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भविष्य का वैकल्पिक ईंधन

दुनिया में कच्चे तेल के लिए संघर्ष अपने आप में किसी महायुद्ध से कम नहीं है।

Petrol pump| diplomacy
प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

सुशील कुमार सिंह

सरकार ने एथेनाल युक्त तेल को 2030 तक जारी करने का लक्ष्य रखा था, मगर इसे अभी शुरू कर दिया गया है। सात साल पहले लक्ष्य तक पहुंचने का जो श्रेय सरकार को जाता है, उसमें एथेनाल के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों को भी निहित समझा जाए। 2013-14 की तुलना में आज एथेनाल का उत्पादन छह गुना तक बढ़ा है, जिससे लगभग चौवन हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बची है।

दुनिया में कच्चे तेल के लिए संघर्ष अपने आप में किसी महायुद्ध से कम नहीं है। यह तमाम देशों के लिए अक्सर चुनौती बनता रहा है। रोचक यह है कि तेल को लेकर अमेरिका जैसे देश कई खेल भी इसी दुनिया में खेलते रहे हैं। गौरतलब है कि अमेरिका भारत का रणनीतिक मित्र है और वर्षों से दोनों के संबंध कहीं अधिक सकारात्मक हैं, मगर ईरान से उसकी दुश्मनी की कीमत भारत को भी तब चुकानी पड़ी, जब उसने मई 2019 में ईरान से कच्चा तेल लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

आखिरकार इस ऊर्जा की भरपाई के लिए भारत को सऊदी अरब की ओर रुख करना पड़ा था, जो ईरान की तुलना में महंगा सौदा था। फरवरी, 2022 से बदले हालात के बाद रूस से भारत सस्ता तेल धड़ाधड़ खरीद रहा है, जबकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते अमेरिका और यूरोप के कई देशों के अलग खेमे बने हुए हैं और भारत को ऐसा करने से रोक पाने में सक्षम भी नहीं हैं।

भारत कच्चे तेल के मामले में आत्मनिर्भर नहीं है। वह अपनी जरूरत का महज सत्रह फीसद तेल उत्पादन कर पाता है, बाकी के लिए आयात पर निर्भर है। ऐसे में ई-20 ईंधन का स्वरूप इस निर्भरता को कम करने में मदद करेगा, मगर जिस गति से कच्चे तेल की आवश्यकता देश को है, उसे देखते हुए इसे अंतिम उपाय नहीं कहा जा सकता।

गौरतलब है कि ई-20 ईंधन का आशय पेट्रोल में एथेनाल के बीस प्रतिशत मिश्रण से है। अभी तक देश में मिलने वाले पेट्रोल में इसकी मिलावट महज दस फीसद होती थी। हालांकि इसे लेकर पेट्रोल के आयात पर असर पड़ेगा, मगर बड़ा असर लाने के लिए इलेक्ट्रानिक वाहन और एथेनाल मिश्रित पेट्रोल को पूरे देश में विस्तार देना होगा।

फिलहाल ई-20 ईंधन को ग्यारह राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के चौरासी पेट्रोल पंपों पर उपलब्ध कराया जाएगा। गौरतलब है कि भारत सरकार ने ‘इंडिया एनर्जी वीक 2023’ में बीस प्रतिशत एथेनाल मिश्रित पेट्रोल को बीते फरवरी महीने में शुरू किया था और उम्मीद जताई गई थी कि इस पहल से पेट्रोल पर निर्भरता को कम किया जा सकेगा।

इसमें कोई दो राय नहीं कि जैव ईंधन को लेकर जितनी सक्रियता आई है, उसके लाभ भी विभिन्न आयामों में विस्तार लेंगे। ई-20 ईंधन कई लाभों से युक्त है, पर चुनौतियों से भी भरा हुआ है। भारत कृषि अर्थव्यवस्था वाला देश है, यहां व्यापक पैमाने पर कृषि अवशेष उपलब्ध हैं। ऐसे में जैव र्इंधन के उत्पादन की संभावना अधिक रहेगी।

फलस्वरूप, नई नगदी फसलों के रूप में ग्रामीण और कृषि विकास में यह मदद कर सकता है, बशर्ते नियोजनकर्ता किसानों की सक्रियता और महत्ता को ऊर्जा का केंद्र समझें, न कि महज एक साधन। शहर अकूत अपशिष्ट और कचरे से भरे पड़े हैं। इनका उपयोग कर ईंधन में बदलना संभव होगा, जो भोजन और ऊर्जा दोनों प्रदान कर सकती है।

ई-20 ईंधन से वाहनों को चलाना तो आसान रहेगा ही साथ ही बड़ा लाभ यह होगा कि जहरीली गैसों से शहर मुक्त भी होंगे। कच्चा तेल खरीदने में तुलनात्मक कमी आएगी, इससे विदेशी मुद्रा के खर्च में कमी आएगी।

