।
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, और चंडीगढ़ में कैंसर के रोगियों की संख्या बढ़ी है। पंजाब में कैंसर के मामले 2018 में 36801, 2019 में 37744 और 2020 में बढ़ कर 38636 हो गए। हरियाणा में 2018 में 27665, 2019 में 28453 और 2020 में 29219 कैंसर के मामले पाए गए। हिमाचल में 2018 में 8012, 2019, 8589 और 2020 में 8777 मामले पाए गए। चंडीगढ़ में 2018 में 966, 2019 में 994, 2020 में 1024 मामले पाए गए।
मौजूदा समय में पंजाब में एक लाख लोगों पर नब्बे मरीज कैंसर से पीड़ित हैं। पिछले सात सालों में हर साल औसतन 7586 नए मामले आए। भले सरकार कैंसर पीड़ितों के इलाज पर करोड़ों रुपए खर्च करने का दावा कर रही है, लेकिन जागरूकता की कमी के चलते इसकी कहानी उल्टी है।
आज भी कई महिलाएं शर्म और डर के कारण बीमारी बताने को तैयार नहीं हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि कैंसर का इलाज करा रहे बहुत सारे मरीज मानते हैं कि कैंसर पीढ़ी-दर-पीढ़ी होने वाली बीमारी है, जबकि चिकित्सा विज्ञान के अनुसार सिर्फ पांच फीसद कैंसर मां-बाप से आगे बच्चों को होता है। पंजाब में कैंसर की अधिक दर के पीछे कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को एक कारण माना गया है। दक्षिण-पश्चिमी पंजाब के कपास उगाने वाले जिलों में कैंसर की असामान्य रूप से उच्च घटनाएं हैं, जो अन्य कारकों के साथ कीटनाशकों के उपयोग से जुड़ी हुई हैं।
दुनिया भर के देशों में कैंसर के खिलाफ जंग जारी है। मगर जिस तेजी से चिकित्सा के उपाय खोजे जा रहे हैं, उससे अधिक तेजी से इसका प्रसार हो रहा है। हालांकि इस रोग से मुक्ति के लिए देसी पद्धति से भी इलाज की संभावनाएं तलाशने के कई प्रयास हुए हैं। उनमें कुछ प्रयास आहार संबंधी बदलाव करके भी इलाज करने के किए गए हैं।
जादवपुर विश्वविद्यालय के चिकित्सा विभाग में ऐसा ही एक प्रयोग किया गया, जिसमें दैनंदिन आहार में उपयोग होने वाली वस्तुओं से बनी एक औषधि सर्वपिष्ठी का परीक्षण किया गया। किसी दवाई की प्रभावकारिता का स्तर सुनिश्चित करने के लिए सामान्यतया दो प्रकार का परीक्षण किया जाता है- पहला, औषधीय (फार्माकोलाजिकल) परीक्षण और दूसरा विष विद्या संबंधी (टोक्सीकोलाजिकल) परीक्षण।
ये परीक्षण आयातित सफेद चूहों पर किए गए। पशु शरीर में कैंसर कोशिकाओं को प्रविष्ट कराया गया और जब ट्यूमर निर्मित हो गया, तब दवा देना शुरू किया गया। ‘पोषक ऊर्जा’ के परीक्षण की स्थिति में चौदह दिनों बाद जो प्रतिक्रियाएं देखी गर्इं, उनमें कोशिकाओं की संख्या स्पष्ट रूप से कम होना शुरू हो गई थी। पशु शरीर में कोई अल्सर पैदा नहीं हुआ।
ट्यूमर विकास दर छियालीस प्रतिशत तक कम हो गई थी और दवा की विषाक्तता लगभग शून्य थी। ऐसे सकारात्मक परिणाम हाल के समय में नहीं देखे गए थे। इस औषधि में कैंसर को रोकने और उससे लड़ने की अपरिमित संभावनाएं हैं। परीक्षण करने वाले डा चटर्जी के निष्कर्षों से यह साबित हो गया है कि यह औषधि कैंसर रोगियों के लिए बहुत कारगर है। आधुनिक चिकित्सा के साथ-साथ इसका उपयोग भी कैंसर रोगियों के उपचार में कारगर पाया गया है। पर यह अभी बाजार में इसलिए उपलब्ध नहीं है कि इसे दवाओं को मान्यता प्रदान करने वाले संगठनों ने स्वीकृति नहीं दी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि आपके कैंसर के उपचार में कुछ दिनों की देरी भी घातक हो सकती है। दूसरी सकारात्मक बात यह है कि हम थायराइड, गर्भाशय और स्तन कैंसर जैसे कुछ प्रकार के कैंसर के लगभग सौ फीसद इलाज के करीब पहुंच गए हैं। टेस्टिकुलर और थायरायड जैसे कैंसर को लेकर हम आसानी से कह सकते हैं कि ठीक होने की सौ फीसद संभावना है, लेकिन कैंसर के अन्य रूपों जैसे पेनक्रिएटिक के मामले में बचने की संभावना कम है। यह कहना मुश्किल है कि किस अनुसंधान से हम इलाज के करीब पहुंचेंगे। हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि उपचार को लेकर दवाओं, कीमो और रेडिएशन के जरिए बेहतर हो रहे हैं।