राजनीति: प्रदूषण और सुशासन
देश में प्रदूषण को रोकने को लेकर नियमों की कमी नहीं है, पर अमल में ला पाना तब संभव होगा जब सहभागी दृष्टिकोण और प्राकृतिक पर्यावरण के साथ दो तरफा भूमिका निभाई जाएगी और ऐसा करना और करवाना सुशासन भरा कदम कहा जाएगा। सुशासन एक गंभीर चेतना और चिंता है जो नागरिक को न केवल विकास देता है, बल्कि समस्याओं के प्रति समावेषी दृष्टिकोण भी बांटता है।

सुशील कुमार सिंह
प्रशासनिक विचारक डॉनहम ने कहा है कि ‘यदि हमारी सभ्यता नष्ट होती है तो ऐसा प्रशासन के कारण होगा’। जाहिर है, सरकार वही अच्छी होती है जिसका प्रशासन अच्छा होता है और जब दोनों अच्छे होते हैं तो सुशासन होता है, जो लोक सशक्तिकरण और लोक कल्याण का परिचायक है। समावेशी विकास से लेकर प्रदूषण की मुक्ति तक सुशासन की आवश्यकता बारंबार रहती है। मगर जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, ऐसी तमाम समस्याओं के चलते सुशासन व्यापक चुनौतियों से घिरता जा रहा है। मौजूदा हालात में तो प्रदूषण सांस पर भारी पड़ रहा है जो सुशासन को भी बौना साबित करने पर तुला है। पिछले कुछ वर्षों से वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बन गया है।
इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि केवल वायु प्रदूषण के चलते भारत में साल 2017 में बारह लाख से ज्यादा लोगों ने जान गंवाई थी और डब्ल्यूएचओ-यूनिसेफ-लांसेट आयोग की ताजी रिपोर्ट को देखें तो पूरी दुनिया में यही तादाद अड़तीस लाख है। और बारीकी से पड़ताल करें तो ये मौतें बाहरी, घरेलू और ओजोन प्रदूषण का मिला-जुला नतीजा रहीं। इसमें एक-तिहाई से अधिक मौतें घरेलू वायु प्रदूषण के चलते हुर्इं।
साफ है कि प्रदूषण को लेकर चिंता केवल बाहरी नहीं है। आंकड़े स्तब्ध करने वाले हैं। हालांकि दुनिया के अन्य देशों मसलन चीन में भी स्थिति भारत जैसी ही है। पाकिस्तान, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, नाइजीरिया व अमेरिका सहित अन्य देशों में भी वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों के आंकड़े लाखों में हैं, मगर भारत और चीन से कई गुना कम हैं। जब समस्या बड़ी होती है तो निपटने के उपाय भी समावेशी और संवेदनशील गढ़ने पड़ते हैं। जिस सुशासन के जिम्मे लोक सशक्तिकरण है, उस पर आज प्रदूषण भारी है।
भले ही दशकों से जनमानस में यह समझ रही हो कि देश के भीतर और बाहर व्याप्त प्रदूषण से निपटने के लिए अच्छी रणनीति और कार्यक्रमों की आवश्यकता है, मगर इस मामले में सफलता अभी मीलों दूर है। प्रदूषण केवल एक समस्या ही नहीं, बल्कि इससे दुनिया ही दांव पर लग गई है। गौरतलब है कि सरकारें सुशासन बांट रही हैं, मगर हर कोई प्रदूषण मुक्त वातावरण की बाट जोह रहा है। सुशासन एक ऐसा एकीकृत शब्द है जो सभी समस्याओं की कुंजी तो है, लेकिन प्रदूषण समेत कई विपरीत परिस्थितियों के चलते इसे प्रतिदिन चुनौती मिलती रहती है।
भारत भी अपने नागरिकों को स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त वायु और जल उपलब्ध कराने के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता से युक्त है। बावजूद इसके प्रत्येक वर्ष इन दिनों राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली समेत भारत के ज्यादातर हिस्से वायु प्रदूषण की चपेट में रहते हैं। संविधान के अनुच्छेद 48 (क) में पर्यावरण की रक्षा, उसमें सुधार और वनों एवं वन्य जीवों की सुरक्षा की बात कही गई है।
अनुच्छेद 51 (क) में वनों, झीलों, नदियों और वन्य जीवन सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार को नागरिकों का कर्तव्य बताया गया है। इतना ही नहीं, सतत विकास लक्ष्यों के अंतर्गत पर्यावरणीय खतरों को खत्म करने के लिए उद्देश्य भी तय किए गए हैं। वायु और जल प्रदूषण पर अलग कानून सहित कई प्रशासनिक और विनियामक उपाय भी लंबे समय से आजमाए जा रहे हैं। इसके अलावा अनुच्छेद-253 अंतरराष्ट्रीय समझौतों को लागू करने के लिए विधान देता है। उपरोक्त संदर्भ इस परिपक्वता को दशार्ते हैं कि संवैधानिक एवं वैधानिक स्तर पर लोक प्रवर्धित कदम उठाए तो गए हैं और ये यदि पूरी तरह फलित हो जाएं तो स्वयं में यह पर्यावरणीय सुशासन हो सकता है। कसक यह है कि दशकों के प्रयास के बावजूद प्रदूषण सुशासन के लिए चुनौती बना हुआ है।
