महबूबा मुफ्ती ने पिता की छाया में सीखी राजनीति, अब संभालेंगी गद्दी
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जम्मू-कश्मीर में पीडीपी की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए नामित की गईं महबूबा मुफ्ती वह शख्सियत हैं जो राज्य की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद की छाया से मजबूती से बाहर आ रही हैं और पार्टी को फिर से महत्वपूर्ण क्षेत्रीय ताकत बनाने के लिए प्रयासरत हैं। (पीटीआई फोटो)
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वर्ष 1996 में कांग्रेस से अपनी मुख्यधारा की राजनीतिक पारी की शुरुआत करने वाली 56 वर्षीय महबूबा विधि स्नातक हैं। उन्होंने अपने पिता के साथ राजनीति की शुरुआत तब की थी जब राज्य में आतंकवाद चरम पर था। (पीटीआई फोटो)
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महबूबा को पीडीपी के विकास और उसे जमीनी स्तर पर लोगों से जोड़ने का श्रेय दिया जाता है। कुछ पर्यवेक्षकों का मानना है कि पार्टी को जमीनी स्तर से जोड़ने के काम में वह अपने पिता से भी आगे हैं। इस बात ने महबूबा को अपने समय के अन्य नेताओं से अलग पहचान दिलायी। (पीटीआई फोटो)
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दो बेटियों की मां महबूबा ने कांग्रेस के टिकट से बीजबेहरा से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता था। वर्ष 1998 में कांग्रेस के टिकट से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले उनके पिता सईद की जीत में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। सईद ने उस चुनाव में दक्षिण कश्मीर से नेशनल कांफ्रेंस के मोहम्मद युसुफ तैंग को हराया था। (पीटीआई फोटो)
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सईद घाटी में शांति की वापसी लाने को उत्साह से लबरेज थे और महबूबा हमेशा उनके साथ खड़ी रहीं। इन पिता-पुत्री की जोड़ी ने वर्ष 1999 में अपनी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) का गठन किया। (पीटीआई फोटो)
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मुफ्ती मोहम्मद सईद अपने साथ कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस से नाराज कुछ नेताओं को भी अपनी पार्टी में ले आए। सईद ने कांग्रेस में अपने राजनीतिक जीवन के छह दशक गुजारे थे। उसके बाद से महबूबा ने भी नयी पार्टी को बनाने की जिम्मेदारी संभाल ली। महबूबा पर नरम अलगाववादी राजनीति को हवा देने का आरोप लगाया जाता है। (पीटीआई फोटो)
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पीडीपी ने पार्टी के झंडे के लिए हरा रंग चुना और वर्ष 1987 के मुस्लिम युनाइटेड फ्रंट के चिन्ह कलम-दवात को पार्टी के चुनाव चिन्ह के तौर पर स्वीकार किया। (पीटीआई फोटो)
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वर्ष 2004 में महबूबा ने अपना पहला लोकसभा चुनाव दक्षिण कश्मीर से जीता। इससे पहले वर्ष 1999 में श्रीनगर से उन्हें लोकसभा चुनाव में उमर अब्दुल्ला के सामने हार का सामना करना पड़ा था। (पीटीआई फोटो)
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