पिछले दो वर्षों में दो दर्जन से ज्यादा भूकंप के छोटे झटके महसूस किए गए। लोगों में दहशत होना लाजमी है, बावजूद इसके भूकंप के प्रति लोगों में वैसी सजगता और तैयारी नहीं है।
नीदरलैंड के सर्वेक्षणकर्ता हूगरबीट्स ने तुर्किये और सीरिया के बारे में भूकंप को लेकर जो भविष्यवाणी की थी, उसी ने भारत के बारे में भी भविष्यवाणी की है। ये दुनिया के पहले शोधकर्ता हैं जो भूकंप की भविष्यवाणी का दावा कर रहे हैं। हालांकि दुनिया के वैज्ञानिकों का कहना है कि उनके दावों के पीछे कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।
गौरतलब है कि हूगरबीट्स जो खुद को भूकंपीय शोधकर्ता बताते हैं, सौर प्रणाली भूमिति सूचकांक के सहारे सटीक भविष्यवाणी करने का दावा करते हैं। तुर्कीये और सीरिया के भूकंप को लेकर उनका दावा सच बताया जा रहा है। मगर सवाल है कि क्या भारत के बारे में जो भूकंप आने की भविष्यवाणी उन्होंने की है, उसे तुर्कीये में आए भूकंप की भविष्यवाणी से जोड़ कर देखना चाहिए?
भूकंप पर शोध करने वाले यूनाइटेड स्टेट्स जियोलाजिकल सर्वे का कहना है कि भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई विश्वसनीय तरीका नहीं है। बावजूद इसके अगर भविष्यवाणी कुछ हद तक भी सही साबित होती है तो हूगरबीट्स की भविष्यवाणी को पूरी तरह खारिज नहीं किया जाना चाहिए। हमें यह देखना है कि भविष्यवाणी सच हो या न हो, लेकिन जिस खतरनाक क्षेत्र में दिल्ली और दूसरे कई इलाके आते हैं, उस नजरिए से भी भूकंप से बचने की बेहतर तैयारी पूरी मुस्तैदी के साथ करने की जरूरत है। इससे भूकंप के प्रति हमारी लापरवाही खत्म होगी और खतरनाक पैमाने पर भूकंप आने पर भी काफी जान-माल की रक्षा हो पाएगी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक पूरा भारतीय उपमहाद्वीप धीरे-धीरे भूकंप वाले खतरनाक क्षेत्र में आता जा रहा है। कब उच्च स्केल का भूकंप आ जाए, कहना मुश्किल है। इसलिए भू-वैज्ञानिक भूकंप से बचने के लिए आम आदमी में सजगता बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक दिल्ली, दिल्ली के आसपास और देश का पश्चिम-उत्तर क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अतिसंवेनशील क्षेत्र है। इसलिए हर वक्त, हर उम्र और हर वर्ग के लोगों में सजगता और संवेदनशीलता की जरूरत है। महज ज्यादा तादाद में वेधशालाएं स्थापित करने से उच्च स्तर के भूकंपों से जान माल से पूरी तरह बचाव करना नामुमकिन है।
भू-वैज्ञानिकों के मुताबिक धरती के अंदर दिनोंदिन हलचल बढ़ रही है। पिछले दो सालों में दो दर्जन से ज्यादा भूकंप के छोटे झटके महसूस किए गए। लोगों में दहशत होना लाजमी है, बावजूद इसके भूकंप के प्रति लोगों में वैसी सजगता और तैयारी नहीं है। आमतौर पर ज्वालामुखी या धरती के पपड़ी के भीतर गहरे आंदोलन होने या टेक्टोनिक प्लेटों के विस्थापन या आपस में टकराने की वजह से उच्च स्तर के भूकंप आते हैं। भारत-नेपाल में धरती के नीचे ये क्रियाएं तेज गति से चलती रहती हैं। यही वजह है कि साल में दर्जनों भूकंप की घटनाएं दर्ज होने लगी हैं।
दुनिया के सबसे सक्रिय भूकंपीय इलाकों में भारत, तुर्कीये, उत्तर अफ्रीकी और दक्षिण अमेरिकी देश शामिल हैं। दिल्ली में छोटे स्तर के भूकंप आते ही रहते हैं, जिसकी वजह भारतीय प्लेटों में कंपन है। मगर उच्च रिक्टल स्केल का भूकंप भी आ सकता है, यह कब आएगा यह अनुमान लगाना मुश्किल है। पर जिस क्षेत्र में दिल्ली आती है और जिस प्लेट के ऊपर बसी है, इससे कभी भी कोई बड़ा भूकंप का झटका आ सकता है।
