खुदरा महंगाई में लगातार दो महीने बढ़ोतरी होने के बाद गिरावट दर्ज की गई है। बावजूद इसके, खुदरा महंगाई रिजर्व बैंक द्वारा तय महंगाई दर की ऊपरी सीमा छह फीसद से ऊपर बनी हुई है। अक्तूबर महीने में खुदरा महंगाई में गिरावट दर्ज होने के बाद रिजर्व बैंक का विश्वास महंगाई को नियंत्रित करने की अपनी मौजूदा नीति पर बढ़ा है और इसी वजह से उसने रेपो दर में फिर से बढ़ोतरी की है। केंद्रीय बैंक के इस रुख से कर्ज महंगे होंगे और बैंकों की पूंजी लागत बढ़ जाएगी, जिसके कारण उन्हें फिर से ऋण दर बढ़ानी होगी।
महंगी ऋण दर की वजह से सूक्ष्म, लघु, मझोले और बड़े उद्योग ऋण लेने से परहेज कर रहे हैं, जिससे आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ने लगी हैं। सितंबर की तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर 6.3 फीसद दर्ज की गई, जबकि पिछली तिमाही में यह 13.5 फीसद थी। कोरोना महामारी के बाद उधारी में तेज उठाव और रेपो दर में वृद्धि की वजह से बैंकों को जमा बढ़ाने पर जोर देना पड़ रहा है, लेकिन पिछले बारह महीनों में बारह सरकारी बैंकों में से महज चार ने जमा में दो अंकों की वृद्धि दर्ज की, जबकि एक को छोड़ कर अन्य बैंकों की उधारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। निजी बैंकों में भी ऐसे ही हालात हैं। सभी सूचीबद्ध निजी बैंकों में से केवल दो बैंकों ने ऋण के मुकाबले जमा में अधिक वृद्धि दर्ज की। हालांकि, बैंक जमा पर ब्याज दर बढ़ा और बैंक बांड के जरिए भी पूंजी जुटाने की कोशिश कर रहे हैं।
बैंकों की शुद्ध ब्याज आय में समग्र रूप से बाईस फीसद की तेजी आई है। सरकारी बैंकों की शुद्ध ब्याज आय में बीस फीसद की वृद्धि हुई है, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों के शुद्ध ब्याज आय में 24.5 फीसद की। बैंकों की शुद्ध ब्याज आय में बढ़ोतरी का कारण उधारी के उठाव में तेजी आना है, लेकिन बैंक जमा में उधारी के अनुपात में वृद्धि नहीं हो पा रही है। उधारी और जमा दर में भारी अंतर से बैंकों के समक्ष तरलता का संकट पैदा होने की संभावना बढ़ गई है। आगामी तिमाहियों में कंपनियों और बैंकों का मुनाफा प्रभावित होने की भी गुंजाइश है।
इधर, वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में सरकारी और निजी क्षेत्र के बैंकों के मुनाफे में उल्लेखनीय वृद्धि होने के बाद कहा जा रहा है कि बैंकिंग क्षेत्र की मुश्किलें कम हो गई हैं, लेकिन बैंकों की सेहत को सिर्फ मुनाफे के पैमाने पर नहीं मापा जा सकता। बैंकों के मुनाफे में बढ़ोतरी का एक महत्त्वपूर्ण कारण एनपीए और आकस्मिकता के मद में किए जा रहे प्रावधानों की राशि में उल्लेखनीय कटौती करना है। समग्र रूप से बैंकों ने वित्त वर्ष 2022-23 की दूसरी तिमाही में प्रावधान की जा रही राशि में तेरह फीसद की कटौती की है। निजी बैंकों ने पैंतालीस फीसद, जबकि सरकारी बैंकों ने अठारह फीसद की कटौती की है। इस अवधि में बैंकों के व्यय में बारह फीसद की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि शुल्क आधारित आय में दो फीसद की गिरावट दर्ज हुई है।
समग्र रूप में देखें तो सरकारी बैंकों में पंजाब नेशनल बैंक और बैंक आफ इंडिया को छोड़ कर अन्य सभी सरकारी बैंकों का मुनाफा वित्त वर्ष 2022-23 की सितंबर तिमाही में पिछले साल की सामान अवधि की तुलना में अधिक रहा है। इस तरह, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में बारह सरकारी बैंकों ने 25,685 करोड़ रुपए और चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 40,991 करोड़ रुपए का शुद्ध मुनाफा अर्जित किया, जो पिछले साल के मुकाबले क्रमश: पचास फीसद और 31.6 फीसद अधिक है।
