जीवन को बदलती तकनीक
आज दुनिया के समक्ष सबसे बड़ा संकट ऊर्जा के स्रोतों का खत्म होना है। अगर इनका कोई ठोस विकल्प जल्द ही नहीं खोजा गया तो वह वक्त दूर नहीं, जब पूरी दुनिया अंधेरे में डूब जाए। इसलिए वैज्ञानिक अब नित नए ऊर्जा विकल्पों की तलाश में जुटे हैं। हाल में वैज्ञानिकों ने सस्ते नैनोट्यूब हाइड्रोजन र्इंधन की खोज की है, जो सस्ती ऊर्जा का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

दुनिया में कई ऐसी खोजें हो रही हैं, जो हमारे जीने का तरीका बदल देंगी। भविष्य के ये आविष्कार मानव जाति के हर पहलू को तेजी से प्रभावित करेंगे और जीवन को बदलने की क्षमता से युक्त होंगे। इसमें पहला है ऑप्टिकल इल्यूजन, जिसका इस्तेमाल युद्ध के समय सेना कर भी सकती है, जिसमें दुश्मन सामने वाले को देख न सके। दूसरा आविष्कार नई तरह की आंखें विकसित करने से संबंधित है। तीसरा चमत्कार होगा भविष्य में जीवाणु से बनने वाली इमारतें और चौथी प्रमुख खोज है अपरिपक्व बच्चे का दिमाग विकसित करने वाला संगीत। इसके अलावा कुछ और भी नई तकनीकें हैं, जो आज की दुनिया के स्वरूप को बदल सकती हैं।
दरअसल, तकनीक ही मानव के विकास का आधार तैयार करती है। आप्टिकल इल्यूजन के बारे में कनाडा की हाईपर स्टील्थ बायोटेक्नोलॉजी का दावा है कि यह बहुत ही हल्के पदार्थ (लाइट बैटिंग मैटीरियल) से बने हैं और इनके पीछे रखा सामान दिखाई नहीं देता है। इस कंपनी का कहना है कि यह पदार्थ किसी वस्तु के आसपास मौजूद रोशनी की दिशा को मोड़ देता है, जिससे यह प्रभाव मिलता है और इस कारण सिर्फ पृष्ठ भाग नजर आता है। इस तकनीक का इस्तेमाल सैन्य उद्देश्य के लिए किया जाएगा।
इसी तरह अमेरिका की यूनिवर्सिटी आफ मिनेसोटा के वैज्ञानिक लोगों में खास तरह की आंखें तैयार करने की तकनीक पर काम कर रहे हैं। ये थ्री-डी प्रिंट वाली बायोनिक आंखें हैं। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि एक दिन इससे दृष्टिहीन लोगों को भी देखने में मदद मिलेगी। हालांकि कुछ कंपनियों ने पहले ही इस तरह की बायोनिक आंखों का प्रत्यारोपण किया है, जैसे रेटिना प्रत्यारोपण, जिसमें चश्मे पर छोटे कैमरे का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन थ्री-डी प्रिंट वाली आंखें कुछ इस तरह काम करती हैं कि रेटिना की कोशिकाएं जो रोशनी को ग्रहण करती हैं, उसे विद्युतीय संकेतों में बदल देती हैं और ये संकेत मस्तिष्क तक पहुंचते हैं।
इसलिए आप्टिकल से इलेक्ट्रिकल की इस प्रक्रिया को उस डिवाइस का इस्तेमाल करते हुए फिर से दोहराने की जरूरत होती है, जो आंख की तरह ही घुमावदार आकार में हो और इस तकनीक में यही किया जाता है। वैज्ञानिकों का मकसद प्रकाश के प्राप्तकर्ता को नरम सतह पर स्थापित करना है, जिसे बिना बाहरी कैमरे के एक आंख पर लगाया जा सके।
अभी तक जीवाणुओं और विषाणुओं का नाम हमारे भीतर हलचल के साथ ही एक तरह का डर भी पैदा करता रहा है। लेकिन विज्ञान अब इतना आगे निकल चुका है कि इन्हीं जीवाणुओं की मदद से हम अपनी रिहाइश भी तैयार करने में जुटे हैं। वैज्ञानिक जीवाणुओं से इमारतें बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। रेत, जेल और जीवाणु का इस्तेमाल करके ‘जीवित कंक्रीट’ तैयार करने पर काम चल रहा है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी जीवित इमारतों का भविष्य दूर नहीं है।
यह सामग्री खुद अपनी दरारें भर सकेगी और विषाक्त पदार्थों को हवा से सोख भी सकेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि पर्यावरण के लिए कंक्रीट से ज्यादा बेहतर जीवाणुओं से बनी सामग्री है। दुनिया में उत्सर्जित होने वाला आठ फीसद कार्बन डाईआक्साइड सीमेंट से आता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ‘जीवित ईंटों’ में खुद उत्पन्न होने की क्षमता है। ये उतनी ही मजबूत होती हैं जितना इमारतों में आजकल इस्तेमाल होने वाला चूना। हालांकि यह अभी शुरुआत है, लेकिन संभावनाएं अंतहीन हैं।
