यह तंज किसी से छिपा नहीं था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1 दिसंबर, 2025 को अपने ‘परंपरागत’ सत्र-पूर्व भाषण में संसद सदस्यों- विशेषकर ‘एक या दो दलों’ से यह याद रखने का आग्रह किया कि संसद एक ऐसी जगह है, जहां ‘कार्य होना चाहिए, नाटक नहीं’।

उकसाने वाली टिप्पणियां

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत अशुभ रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुछ शब्द यहां उद्धृत करने लायक हैं:
‘दुर्भाग्य से एक-दो पार्टियां ऐसी हैं, जो अपनी हार को भी पचा नहीं पाती हैं। मुझे लगा था कि बिहार के नतीजों को काफी समय बीत चुका है और वे संभल गए होंगे, लेकिन कल उनके बयान सुनकर ऐसा लग रहा है कि उनकी हार उन्हें अभी भी परेशान कर रही है। …
‘…देश में नारे लगाने के लिए बहुत जगह है। आप वहां नारे लगा चुके हैं, जहां आप हारे थे। आप वहां भी नारे लगा सकते हैं, जहां अगली बार हारने वाले हैं। लेकिन यहां हमें नारों पर नहीं, नीतियों पर जोर देना चाहिए।’

उन्होंने राज्य-विशेष के दलों पर भी तंज कसा- ‘कुछ राज्यों में सत्ता-विरोधी भावना इतनी ज्यादा है कि वहां सत्ता में रहने के बाद भी नेता जनता के बीच नहीं जा पाते… वे संसद में आकर अपना सारा गुस्सा यहीं निकाल देते हैं।’

यह एक तरह का दोहरा चरित्र था। संसद के हर सत्र की शुरुआत में सरकार दुनिया के सामने यह घोषणा करती है कि उसके पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है और न ही डरने की कोई बात है, और संसद में किसी भी विषय पर चर्चा हो सकती है। मगर इसमें एक पेच है: वह पेच है ‘नियमों के अधीन’। नियम, प्रक्रिया के नियमों की किताब में हैं, लेकिन उनकी व्याख्या और अनुप्रयोग पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष या सभापति) के हाथ में है, जो अक्सर सदन में सत्तापक्ष के नेताओं के परामर्श से होता है। जब विपक्ष कार्य मंत्रणा समिति में अपना एजंडा रखता है, तो सरकार हमेशा हर विषय का विरोध करती है। इससे कटुता पैदा होती है, और जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा, ‘नाटक’ होता है।

किसका एजंडा?

विधेयक और बजट सरकार का एजंडा हैं। प्रश्नकाल में चर्चा की अनुमति नहीं होती। विपक्ष की पहल पर एक वास्तविक एवं स्वतंत्र चर्चा केवल कार्य स्थगन प्रस्ताव या कुछ हद तक अल्पकालिक चर्चा या फिर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से ही हो सकती है। ये संसदीय प्रक्रियाएं समय-समय पर अपनाई जाती हैं और इनके अपने नियम हैं।

कार्य स्थगन प्रस्ताव को किसी कारणवश सरकार की निंदा माना जाता है। जबकि, नियम पूरी तरह स्पष्ट है: लोकसभा में नियम-57 कहता है: कार्य स्थगन प्रस्ताव का नोटिस केंद्र सरकार की जिम्मेदारी से जुड़े किसी हाल ही में घटित विशिष्ट मामले पर दिया जाएगा। राज्यसभा में नियम-267 अति महत्त्वपूर्ण विषय पर सदन का कार्य स्थगित कर चर्चा की अनुमति देता है।

अल्पकालिक चर्चा के लिए नियम-193 (लोकसभा) और नियम-176 (राज्यसभा) हैं, जिनके तहत तत्काल लोक महत्त्व के किसी मामले पर चर्चा की जाती है। ध्यानाकर्षण प्रस्ताव सबसे सरल प्रक्रिया है। नियम-197 (लोकसभा) और नियम-180 (राज्यसभा) के तहत सदस्य किसी भी तत्काल लोक महत्त्व के मामले पर संबंधित मंत्री का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं और मंत्री की ओर से इस पर बयान देना अनिवार्य है।

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सदन में कामकाज का रिकॉर्ड

तालिका में दिए गए आंकड़े निर्णायक रूप से साबित करते हैं कि कैसे विपक्ष के लिए धीरे-धीरे हर दरवाजा और खिड़की बंद कर दी गई है। हाल के वर्षों में स्थिति और भी बदतर हो गई है, क्योंकि मोदी सरकार लगातार अड़ियल रुख अपनाती जा रही है: (देखें तालिका)

दरवाजे खिड़कियां बंद

आंकड़े खुद ही सब कुछ बयां कर देते हैं। अपने पहले कार्यकाल में मोदी सरकार ने कार्य स्थगन प्रस्ताव का विरोध किया था, क्योंकि उसे ऐसे प्रस्ताव को लेकर अनुचित धारणा का डर था। तब सरकार अल्पकालिक चर्चाओं या ध्यानाकर्षण प्रस्तावों के प्रति कुछ उदार थी, लेकिन दूसरे कार्यकाल में इन पर सरकार की असहिष्णुता साफ दिखाई दी; दरवाजे बंद थे, लेकिन खिड़कियां खुली थीं। तीसरे कार्यकाल में भाजपा साधारण बहुमत से भी कम समर्थन हासिल कर सत्ता में लौटी और सरकार ने खिड़कियां भी बंद कर दीं। क्या हमें यह मान लेना चाहिए कि कोई ऐसा तात्कालिक सार्वजनिक महत्त्व का मामला नहीं था, जिस पर चर्चा की जानी चाहिए?

दुर्भाग्य से लोकसभा की तुलना में राज्यसभा में बहस को ज्यादा रोका गया। कई सदस्यों ने इसके लिए तत्कालीन पीठासीन अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया। सितंबर में राज्यसभा में नए सभापति ने कार्यभार संभाला। मुझे लगता है कि सभापति अभी सीख रहे हैं; इसके अलावा इस बार का शीतकालीन सत्र कोई राय बनाने के लिए बहुत छोटा है। सीधे शब्दों में कहें तो, सरकार इस बात को नहीं मानती कि एक जीवंत और बहस-समृद्ध संसद लोकतंत्र को मजबूत करेगी। मोदी के नेतृत्व वाली सरकार संवाद, चर्चा और बहस के सख्त खिलाफ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्र-पूर्व बयानों की विडंबना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।