वहीं हम यह नहीं कह सकते कि उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य भूकंप के नजरिए से ज्यादा खतरनाक नहीं हैं। भूकंप इसलिए ज्यादा विनाशकारी साबित होता है कि ज्यादातर भवन अवैज्ञानिक ढंग से बनाए जाते हैं। जो मानक भूकंपरोधी भवन बनाने के तय किए गए हैं उसका पालन न निजी तौर पर घर बनाते वक्त आम लोग करते हैं और न भवन निर्माता। देखा गया है कि बहुत कम तीव्रता के भूकंप आने पर भी इमारतें हिलने लगती हैं और उनमें दरारें पड़ जाती हैं। भारत के भूकंप का उच्च जोखिम वाला देश होने की वजह भवन या घर बनाने में भूकंपरोधी नियमों का पालन न करना तो है ही, भूकंप से बचाव की सजगता की बेहद कमी भी है।
भारत दुनिया की सबसे घनी और बड़ी आबादी वाला देश होने की वजह से उच्च पैमाने के भूकंप से जान-माल का नुकसान होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसे देखते हुए भारत सरकार ने 2026 तक और सौ भूकंप वेधशाला तैयार करने का निर्णय किया है। इसी क्रम में अब तक पैंतीस वेधशालाओं को रोस्टर से जोड़ दिया गया है। इससे भूकंप के स्तर की बेहतर जानकारी मिलने में सहूलियत हो जाएगी।
हिमालयी क्षेत्र भूकंप का उच्च जोखिम वाला क्षेत्र है। यहां उच्च पैमाने का भूकंप आने की हमेशा प्रबल संभावना बनी रहती है। भूकंप का कोई पूर्वानुमान नहीं लगया जा सकता, इसलिए चिंता और बढ़ जाती है। ऐसे में इससे डरने के बजाय बचाव की बेहतर तैयारी होनी चाहिए। आजादी के पहले हिमालयी क्षेत्र में 1897 में शिलांग, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और असम में बड़ा भूकंप आया, जिसमें हजारों लोग मारे गए और लाखों घायल हुए थे। फिर चालीस साल तक इस क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप नहीं आया।
1991 में उत्तरकाशी, 1999 में चमोली और 1915 में नेपाल में उच्च तीव्रता का भूकंप आया, जिसमें हजारों लोगों की मौत हो गई थी। इसे देखते हुए भूकंप के प्रति सजगता और इससे बचने की पुख्ता तैयारी की जरूरत है। भूकंप आने पर जान-माल का नुकसान कम से कम हो, इसके लिए जरूरी है कि चौबीस घंटे भूकंप के प्रति सजग रहें और दूसरों को भी सजग करते रहें। भूकंप के पहले, भूकंप के वक्त और भूकंप के बाद लोगों में इससे निपटने की रणनीति कैसी हो, इस बात की सजगता जरूरी है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर भूकंप के प्रति जन सामान्य में बेहतर तैयारी और सजगता हो तो भूकंप से नुकसान नाममात्र का ही होगा। इसलिए वाडिया भू-विज्ञान संस्थान हिमालय क्षेत्र के स्कूलों और गांवों में जाकर लोगों को जागरूक करने का कार्य करता है। इससे इस क्षेत्र के लोगों में भूकंप के प्रति सजगता और संवेदनशीलता आई है। गौरतलब है हिमालय क्षेत्र में साठ वेधशालाएं कार्य कर रही हैं, जो भूकंप की हर गतिविधि की पल-पल की जानकारी देती रहती हैं। मगर सोशल मीडिया, टीवी चैनलों और अखबारों के जरिए आम लोगों के जान-माल को भूकंप से बचने के लिए सतर्क और सजग किया जा सकता है।
भूकंप से जान-माल से बचाव न हो पाने की वजह यह भी है कि भूकंप आने का वक्त और अंतराल के बारे में वैज्ञानिक कुछ बता पाने की हालात में नहीं हैं। भूकंप आता है, तो लोग मनाते हैं कि वे बचे रहें, लेकिन कुछ साल गुजरता है और फिर भूल जाते हैं कि भूकंप फिर आ सकता है और उससे उनकी जान जा सकती है या गंभीर रूप से घायल हो सकते हैं। इसलिए मानसिक और आर्थिक दोनों तरह से भूकंप से बचने के लिए तैयार रहना जरूरी है।
यह सोच कर हम नहीं बच सकते हैं कि ईश्वर जैसा चाहेगा वैसा ही होगा। और यह सोच बनाना भी ठीक नहीं कि इंसान के हाथ में कुछ भी नहीं है। यह सब खुद को तसल्ली देने के लिए तो हम कर सकते हैं, लेकिन प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए सजगता और छद्म अभ्यास के जरिए बेहतर बचाव का उपाय हो सकता है।