इस अवधि में निजी बैंकों का प्रदर्शन भी शानदार रहा है। अठारह निजी सूचीबद्ध बैंकों में से केवल दो के शुद्ध लाभ में इस अवधि में कमी देखी गई है। इनका शुद्ध लाभ पिछले साल के मुकाबले वार्षिक आधार पर चौंसठ फीसद बढ़ कर 32,150 करोड़ रुपए हो गया। वित्त वर्ष 2022-23 की सितंबर तिमाही में सूचीबद्ध बैंकों का एनपीए घट कर 6.62 लाख करोड़ रुपए रह गया, जिसमें सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 4.87 लाख करोड़ रुपए है। इनका शुद्ध एनपीए 1.68 लाख करोड़ रुपए है, जिसमें सरकारी बैंकों की हिस्सेदारी 1.29 लाख करोड़ रुपए है। मार्च 2018 में सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए 10.4 लाख करोड़ रुपए रहा, जबकि शुद्ध एनपीए 5.2 लाख करोड़ रुपए था।
इस अवधि में सरकारी बैंकों का सकल एनपीए 8.96 लाख करोड़ रुपए था, जबकि शुद्ध एनपीए 4.54 लाख करोड़ रुपए। निजी क्षेत्र के बैंकों का सकल एनपीए 1.29 लाख करोड़ रुपए और शुद्ध एनपीए चौंसठ हजार करोड़ रुपए था। हालांकि,एनपीए में कमी आने का कारण वसूली नहीं है। मार्च 2022 तक बैंकिंग क्षेत्र ने सकल एनपीए में कुल 7 लाख 29 हजार 388 करोड़ रुपए की कमी आई, लेकिन वास्तव में बैंकों ने विगत पांच सालों में बट्टे खाते में डाले गए या माफ किए गए कर्ज से केवल एक लाख 32 हजार 36 करोड़ रुपए की वसूली की है। इस तरह, एनपीए में आई कमी का एक बड़ा कारण कोरोना महामारी के दौरान सरकार और केंद्रीय बैंक दारा एनपीए के नियमों को शिथिल करना और कारोबारियों को नीतिगत और वित्तीय सहायता मुहैया कराना है।
तीन बैंकों को छोड़ कर सभी सूचीबद्ध बैंकों के प्रावधान कवरेज अनुपात (पीसीआर) सितंबर तिमाही में बढ़ा है, जो यह बताता है कि बैंकों की ‘बैलेंस शीट’ पहले से मजबूत हुई हैं। आइडीबीआइ बैंक का प्रावधान कवरेज अनुपात 97.86 फीसद है, जबकि 96.06 फीसद पीसीआर के साथ बैंक आफ महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है। दो निजी बैंकों को छोड़ कर सभी सूचीबद्ध बैंकों का प्रावधान कवरेज अनुपात सत्तर फीसद से अधिक है, लेकिन इसे अपेक्षित नहीं कहा जा सकता। बैंकों को पीसीआर के फीसद में और बढ़ोतरी करने की जरूरत है, ताकि उनकी ‘बैलेंस शीट’ की सेहत में और भी सुधार आ सके।
निस्संदेह, चालू वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में बैंकों के मुनाफे में बेहतरी आई है, लेकिन बैंकों का प्रदर्शन सभी मानकों पर अब भी बेहतर नहीं हुआ है। मुनाफे में बेहतरी आने का कारण गैर निष्पादित संपत्तियों और आकस्मिक मद में किए जा रहे प्रावधान में कटौती करना है, लेकिन एनपीए में कमी आने का एक बड़ा कारण सरकार द्वारा उद्योगों और कारोबारियों को दी जा रही सहायता है।
ब्याज आय में बढ़ोतरी का कारण उधारी में तेजी आना है, लेकिन जमा में वृद्धि न होने से आने वाली तिमाहियों में बैंकों के मुनाफे में कमी आने की संभावना है। बैंकों के व्यय में भी चालू वित्त वर्ष की सितंबर तिमाही में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और शुल्क आधारित आय में कमी आई है। ऐसे में जरूरत है कि बैंक अपनी खामियों को दूर करें, एनपीए को कम करने की तरफ ध्यान दें, सस्ती दर पर जमा बढ़ाने की कोशिश करें, व्यय में कटौती करें।