डार्ट अगले साल सितंबर तक अंतरिक्ष में घूमता रहेगा और फिर पृथ्वी से सड़सठ लाख मील दूर जाकर अपने लक्ष्य को निशाना बनाएगा। अगर ऐसा हो गया तो, उसकी कक्षा बदल जाएगी। यह एक बहुत छोटा परिवर्तन लग सकता है, लेकिन एक उल्कापिंड को पृथ्वी से टकराने से रोकने के लिए इतना ही करना है। यह इस तरह का पहला मिशन है। अगर इसमें सफलता मिलती है, तो भविष्य में उन विशाल उल्कापिंडों को धरती पर आने से रोका जा सकेगा, जो यहां जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं।
धरती को उल्काओं (एस्टेरायड) के हमलों से बचाने के लिए अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अंतरिक्ष में मौजूद एक उल्कापिंड को अपने अंतरिक्ष यान से जोरदार टक्कर कराने के लिए फाल्कन राकेट को अंतरिक्ष में रवाना कर दिया है। यह इस तरह का पहला मिशन है। अगर इसमें सफलता मिलती है, तो भविष्य में उन विशाल उल्कापिंडों को धरती पर आने से रोका जा सकेगा, जो यहां जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं।
वैज्ञानिक इस अंतरिक्ष यान से ऐसी तकनीक के परीक्षण की तैयारी कर रहे हैं, जिसे भविष्य में किसी खतरनाक उल्का या उल्कापिंड को पृथ्वी से टकराने से रोका जा सकता है। नासा के इस मिशन का नाम ‘डार्ट मिशन’ है, जिसके आधार पर वह पृथ्वी की ओर आने वाली किसी बड़ी अंतरिक्ष चट््टान को निष्क्रिय करने के लंबे समय से चल रहे प्रस्ताव का मूल्यांकन करेगा। यह अंतरिक्ष यान डिमोफोर्स नामक एक आकाशीय पिंड या आब्जेक्ट से टकराएगा। नासा के वैज्ञानिक यह देखना चाहते हैं कि डिमोफोर्स की गति और रास्ते को कितना बदला जा सकता है।
हालांकि, डिमोफोर्स से पृथ्वी को कोई खतरा नहीं है। यह भविष्य में पृथ्वी की ओर आने वाले ऐसे खतरों से निपटने का तरीका सीखने का पहला प्रयास है, यानी कल को कोई ऐसा पिंड या मलबा धरती की ओर आया, तो उसे कैसे दूर रखा जा सकता है। 24 नवंबर, 2021 को फाल्कन 9 राकेट, डार्ट अंतरिक्ष यान को कैलिफोर्निया के वेंडेबर्ग स्पेस फोर्स बेस से अंतरिक्ष में रवाना कर दिया गया। उल्कापिंड, सौर मंडल के बचे हुए खंड हैं, जिनमें से अधिकांश से पृथ्वी के लिए कोई खतरा नहीं होता। लेकिन जब ऐसी कोई चट््टान सूर्य का चक्कर लगाते हुए पृथ्वी की ओर बढ़ती, तो टक्कर की आशंका हो सकती है।
बत्तीस करोड़ अमेरिकी डालर लागत का डार्ट मिशन, उल्कापिंड की एक जोड़ी को निशाना बनाएगा, जो इस वक्त एक-दूसरे की परिक्रमा कर रहे हैं। ऐसी परिक्रमा को बाइनरी कहा जाता है। इन दोनों में से बड़े उल्कापिंड का नाम है डिडिमोस, जो करीब 780 मीटर में फैला है। डिमोफोर्स करीब 160 मीटर चौड़ा है। डिमोफोर्स के आकार वाले उल्कापिंड के पृथ्वी से टकराने के बाद, कई परमाणु बमों की ऊर्जा जितना असर होगा। इससे लाखों की जान जा सकती है। लेकिन तीन सौ मीटर और इससे अधिक चौड़ाई वाली उल्कापिंड तो पूरे के पूरे महाद्वीप तबाह कर सकते हैं। एक किलोमीटर के आकार वाले पिंड तो पूरी पृथ्वी को खतरे में डाल सकते हैं।
डार्ट अगले साल सितंबर तक अंतरिक्ष में घूमता रहेगा और फिर पृथ्वी से सड़सठ लाख मील दूर जाकर अपने लक्ष्य को निशाना बनाएगा। डार्ट लगभग पंद्रह हजार मील प्रति घंटा की गति से (6.6 किमी प्रति सेकेंड) की गति से डिमोफोर्स से टकराएगा। इससे डिमोफोर्स की दिशा चंद मिलिमीटर ही बदलने के आसार हैं। अगर ऐसा हो गया तो, उसकी कक्षा बदल जाएगी। यह एक बहुत छोटा परिवर्तन लग सकता है, लेकिन एक उल्कापिंड को पृथ्वी से टकराने से रोकने के लिए इतना ही करना है। यह इस तरह का पहला मिशन है। अगर इसमें सफलता मिलती है, तो भविष्य में उन विशाल उल्कापिंडों को धरती पर आने से रोका जा सकेगा, जो यहां जीवन के लिए खतरा बन सकते हैं।