यह हरित ईंधन का एक ऐसा उदाहरण है, जिससे कार्बन डाईआक्साइड और हाइड्रो कार्बन आदि के उत्सर्जन में कमी संभव है। पड़ताल बताती है कि वर्तमान में भारत में एथेनाल की उत्पादन क्षमता लगभग एक हजार सैंतीस करोड़ लीटर है, जिसमें सात सौ करोड़ लीटर गन्ना आधारित और बाकी अनाज आधारित है।

2022-23 में पेट्रोल और एथेनाल वाले ईंधन की आवश्यकता पांच सौ बयालीस करोड़ लीटर थी, जबकि 2023-24 में यह बढ़ कर छह सौ अट्ठानबे करोड़ लीटर है। बता दें कि कच्चा तेल दुनिया के किसी देश से किसी भी कीमत पर शायद खरीदा जाना संभव है, मगर एथेनाल के औसत को बनाए रखना कहीं अधिक आवश्यक रहेगा। हालांकि आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि एथेनाल के मामले में भारत परिपक्व है, मगर सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह पूरी तरह किसान आधारित है और उन्हें इस ऊर्जा में मदद के बदले आर्थिक शुचिता बनाए रखना होगा।

महत्त्वपूर्ण यह भी है कि देश में ऐसी कारें कम हैं, जो ई-20 पेट्रोल से चल सकती हैं। हालांकि कई कंपनियां अपनी गाड़ियां ई-20 ईंधन के अनुरूप बना रही हैं। पूरे देश में जैसे-जैसे ई-20 ईंधन का विस्तार होगा, इससे चलने वाली गाड़ियों का निर्माण भी उसी के अनुरूप होगा। स्पष्ट है कि जैव र्इंधन और हरित ईंधन पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है, जिसमें कृषि अर्थव्यवस्था और किसानों को सुदृढ़ करने के संदर्भ निहित रहेंगे।

गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनवरी में राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य भारत को स्वच्छ ऊर्जा का केंद्र बनाना है। तेल की बढ़ती कीमतें और डालर के मुकाबले गिरता रुपया न केवल कच्चे तेल के लिए मुसीबत बनता है, बल्कि देश के जनमानस को भी इसकी कीमत चुकानी पड़ती है।

हालांकि सस्ता कच्चा तेल मिलने के बावजूद देश की जनता को सरकार ने इसका लाभ नहीं दिया है। तेल का खेल सरकारें भी खूब खेलती हैं और इससे अपनी तिजोरी आसानी से भर पाने में सफल होती हैं। जीएसटी लागू होने के बावजूद पेट्रोल, डीजल तथा रसोई गैस समेत ह पदार्थ अब भी इसके दायरे से बाहर हैं, जिसके उतार-चढ़ाव से जनता की जेब ढीली होती रहती है।

यह विडंबना ही है कि जो तबका नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित होता है और जिसके लिए अधिकांश नीतियां बनाई जाती हैं, वही हाशिये पर है। भारत का किसान अन्न उत्पादन करके इस मामले में देश को आत्मनिर्भर बना रहा है। आज वही, चाहे गन्ना किसान हो या अनाज उत्पादन करने वाला, ई-20 ईंधन को भी बड़ा मुकाम दे सकता है। मगर क्या उसकी आय दोगुनी करना सरकार के लिए संभव है।

साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य सरकार ने रखा था, मगर इस पर कुछ खास पता नहीं चला। सरकार इस कसौटी को और कस कर देखे, क्या पता किसानों की किस्मत ई-20 ईंधन के ईर्द-गिर्द पलटी मारे और उनकी आय दोगुनी हो जाए? मगर सरकार पहले इस बात की भी पड़ताल कर ले कि उनकी पहले आय क्या थी? हालांकि दिसंबर 2018 से प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के माध्यम से प्रति चार महीने पर जो दो हजार रुपए सीमांत किसानों के खाते में जाते हैं, अब वे भी कई नई समस्याओं के चलते मामूली हो गए हैं।

गौरतलब है कि सरकार ने एथेनाल युक्त तेल को 2030 तक जारी करने का लक्ष्य रखा था, मगर इसे अभी शुरू कर दिया गया है। सात साल पहले लक्ष्य तक पहुंचने का जो श्रेय सरकार को जाता है, उसमें एथेनाल के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराने वालों को भी निहित समझा जाए। 2013-14 की तुलना में आज एथेनाल का उत्पादन छह गुना तक बढ़ा है, जिससे लगभग चौवन हजार करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बची है।

इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने 2025 तक देश में पूरी तरह ई-20 ईंधन की बिक्री का लक्ष्य रखा है। इसमें कोई दो राय नहीं कि एथेनाल इक्कीसवीं सदी के भारत की एक प्रमुख प्राथमिकता बन चुका है, क्योंकि यह पर्यावरण और किसानों के जीवन पर बेहतर प्रभाव डाल सकता है।

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First published on: 27-03-2023 at 00:57 IST
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