वायु प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 19, राज्य सरकारों को वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा करने की शक्ति प्रदान करती है। मगर इसका अर्थ कहीं अधिक सीमित देखा गया है। ऐसे नियंत्रण क्षेत्रों की घोषणा मानो केवल गंभीर रूप से प्रदूषित औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित होकर रह गई है, जबकि दीपावली के इर्द-गिर्द दिल्ली के आसमान में हर साल ऐसी स्थिति बनती रहती है। साल 2017 में तो दिल्ली में वायु इतनी दूषित थी कि दशकों का रिकार्ड टूट गया था।
कभी पंजाब और हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली जिम्मेदार मानी जाती रही, तो कभी गाड़ियों की बढ़ती संख्या। इसमें कोई दो राय नहीं कि ये दोनों प्रदूषण के कारक हैं, लेकिन जिस प्रकार औद्योगिकीरण के साथ शहरीकरण का विस्तार हुआ है, प्रदूषण भी आसमान छूने लगा और जमीन पर रहने वाली सरकारों को सत्ता के पुराने डिजाइन से बाहर निकलने की चुनौती खड़ी कर दी।
सुशासन लोक सशक्तिकरण की अवधारणा है जो शासन को अधिक खुला, पारदर्शी और उत्तरदायी बनाता है। ऐसे में प्रदूषण को रोकने और पर्यावरण को स्वच्छ रखने सुशासन पर तब प्रश्न चिह्न नहीं लगेगा जब संविधान, विधान और सरकारी अभिकरण के साथ शीर्ष अदालत के निर्देशों पर वायु प्रदूषण को रोकने में सरकारें सधे कदम उठाएंगी। दरअसल एक्यूआइ हवा की गुणवत्ता का एक पैमाना है जिससे आंका जा सकता है कि प्रदूषण की स्थिति क्या है। जब यही एक्यूआइ 301 से 400 के बीच हो तो स्थिति बेहद खराब हो जाती है और यदि आंकड़ा 500 तक पहुंच गया तो हालत गंभीर हो जाती है।
संविधान जीवन के अधिकार में स्वच्छ पानी और स्वच्छ हवा की भी बात करता है जो बढ़े प्रदूषण में बेमानी हो जाते हैं और सुशासन की दृष्टि से सामाजिक-आर्थिक उन्नयन और प्रगति में न केवल यह बाधा है, बल्कि मानवाधिकार, सहभागी विकास और लोकतांत्रिकरण के महत्त्व को भी चोटिल कर देता है। ऐसे में सुशासन स्वयं में प्रदूषण का शिकार हो जाता है।
जून 1972 में स्टाकहोम में आयोजित मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में लिए गए निर्णयों को लागू करने के लिए वायु प्रदूषण अधिनियम भारत द्वारा अधिनियमित भी किया गया। मानव कल्याण को गति देने के लिए ऐसे संवैधानिक उपबंधों और अधिनियमों पर भरोसा करना लाजिमी है, मगर वायु प्रदूषण के मामले में सुशासनिक कदम यदि नहीं उठाया जाता है तो उक्त नियम भी सांस बचाने में मदद नहीं करेंगे।
देश में प्रदूषण को रोकने को लेकर नियमों की कमी नहीं है, पर अमल में ला पाना तब संभव होगा जब सहभागी दृष्टिकोण और प्राकृतिक पर्यावरण के साथ दो तरफा भूमिका निभाई जाएगी और ऐसा करना और करवाना सुशासन भरा कदम कहा जाएगा। सुशासन एक गंभीर चेतना और चिंता है जो नागरिक को न केवल विकास देता है, बल्कि समस्याओं के प्रति समावेषी दृष्टिकोण भी बांटता है। दीपावली आदि के उत्सव पर पटाखे जलाने से जीवन मोल पर क्या फर्क पड़ता है, ऐसी जनचेतना बांट कर पर्यावरण के प्रति नकारात्मक सोच रखने वालों को बाहर निकाला जा सकता है। धरा पर एक नागरिक की क्या भूमिका हो, उसे कानून और नैतिकता के साथ उसमें समावेशित ऊर्जा भरना सुशासन से युक्त कदम कहा जाएगा।
वायु प्रदूषण के निदान के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के तहत देश के एक सौ दो चुना गया है, जिनमें से तियालीस शहर स्मार्ट सिटी परियोजना के हैं। बाद में इसका और विस्तार किया जाएगा। प्रदूषण के सभी स्रोतों से निपटने के लिए आपसी सहयोग और साझेदारी पर विशेष ध्यान, व्यापक वृक्षारोपण योजना, स्वच्छ प्रौद्योगिकी पर शोध और हवा की गुणवत्ता कैसे बनाए रखी जाए, इस हेतु औद्योगिक मानकों पर भी विचार सुशासन से संबंधित व्यापक नजरिया ही कहा जाएगा।
बस फर्क यह है कि ऐसे कदम निरंतरता में हों। सुशासन का अर्थ ही है बार-बार अच्छा शासन। जिस मानक पर वायु प्रदूषण है वह जीवन निगलने के स्तर को कहीं-कहीं पार कर चुका है। यह शासन के लिए चुनौती है। स्वच्छ पर्यावरण सुशासन का पर्याय है और यदि यही प्रदूषण से निपटने में नाकाम रहते हैं तो यह सुशासन को आईना दिखाने जैसा है।
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