महिलाओं में वित्तीय साक्षरता न होने के दो तरह के प्रभाव होते हैं। एक तो यह कि महिलाएं रुपए-पैसे के लेनदेन में पूरी तरह पुरुष रिश्तेदारों पर निर्भर हो जाती हैं। उनको ऐसा कुछ भी काम करने का आत्मविश्वास ही नहीं रहता और किसी वजह से वे रिश्तेदार नहीं रहते, तो उनका पूरा वित्तीय कामकाज ठप्प हो जाता है। दूसरे, वित्तीय साक्षरता की कमी की जिम्मेदार कई बार खुद कुछ महिलाएं भी होती हैं। वे इस काम को सीखने और करने में आलस करती हैं।
आज के दौर में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों से कदम से कदम मिला कर चल रही हैं, मगर फिर भी कई मामलों में वे पीछे रह जाती हैं। उनमें एक मुख्य क्षेत्र है महिलाओं की वित्तीय साक्षरता का। इस मामले में न केवल गरीब, ग्रामीण और अनपढ़ महिलाएं पीछे हैं, बल्कि शहरी मध्यवर्ग और उच्च वर्ग की पढ़ी-लिखी महिलाओं में भी वित्तीय साक्षरता और जानकारी का अभाव देखा जाता है।
‘ग्लोबल फाइनेंशियल लिटरेसी एक्सीलेंस सेंटर’ (जीएफएलई) द्वारा 2020-21 में जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय वयस्क आबादी का केवल चौबीस प्रतिशत वित्तीय मामलों में साक्षर है। अन्य प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत की वित्तीय साक्षरता दर सबसे कम है। महिलाओं के मामले में तो स्थिति और चिंताजनक है। यह राज्यवार चार प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच है।
महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे महानगरीय क्षेत्रों में क्रमश: 17 प्रतिशत, 32 और 21 प्रतिशत की वित्तीय साक्षरता दर है। बिहार, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य, जहां गरीबी अधिक है, वहां साक्षरता दर कम है। ये आंकड़े अंतरराज्यीय असमानताओं को भी प्रदर्शित करते हैं। गोवा में महिलाओं की पचास प्रतिशत की उच्चतम वित्तीय साक्षरता दर है, जबकि छत्तीसगढ़ में वित्तीय साक्षरता की भारी कमी है। वहां वित्तीय साक्षरता दर सबसे कम, मात्र चार प्रतिशत, है।
आजकल जब बैंकों के माध्यम से लेनदेन बढ़ रहा है, क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड का चलन आम हो गया है और अब तो इसके आगे ‘कैशलेस’ लेनदेन पर जोर बढ़ रहा है, तब महिलाओं का एक बहुत बड़ा वर्ग बैंक के सामान्य कामकाज भी नही कर पाता। बैंक में रुपया जमा कराने या निकालने का काम हो या एटीएम कार्ड का उपयोग करना, सभी कामों के लिए अधिकांश महिलाएं अपने पति, पुत्र, भाई या किसी अन्य रिश्तेदार पर निर्भर हैं।
इसका महिलाओं को कई बार खमियाजा भी भुगतना पड़ता है। उनके खाते से बड़ी रकम का गबन भी हो जाता है। कम निकालने का कह कर ज्यादा रकम उनके खाते से निकाल ली जाती है। एटीएम का गलत उपयोग कर लिया जाता है। बिना उस महिला की जानकारी के उसके खाते में अपना नामांकन करा लिया जाता है। खाली चेक पर हस्ताक्षर करा लिए जाते हैं, फिर मनमानी रकम भरकर निकाल ली जाती है।
थोड़ा बहुत आनलाइन व्यवहार करने वाली महिला को ‘रिवार्ड पाइंट’ के आधार पर या नकद राशि मिलने के नाम पर ‘ओटीपी’ मांग कर या कोई लिंक भेज कर उस पर क्लिक करवा कर उसके बैंक खाते में जमा रकम साफ कर दी जाती है। इस तरह की बहुत-सी घटनाओं की खबरें आए दिन अखबारों में छपती रहती हैं। अधिकतर मामलों में कोई कार्रवाई नहीं होती और पीड़िता का पैसा डूब जाता है। कई बार महिला के पुरुष रिश्तेदार जानबूझ कर उसे बैंक की कार्यप्रणाली से परिचित होने नहीं देते।
महिलाओं में वित्तीय साक्षरता न होने के दो तरह के प्रभाव होते हैं। एक तो यह कि महिलाएं रुपए-पैसे के लेनदेन में पूरी तरह पुरुष रिश्तेदारों पर निर्भर हो जाती हैं। उनको ऐसा कुछ भी काम करने का आत्मविश्वास ही नहीं रहता और किसी वजह से वे रिश्तेदार नहीं रहते, तो उनका पूरा वित्तीय कामकाज ठप्प हो जाता है। दूसरे, वित्तीय साक्षरता की कमी की जिम्मेदार कई बार खुद महिलाएं भी होती हैं।