अपरिपक्व बच्चे का दिमाग बढ़ाने वाले संगीत पर भी वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। दरअसल, संगीत से मनुष्य का संबंध जन्म से पहले हो जाता है। अध्ययन बताते हैं कि गर्भ में मौजूद बच्चे को संगीत सुनाना उसके मस्तिष्क के विकास में काफी अहम भूमिका निभाता है और इससे तंत्रिका पुलों को भी मजबूती मिलती है। वैज्ञानिकों का मानना है कि बेहद अपरिपक्व मस्तिष्क वाले बच्चों के विकास में संगीत की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है।
खास तरह का संगीत इसमें काफी मददगार साबित हो रहा है। कमजोर नवजात बच्चे के दिमाग को विकसित करने के लिए स्विटजरलैंड यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों ने एक कंपोजर की मदद से एक विशेष संगीत तैयार किया है। इस संगीत में बांसुरी, वीणा और घंटियों का इस्तेमाल हुआ है। शुरुआती जांच से पता चला है कि संगीत सुनने वाले बच्चों का दिमाग बेहतर विकसित हुआ।
टेलीपैथी शब्द का मतलब उस वैज्ञानिक तकनीक से है, जिसमें किसी एक व्यक्ति की सोच किसी दूसरे व्यक्ति तक पहुंचती है, यानी जो आप सोच रहे हैं, उसे हजारों किलोमीटर दूर बैठे व्यक्ति तक पहुंचाया जा सकता है। अब वैज्ञानिकों ने दिमाग से दिमाग के बीच होने वाले संचार को खोज निकाला है। इसे बार्सीलोना के स्टार लैब और फ्रांस के आॅक्सियम रोबोटिक्स इन स्टारबर्ग ने खोजा है। यह परियोजना अभी शुरुआती चरण में है, लेकिन इसमें आठ हजार किलोमीटर की दूरी पर बैठे लोगों के बीच संचार स्थापित करने में सफलता मिल चुकी है। आने वाले समय में आप अपनी सोच किसी को भी इस तकनीक के माध्यम से बता सकते हैं।
अब बात है ऊर्जा की। आज दुनिया के समक्ष सबसे बड़ा संकट ऊर्जा के स्रोतों का खत्म होना है। अगर इनका कोई ठोस विकल्प जल्द ही नहीं खोजा गया तो वह वक्त दूर नहीं, जब पूरी दुनिया अंधेरे में डूब जाए। इसलिए वैज्ञानिक अब नित नए ऊर्जा विकल्पों की तलाश में जुटे हैं। हाल में वैज्ञानिकों ने सस्ते नैनोट्यूब हाइड्रोजन र्इंधन की खोज की है, जो सस्ती ऊर्जा का बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।
अमेरिका की रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कार्बन हाईड्रोजन ईंधन को ऊर्जा की तरह प्रयोग करने का विकल्प खोजा है। मोटे तौर पर समझें तो वैज्ञानिकों ने कार्बन नैनो ट्यूब को विद्युत अपघटन (इलेक्ट्रोलेसिस) की मदद से हाईड्रोजन ईंधन में बदलने का तरीका खोज निकाला है। इसी तरह हमारे चारों तरफ डेटा है। यह किसी भी रूप में हो सकता है, चाहे सेलफोन को ले लीजिए या फिर क्लाउड सर्वर के रूप में। न्यूयार्क की मिशिगन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी डिवाइस बनाई है, जिसकी मदद से ज्यादा से ज्यादा डेटा कम जगह में संग्रहित किया जा सकता है।
खून ही हमारा जीवन है, जो शरीर को चलाने का काम करता है। लेकिन जब हमें अचानक खून की जरूरत पड़ती है और उस समय खून न मिले, तो जान को खतरा हो सकता है। मगर अब कृत्रिम लाल और सफेद रक्त कोशिकाओं की मदद से किसी को भी आसानी से खून मिल सकेगा। चिकित्सा विज्ञानियों ने ओ निगेटिव कोशिकाएं, जो सर्वदाता (यूनिवर्सल डोनर) है, बनाने में कामयाबी हासिल कर ली है। यानी आने वाले समय में किसी को भी खून की कमी नहीं होगी। कैंसर हर साल दुनिया में करोड़ों लोगों की जान ले लेता है, लेकिन अब वैज्ञानिकों ने डीआइएक्सडीसी-1 नाम का एक जीन खोज निकाला है, जो कैंसर को रोकने में कारगर साबित होगा।
सवाल है कि तकनीक को ऐसा कैसे बनाया जा सकता है कि अधिकतम लोगों को यह ज्यादा कुदरती ढंग से सुलभ हो। यह तभी संभव होगा जब कंप्यूटर आपकी आंखों के सामने होगा और आप असल दुनिया और आभासी दुनिया में फर्क तक नहीं कर पाएंगे। यह मिश्रित यथार्थ की दुनिया होगी। यह बुनियादी स्थानांतरण और बदलाव का एक पहलू है। इसका दूसरा पहलू कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) है। यह मेरे लिए, मेरी जिंदगी और परिवार के साथ समाज के लिए भी मायने रखती है। इसलिए कृत्रिम बौद्धिकता वह दूसरा पहलू है, जो इंसान की जिंदगी से लेकर दुनिया की अर्थव्यवस्था तक पर अहम असर डालने जा रही है।