सुरेश सेठ
इन घोषणाओं का एक ही आदर्श होता है, अधिक से अधिक वोट बटोरना और लोगों को चमत्कृत करना। अर्थशास्त्र की दृष्टि से इस बजट में ऐसा नहीं है, बल्कि यह है कि देश की नींव मजबूत हो।
वित्तमंत्री ने चुनाव पूर्व का अंतिम बजट पेश किया। अगले साल आम चुनाव से पहले यह सरकार केवल लेखा खाते का बजट पेश कर पाएगी। यह महत्त्वाकांक्षी नहीं, विकासोन्मुखी बजट है। मध्यवर्ग और वरिष्ठ बुजुर्गों को राहत देने का प्रयास है। एक घोषणा भी कि इस बार राजकोषीय घाटे को 6.5 प्रतिशत से घटाकर 5.9 प्रतिशत कर दिया जाएगा। बेशक यह तभी संभव होगा अगर देश में कर चोरी कम हो। कर संग्रह करने वाले पूरी ईमानदारी से राजस्व एकत्रित करें और लोकलुभावन वादों की बारात सजाते हुए बहुत-सी अनुकंपाएं न बांट दी जाएं। मगर यह बेशक विकासोन्मुखी बजट है।
मूलभूत आर्थिक ढांचे को बनाने का प्रयास है, क्योंकि इसमें 33 प्रतिशत पूंजीगत निवेश परिव्यय बढ़ा दिया गया है। अब यह व्यय दस लाख करोड़ रुपए का होगा। बेशक युवाओं को प्रशिक्षण और कार्यकुशल बनाने के लिए बहुत-सी योजनाएं भी पेश की गई हैं, ताकि वे नए डिजिटल माहौल में अपने आप को बहुत सार्थक और उपयोगी पा सकें।
कोई संदेह नहीं कि यहां लंबी-चौड़ी रोजगार देने की घोषणाएं नहीं हैं, लेकिन कोशिश की गई है कि नौजवानों को इतना सार्थक और सशक्त बना दिया जाए कि नौकरियां उनके पीछे-पीछे चलकर आएं। वित्तमंत्री ने कोशिश की है कि बहुत चौंकाने वाली घोषणाओं के बजाय देश के मूलभूत ढांचे की नींव को इतना सुदृढ़ किया जाए कि देश न केवल आत्मनिर्भरता की राह पर बढ़ चले, बल्कि उस स्वत: विकास के लक्ष्य को भी पा सके, जिसका सपना कोरोना काल से पहले देखा जा रहा था।
जहां तक इस बजट का संबंध है, इसमें एक हमवार रास्ता अख्तियार किया गया है। कोशिश की गई है कि देश की आर्थिक दशा और दिशा पटरी पर आ जाए। देश की अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिले। देश का मूलभूत ढांचा मजबूत हो और इस मजबूती के दम पर ही सरकार उम्मीद कर रही है कि बजट में वित्तीय घाटा कम हो जाएगा।
पहली बार है, जब वित्तीय घाटे को कम करने के लिए लोकलुभावन घोषणाओं से परहेज किया गया है। इन घोषणाओं का एक ही आदर्श होता है, अधिक से अधिक वोट बटोरना और लोगों को चमत्कृत करना। अर्थशास्त्र की दृष्टि से इस बजट में ऐसा नहीं है, बल्कि यह है कि देश की नींव मजबूत हो। फिलहाल, इस बजट में जो कुछ देश के लिए प्रस्तुत किया गया है, उसमें सबसे आकर्षक बातें ये हैं: यह बजट मध्यवर्ग को राहत और नौकरीपेशा के लिए कर में छूट देने वाला बना है।
सबसे ज्यादा यही घोषणा आकर्षित करती है कि अब सात लाख आय तक कोई कर नहीं देना पड़ेगा। पुराने कर ढांचे घटकर पांच हो गए, लेकिन इसके साथ पुरानी कर व्यवस्था को भी लागू रखा है। पुरानी कर व्यवस्था के अनुसार 2.50 लाख की आयकर छूट को बढ़ाकर 3 लाख कर दिया गया है। नई कर व्यवस्था में 80सी के साथ मिलने वाली छूट का लाभ नहीं मिलेगा। चाहे आयकरदाता को छूट है कि वह पुरानी कर व्यवस्था में उसी तरह अपनी रिटर्न भर सकते हैं। मगर लगता है कि नई कर व्यवस्था ही धीरे-धीरे पुरानी कर व्यवस्था की जगह ले लेगी। क्या यह लोगों के बचत प्रोत्साहन पर कुठाराघात नहीं होगा?
