अभिषेक कुमार सिंह
हाल में ट्विटर के सीईओ समेत हजारों युवाओं की नौकरी चली गई। कई आइटी, शिक्षा (कोचिंग) और ईकामर्स कंपनियों में बड़े पैमाने पर छंटनी की खबरें हैं। कई कंपनियों ने भर्ती प्रक्रिया रोक दी है। सवाल है कि कामकाज बढ़ने के बावजूद सेवा क्षेत्र से जुड़ी बड़ी और नामी कंपनियों तक में ऐसा कौन-सा संकट आया है, जो भर्ती रोकने और छंटनी करने जैसे उपाय आजमाए जा रहे हैं। क्या ये किसी बड़ी अस्थिरता और अनिश्चय के संकेत हैं या फिर कंपनियों के बढ़ते संचालन खर्च और घटते मुनाफे की परिणिति है या इसकी कोई और वजह है।
सूचना प्रौद्योगिकी (आइटी) के क्षेत्र में शुरू हुआ छंटनी का दौर उन युवाओं में भी बेचैनी पैदा कर रहा है, जो कंप्यूटर विज्ञान जैसे पाठ्यक्रमों की पढ़ाई कर रहे हैं। आइआइटी, आइआइएम समेत तमाम बड़े विश्वविद्यालय (खासकर निजी) हाल तक दावे करते रहे हैं कि उनके यहां से आइटी-कंप्यूटर में डिग्री लेने वाले युवा तमाम नामचीन से लेकर स्टार्टअप कंपनियों में करोड़ों के वेतन पर नियुक्ति पा रहे हैं। आइटी से संबंधित नौकरियों की इस गुलाबी तस्वीर में इस साल के आरंभ में पटरी पर लौटती अर्थव्यवस्था के मद्देनजर कोई नुक्स भी नजर नहीं आ रहा था, लेकिन सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर के अधिग्रहण के साथ ही माहौल बदलता दिखने लगा। खासकर जब एलन मस्क ने ट्विटर का संचालन अपने हाथ में लिया, उन्होंने कई बड़ी तब्दीलियों का एलान कर दिया।
ट्विटर की एक विशेष सेवा ब्लूटिक के लिए उन्होंने शुल्क लगाने की घोषणा की और भारतीय पराग अग्रवाल को सीईओ पद से हटा दिया। इतना ही नहीं, कई अन्य शीर्ष अधिकारियों को बाहर करने के साथ उन्होंने वैश्विक स्तर पर कंपनी के आधे कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी। भारत में तो ट्विटर के नब्बे फीसद कर्मचारियों की नौकरी एक झटके में चली गई। इनमें से ज्यादातर कर्मचारी आइटी और कंप्यूटर इंजीनियरिंग से जुड़े थे। मगर ऐसा सिर्फ ट्विटर में नहीं हुआ। नौकरियों में कटौती का सिलसिला फेसबुक (मेटा) से लेकर गूगल जैसी शीर्ष आइटी कंपनी और तमाम स्टार्टअप कंपनियों तक पहुंचा, जहां सूचना प्रौद्योगिकी की एक अहम भूमिका है।
सोशल मीडिया कंपनियों में शुरू हुई छंटनी की आंच आनलाइन पढ़ाई, कोचिंग, खरीदारी और घर बैठे खाना मंगाने की सहूलियत देने वाले ऐप तक पहुंच गई। आश्चर्य है कि इनमें ऐसी स्टार्टअप कंपनियों की संख्या ज्यादा है, जिन्हें कोरोना काल में ज्यादा काम मिल रहा था। कोविड के दौर में लोग इनके माध्यम से घर बैठे कई तरह के काम कर रहे थे, लेकिन जैसे ही कोविड का असर कम हुआ, इन कंपनियों के कामकाज और कमाई में मंदी का असर दिखने लगा। ऐसा तब हुआ, जब कोविड के बाद वाले दौर में कारोबार बढ़ने की उम्मीद थी।
हालांकि इसी दौर में पर्यटन उद्योग को काफी राहत मिली, क्योंकि लोग दो साल तक कहीं बाहर नहीं निकल पाए थे। मगर ऐसा सभी जगह नहीं हुआ। तकनीक या कहें कि टेक कंपनियों में मंदी आ सकती है, इसका अहसास तब हुआ, जब ट्विटर ने एलन मस्क के सुझाव पर कमाई बढ़ाने के उपायों पर अमल शुरू किया। ट्विटर की देखादेखी माइक्रोसाफ्ट ने भी अक्तूबर 2022 में अपने यहां एक हजार कर्मचारियों की छंटनी कर दी। इनके अलावा राइडशेयर कंपनी लिफ्ट में तेरह फीसद और पेमेंट प्रोसेसिंग फर्म- स्ट्राइप में चौदह फीसद कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की खबरों ने दुनिया का ध्यान खींचा। यहां तक कि दिग्गज ई-कामर्स कंपनी अमेजन और गूगल की पितृ कंपनी अल्फाबेट में भी छंटनी के साथ-साथ नई भर्तियों पर रोक की खबरें आ चुकी हैं।
सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि नए किस्म के जिस कामकाज से जुड़ी कंपनियों को रोजगार सृजन के मामले में सबसे ज्यादा तरजीह दी जा रही है, सबसे ज्यादा मुश्किलें उन्हीं के साथ पैदा हुई हैं। जैसे कि कोचिंग के क्षेत्र में हाल के दशक में बड़ा नाम कमाने और करोड़ों का व्यापार करने वाली भारतीय कंपनियों- बायजूज, वेदांतु, अनअकैडमी, लिडो लर्निंग आदि में साल की पहली छमाही में बाईस हजार युवा विश्व स्तर पर नौकरी गंवा चुके हैं, जिनमें से साठ फीसद से ज्यादा युवा भारत के हैं। यह दावा भी किया जा रहा है कि साल के अंत तक इन स्टार्टअप कंपनियों से पचास-साठ हजार लोगों की छंटनी हो सकती है। प्रश्न है कि सेवा क्षेत्र की जिन कंपनियों में रोजगार मिलने की बड़ी उम्मीद है, वहां ऐसा क्या हुआ कि बड़े पैमाने पर छंटनी की जा रही है।
सेवा क्षेत्र की कंपनियों के साथ पहली बड़ी दिक्कत यह बताई जा रही है कि निवेशकों ने जिस मुनाफे की उम्मीद में इनमें भारी-भरकम निवेश किया था, उन्हें वह मिलता नहीं दिख रहा है। इन कंपनियों का वास्ता अब ऐसी कारोबारी वास्तविकताओं से पड़ा है, जिनसे जूझने और उबरने की क्षमता तथा योग्यता अक्सर पुरानी स्थापित कंपनियों के पास ही होती है। इन कंपनियों में पैसा लगाने वाले निवेशकों ने अपने निवेश के बदले कोई लाभ न होता देख पूंजी वापसी का दबाव बनाना शुरू कर दिया है। इससे पूंजी का अकाल होने लगा है।
हालांकि कोरोना काल में निवेशकों ने धीरज बनाए रखा, लेकिन आर्थिक गतिविधियां दुबारा शुरू होने के बाद भी स्टार्टअप कंपनियों की कमाई में कोई उल्लेखनीय इजाफा नहीं हो रहा है। कोविड का दौर थमते ही दुनिया में कई नई कंपनियां और नए स्टार्टअप सामने आ गए हैं। उनकी मौजूदगी से कुछ अरसा पहले स्थापित हुई स्टार्टअप कंपनियों में नई प्रतिस्पर्धा पैदा हो गई, जिनसे उनके लाभ की दर बुरी तरह प्रभावित हुई है। नई कंपनियां और स्टार्टअप कैसी मुश्किल खड़ी कर रहे हैं, यह फेसबुक (अब मेटा) के मामले से साफ होता है।
फेसबुक को भी टिकटाक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया के अपेक्षाकृत नए मंचों से कड़ी टक्कर मिल रही है। फेसबुक की कमाई में बेतहाशा गिरावट आई है। इस साल फेसबुक के शेयर तिहत्तर फीसद नीचे चले गए हैं। ये बदलाव देखते हुए कंपनी ने पहले ही नई भर्तियों पर रोक लगा दी थी और अब वह बड़े पैमाने पर छंटनी करने जा रही है। हाल ही में मेटा ने कहा कि उसके यहां ग्यारह हजार से अधिक कर्मचारियों की छंटनी की जाएगी।
सेवा क्षेत्र की तकनीकी कंपनियों को नई चुनौतियों और दबावों से जूझने के अलावा कमाई बढ़ाने और निवेश हासिल करने के नए स्रोत जुटाने होते हैं। मगर इन सभी मामलों में वे अपने पुराने और बड़े निवेशकों को कोई ठोस आश्वासन नहीं दे पाई हैं। कमाई पर पड़ रहे इसी दबाव का नतीजा है कि ओला जैसी ऐप-आधारित टैक्सी सेवाएं और क्रिप्टो करेंसी का कारोबार करने वाले स्टार्टअप भी पूंजी के सूखे से जूझ रहे हैं। इस मामले में एक विडंबना यह है कि जब हमारे देश में सरकार साठ हजार से ज्यादा स्टार्टअप कंपनियां शुरू होने का दावा कर रही है, तब उनमें नौकरियों का अकाल पड़ना शुरू हो गया है। इस पूरे घटनाक्रम का एक सबक यह भी है कि युवाओं को अब कंप्यूटर, आइटी और प्रबंधन के बाहर के विषयों पर भी अपना ध्यान लगाना चाहिए।