वे इस काम को सीखने और करने में आलस करती हैं। कुछ तकनीकी बातें सीखने और समझने की कोशिश ही नहीं करतीं। इस उदासीनता का नुकसान भी उनको उठाना पड़ता है। जब बैंक आदि के सामान्य कामों में महिलाओं की यह स्थिति है तो भला वे निवेश कहां करना है, कब करना है, कितना करना है और कैसे करना है, कितना बीमा करवाना है जैसी बातों की उनसे जानकारी की अपेक्षा करना तो बेमानी है। इस कारण भी महिलाएं गलत जगह और गलत आदमी के माध्यम से निवेश करके या तो अपना पैसा डुबा देती या फंसा लेती हैं।
आजकल विधवा और परित्यक्ता महिलाओं द्वरा एकाकी जीवन बिताने की प्रवृत्ति भी बढ़ती जा रही। ऐसे में उनको अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, शादी विवाह, आवास निर्माण आदि कार्यों के लिए बड़ी धनराशि की जरूरत पड़ती है। बचत न होने के कारण उनको ऋण लेने की आवश्यकता पड़ती रहती है। वित्तीय साक्षरता के अभाव में वे सेठ-साहूकारों या निजी संस्थाओं के चंगुल में फंस जाती हैं। वहां उनको भारी ब्याज दरों पर ऋण लेना पड़ सकता है, जिसको चुकाना उनके लिए मुश्किल हो जाता है। यहां तक कि उनकी संपति कुर्क होने की नौबत आ जाती है।
एक मजबूत वित्तीय शिक्षा की व्यवस्था महिलाओं को प्रभावी ढंग से अपनी बचत और निवेश का प्रबंधन करने में सहायक हो सकती है। इससे वे अपनी बचत को इस प्रकार निवेश कर सकती हैं, जिससे उन्हें अपने अधिक से अधिक लाभ मिल सके और जमा राशि भी सुरक्षित रहे। इसी प्रकार महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से उनका उपयुक्त बीमा कवर होना भी जरूरी है। बीमारी की दशा में इलाज पर खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि की व्यवस्था हेतु स्वास्थ्य बीमा का कवर भी जरूरी है, ताकि उनको और उनके परिवार को बीमारी की दशा में इलाज करवाने में कठिनाई का सामना न करना पड़े। यह भी महिलाओं की वित्तीय साक्षरता द्वारा ही संभव है।
केंद्र सरकार ने इस वर्ष के आम बजट में लोगों में आर्थिक साक्षरता बढ़ाने के लिए गैर-सरकारी स्वयात्तशासी संस्थाओं के माध्यम से इस दिशा में प्रयास के प्रावधान किए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने ‘वित्तीय साक्षरता योजना’ नामक एक परियोजना शुरू की है, जिसका उद्देश्य स्कूल और कालेज के छात्रों, महिलाओं, ग्रामीण और शहरी गरीबों, रक्षाकर्मियों और वरिष्ठ नागरिकों सहित विभिन्न लक्षित समूहों में केंद्रीय बैंक और सामान्य बैंकिंग अवधारणाओं के बारे में जानकारी का प्रसार करना है।
वित्तीय शिक्षा के लिए राष्ट्रीय रणनीति 2020-2025 बनाई गई है। इसके अंतर्गत डिजिटल लेन-देन की सुविधा, डिजिटल लेन-देन की सुरक्षा, लेन-देन में सावधानी, ग्राहकों के हितों की सुरक्षा के संबंध में आवश्यक व्यवस्थाएं करने के प्रावधान किए गए हैं। ‘सेबी’, रिजर्व बैंक और अन्य संस्थाएं भी समय-समय पर विज्ञापनों के माध्यम से बैंक लेन-देन और आनलाइन धोखाधड़ी से बचाव के संबंध में जानकारियां देती रहती हैं, ताकि वित्तीय साक्षरता बढ़ सके। इन सभी में महिलाओं की अधिकाधिक सहभागिता की जरूरत बताई गई है।
आज देश की लगभग 1.4 अरब की आबादी, जिसमें आधे से अधिक महिलाएं हैं, उनमें वित्तीय जागरूकता का लंबे समय तक चलने वाला प्रभाव पड़ेगा। देश के स्कूल, कालेज, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, आंगनबाड़ी केंद्रों आदि में वित्तीय शिक्षा को महत्त्व देते हुए उनमें कार्यरत महिलाओं को वित्तीय साक्षरता के संबंध में विशेष प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है, ताकि वे अपने स्तर पर समूह से जुड़ी महिलाओं को आवश्यक जानकारी दे सकें। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत बैंकों को भी समय-समय पर महिलाओं को वित्तीय लेनदेन की जानकारी देने हेतु कार्यक्रम चलाने चाहिए, ताकि वे बैंकिंग संबंधी जानकारियां प्राप्त कर सकें।
जरूरत इस बात की है कि जिन महिलाओं को बैंक और वित्तीय कामकाज की जानकारी नहीं है, उन्हें आगे बढ़ कर सीखने की कोशिश करनी चाहिए। कम से कम, बैंक में खाता खोलना, चेक भरना, जमा करवाना, रुपया निकालना, जमा कराना, एटीएम का उपयोग, आनलाइन भुगतान करना आदि जैसी सामान्य कामकाजी बातों की जानकारी तो आज के दौर में बहुत जरूरी हो गई है।