नासा के प्लेनेटरी डिफेंस कोआर्डिनेशन आफिस ने कहा कि इसका प्रभाव अगले साल 26 सितंबर और 1 अक्तूबर, 2022 के बीच देखे जाने की उम्मीद है। उल्कापिंड उस समय पृथ्वी से 6.8 मिलियन मील (1.1 करोड़ किलोमीटर) दूर होगा। इस टक्कर से कितनी ऊर्जा निकलेगी, इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि डिमोफोर्स उल्कापिंड की आंतरिक संरचना को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं है। डार्ट अंतरिक्ष यान का आकार एक बड़े फ्रिज जितना है। इसके दोनों तरफ लिमोसिन के आकार के सौर पैनल लगे हैं।
यह डिमोफोर्स से पंद्रह हजार मील प्रति घंटे की रफ्तार से टकराएगा। वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में इस तरह के छोटे प्रयोग किए हैं, लेकिन अब वास्तविक परिदृश्य में इसका परीक्षण करना चाहते हैं। नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि डिडिमोस-डिमोफोर्स सिस्टम इसलिए बेहतर है, क्योंकि धरती पर मौजूद टेलीस्कोप से इनके बारे में पता लगाया जा सकेगा। जैसे इनकी चमक कैसी है या फिर ये परिक्रमा करने में कितना समय लगाते हैं।
पिछले कई सालों से बेन्नू नाम के एक उल्कापिंड की चर्चा दुनिया भर में हो रही है। कहा जा रहा है कि आने वाले सालों में यह पृथ्वी से टकरा सकता है। आखिर कब पृथ्वी से इसकी टक्कर होगी, इसको लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। लेकिन अब नासा ने सारी अटकलों पर विराम लगा दिया है। नासा के मुताबिक बेन्नू के धरती से टकराने की आशंका बहुत कम है। अगर ऐसा हुआ तो इसकी टक्कर 24 सितंबर, 2182 को हो सकती है। बेन्नू की पृथ्वी से टकराने की आशंका पहले से ज्यादा है, लेकिन वैज्ञानिक इसको लेकर चिंतित नहीं हैं।
गौरतलब कि नासा पहले बेन्नू को लेकर काफी चिंतित था, लिहाजा उसने इस एस्टरायड पर एक अंतरिक्ष यान भेजा। ओसिरिस आरइएक्स के इस अंतरिक्ष यान को 2018 में भेजा गया। 2020 के अंत में उल्कापिंड की सतह पर यह सफलतापूर्वक उतरने में कामयाब रहा। इसके बाद इस यान ने नमूने भेजने शुरू किए। अंतरिक्ष यान ने बताया कि बेन्नू एक बहुत ही डार्क और प्राचीन उल्कापिंड है। नासा के एक बयान में कहा गया है कि बेन्नू की सतह से नमूने जमा कर अंतरिक्ष यान ने भेजा है, जिससे बेहतर भविष्यवाणी करने के लिए सटीक आंकड़ा मिल रहा है।
धरती के बाहर हमें जीवन भले न मिला हो, लेकिन अंतरिक्ष से कई मेहमान हमारे करीब से गुजर जाते हैं। आमतौर पर मंगल और बृहस्पति के बीच के क्षेत्र से आने वाली चट््टानें धरती ही नहीं, सौर मंडल और ब्रह्मांड के जन्म और विकास के कई सवालों का जवाब दे सकती हैं। ये चट््टानें होती हैं उल्कापिंड। उल्कापिंड वे चट््टानें होती हैं जो किसी ग्रह की तरह ही सूरज के चक्कर काटती हैं, लेकिन ये आकार में ग्रहों से काफी छोटी होती हैं। हमारे सौर मंडल में ज्यादातर उल्कापिंड मंगल ग्रह और बृहस्पति की कक्षा में उल्कापिंड क्षेत्र में पाए जाते हैं। इसके अलावा भी ये दूसरे ग्रहों की कक्षा में घूमते रहते हैं और ग्रह के साथ ही सूरज का चक्कर काटते हैं।
करीब साढ़े चार अरब साल पहले जब हमारा सौर मंडल बना था, तब गैस और धूल के ऐसे बादल, जो किसी ग्रह का आकार नहीं ले पाए और पीछे छूट गए, वही इन चट््टानों यानी उल्कापिंडों में तब्दील हो गए। यही वजह है कि इनका आकार भी ग्रहों की तरह गोल नहीं होता। ब्रह्मांड में कई ऐसे उल्कापिंड हैं, जिनकी परिधि सैकड़ों मील की होती है और ज्यादातर किसी छोटे से पत्थर के बराबर होते हैं। ग्रहों के साथ ही पैदा होने के कारण इन्हें अध्ययन करके ब्रह्मांड, सौर मंडल और ग्रहों की उत्पत्ति से जुड़े सवालों के जवाब खोजे जा सकते हैं।
अगर किसी तेज रफ्तार चट््टान के धरती से करीब छियालीस लाख मील से करीब आने की संभावना होती है, तो उसे अंतरिक्ष संगठन खतरनाक मानते हैं। नासा का सेनटरी सिस्टम ऐसे खतरों पर पहले से ही नजर रखता है। इस प्रणाली के मुताबिक जिस उल्कापिंड से धरती को वाकई खतरे की आशंका है, वह अभी साढ़े आठ सौ साल दूर है। हालांकि, वैज्ञानिकों को विश्वास है कि आने वाले वक्त में प्लेनेटरी डिफेंस सिस्टम विकसित कर लिया जाएगा, जिस पर काम पहले ही शुरू हो चुका है।