पिछले एक साल से देश में कोरोना संकट जारी है। लेकिन इस दौरान भी राजनीतिक दलों को खूब चंदे मिले हैं। एसबीआई ने कहा है कि चार राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में हुए चुनाव में राजनीतिक दलों को दान के रूप में 695.34 करोड़ रूपये मिले हैं। ये रूपये इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में मिले है जिसे दानदाताओं ने एसबीआई से खरीदा है।
एसबीआई ने नौसेना के एक सेवानिवृत्त उच्च पदाधिकारी लोकेश के बत्रा द्वारा दायर आरटीआई आवेदन के जवाब में कहा है कि बैंक ने इस साल 1 अप्रैल से 10 अप्रैल तक 16 वीं फेज में बॉन्ड बेचे थे। कुल बिक्री में से, 671 करोड़ रुपये एक करोड़ रुपये के अंकित मूल्य के बॉन्ड से। 23.70 करोड़ 10 लाख रुपये के अंकित मूल्य के और 64 लाख रुपये एक लाख रुपये के अंकित मूल्य के बॉन्ड से प्राप्त किए गए हैं। बताते चलें कि केरल, असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुदुचेरी विधानसभाओं के लिए चुनाव की प्रक्रिया अभी जारी है।
एसबीआई ने 1 जनवरी से 10 जनवरी, 2021 तक बिक्री के 15 वें चरण में 42.10 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे थे। एसबीआई ने द इंडियन एक्सप्रेस को पिछले आरटीआई के जवाब में कहा था कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले अक्टूबर में 282 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए थे। मुख्य रूप से कॉरर्पोरेट घरानों और उद्योगपतियों को दानदाताओं ने 2018 में 1,056.73 करोड़ रुपये, 2019 में 5,071.99 करोड़ रुपये और 2020 में 363.96 करोड़ रुपये दिए थे, चुनावी बॉन्ड के जरिए कुल दान 7,230 करोड़ रुपये को छू गया है।
क्या होता है इलेक्टोरल बॉन्ड: केंद्र सरकार की तरफ से देश के राजनीतिक दलों के चुनावी चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए वित्त वर्ष 2017-2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की गयी थी। इलेक्टोरल बॉन्ड से मतलब एक ऐसे बॉन्ड से होता है जिसके ऊपर एक करंसी नोट की तरह उसकी वैल्यू या मूल्य लिका होता है। चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग व्यक्तियों, संस्थाओं और संगठन द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने रोक से किया था इनकार: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक एनजीओ द्वारा राजनीतिक दलों की फंडिंग और कथित तौर पर पारदर्शिता की कमी के कारण इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए एनजीओ की मांग को खारिज कर दिया था। अदालत की तरफ से विधानसभा चुनाव से पहले इस पर रोक लगाने से इनकार किया गया था।