रेलों के विकास के लिए 2.40 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया है और जल्द ही साठ-पैंसठ किलोमीटर के फासले की वंदे मैट्रो चलाने का लक्ष्य भी रख दिया गया है। मूलभूत आर्थिक ढांचे के लिए पूंजी निवेश 33 प्रतिशत बढ़ा है। उम्मीद है कि इससे महामारी से प्रभावित लघु और कुटीर उद्यगों को राहत मिलेगी, जिसकी इच्छा इस बजट में की गई है। भारत डिजिटल बनने के लक्ष्य की ओर बढ़े, इसके लिए 5जी संबंधी सौ प्रयोगशालाएं बनाई जाएंगी।
आम आदमी की सुविधा के लिए पहचान-पत्र के तौर पर पैन कार्ड को भी मान्यता मिल गई है और शक्ति का एक प्रस्थान अब नगर निगम भी अपना बांड ला सकेंगे। प्रधानमंत्री आवास योजना की राशि बढ़ा दी गई है। यह 66 प्रतिशत बढ़कर 79 हजार करोड़ रुपए हो गया। अगले तीन साल में आदिवासी छात्रों के लिए 740 एकलव्य माडल स्कूल बनेंगे और उनमें 38,800 शिक्षक और सहायक कर्मचारी नौकरी पाएंगे। पर्यटन विकास और आवागमन के लिए देश में पचास नए हवाई अड्डे बनाए जाएंगे।
कृषि क्षेत्र का लक्ष्य बीस लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। कृषि से जुड़े नवउद्यमों पर यह बजट ध्यान दे रहा है, लेकिन यहां यह ध्यान रखा जाए कि युवा उद्यमी ग्रामीण वर्ग के किसान नौजवान हों, तो बेहतर। देश में नौजवानों की बेकारी एक बड़ी समस्या है। सरकार ने इस बजट में कुछ विशेष घोषणाएं नहीं कीं। नौकरी देने वाले मनरेगा के बारे में मौन क्यों? कोई क्रांतिकारी घोषणा क्यों नहीं? स्किल इंडिया डिजिटल प्रोग्राम के अधीन अलग-अलग राज्यों में तीस स्किल इंडिया सेंटर खुलेंगे।
सैंतीस लाख युवाओं को एप्रेंटिसशिप स्कीम में तीन साल तक छात्रवृत्ति मिलेगी। यह सही है कि नौकरीपेशा वर्ग को आयकर के मोर्चे पर लंबे समय बाद राहत मिली है, लेकिन हमारी मौद्रिक नीति जो बचत बढ़ाने के लिए ब्याज दरें ऊंची करती रही है, उसमें अगर नई आयकर योजना में कुछ बचत प्रोत्साहन भी हो जाता तो अच्छी बात होती, क्योंकि वित्तमंत्री अंतत: नई आयकर उगाहने की योजना को ही प्राथमिकता देना चाहती हैं।
वरिष्ठ नागरिक खाता योजना की सीमा 4.50 लाख से 9 लाख कर दी और संयुक्त खाते की अधिकतम जमा रकम पंद्रह लाख रुपए कर दी है, पर केंद्र सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने का ऐलान किया था, लेकिन कृषि क्षेत्र के लिए ऐसा ठोस ऐलान नजर नहीं आया, जिससे किसान को सीधा फायदा मिले। किस्साकोताह यह कि यह बजट नकारात्मक तो नहीं है, लेकिन बेरोजगारी और महंगाई से जूझने के लिए क्या नए कदम हैं, यह स्पष्ट नहीं होता।
चाहे वित्तमंत्री ने कहा कि हम न केवल इस आर्थिक वर्ष में अपनी विकास दर को बनाए रखेंगे, बल्कि उसे बढ़ाकर सात प्रतिशत तक भी ले जा सकते हैं। मगर रोजाना उपयोग होने वाले सामान तेल, दूध और चावल के दाम बढ़े हैं। रिजर्व बैंक ने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए जो मौद्रिक नीति बनाई, उसकी बढ़ती ब्याज दरों के कारण कर्ज महंगे हो गए। ताजा बजट का बाजार पर यह प्रभाव होगा कि आने वाले दिनों में मोबाइल फोन खरीदना सस्ता हो सकता है, लेकिन चांदी और उससे बने उत्पाद महंगे हो जाएंगे।
इसके अलावा लीथियम आयन बैटरी बनाने में इस्तेमाल सामान पर आयात कर घटा है। हीरों के निर्माण में होने वाली सीड पर शुल्क कम किया गया है। निर्यात को बढ़ावा देने के लिए निर्यात शुल्क कम होगा, लेकिन इससे इनका बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह अनिश्चित है। मगर जो चीजें महंगी हुर्इं, उनमें सिगरेट पर 16 प्रतिशत कर बढ़ गया। रसोई में इलैक्ट्रिक चिमनी पर आयात शुल्क 7.50 से बढ़कर 15 प्रतिशत हो गई।
जहां तक जीएसटी का संबंध है, उसमें किसी किस्म का परिवर्तन नहीं है। इस तरह कम ही उत्पाद हैं जो इस बजट की वजह से सस्ते या महंगे होंगे। वैसे जीएसटी से जुड़े सभी फैसले जीएसटी परिषद करती है, इसलिए पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने वाला कोई फैसला नहीं हुआ है। पंजाब जैसे सरहदी राज्य को कोई विशेष पैकेज नहीं मिला है। इस शिकायत के बावजूद देशभर में इस बजट को लेकर आम और खास में एक सुखद एहसास तो है।