देश के अस्पतालों में कुप्रबंधन और लापरवाही से लेकर मरीजों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है। आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं जो बताती हैं कि अस्पताल प्रशासन कितने संवेदनहीन हो चुके हैं। अस्पताल वालों के रवैए से लोगों खासतौर से गरीबों को जो मानसिक प्रताड़ना भुगतनी पड़ती है, वह दर्दनाक तो है ही, शर्मनाक भी कम नहीं है। मुरैना से हाल में ऐसी ही एक दहला देने वाली घटना सामने आई। एक व्यक्ति अपने दो साल के बीमार बेटे को इलाज के लिए जिला अस्पताल ले गया था। वहां उस बच्चे की मौत हो गई।
जब उस व्यक्ति ने बच्चे के शव को गांव ले जाने के लिए अस्पताल प्रशासन से एंबुलेंस मांगी तो उसे मना कर दिया गया। मजबूरी का मारा क्या करता ? उसने अस्पताल के बाहर कई खड़े कई वाहन चालकों से बात की, पर जितना पैसा मांगा जा रहा था, वह दे सकने की स्थिति में नहीं था। इसलिए वह अस्पताल के बाहर ही बच्चे के शव को अपने आठ साल के बड़े बेटे की गोद में रख कर और कपड़े से ढक कर गाड़ी का बंदोबस्त करने चला गया। इस दौरान लोग आते-जाते देखते और वीडियो बनाते रहे। जब कोतवाली पुलिस को पता चला तो उसने अस्पताल प्रशासन पर दबाव डाला और एंबुलेंस का बंदोबस्त करवाया। तब जाकर कहीं बच्चे के शव को गांव भिजवाया जा सका।
कहने को मध्य प्रदेश सरकार ने इस घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। अस्पताल प्रशासन के खिलाफ जांच समिति बना दी गई है।कारणों का पता चलने पर कार्रवाई की बात भी है। लेकिन बुनियादी सवाल वहीं के वहीं है। आखिर क्यों अस्पतालों में काम करने वाले चिकित्सकों से लेकर कर्मचारियों तक का रवैया इतना संवेदनहीन रहता है ? आखिर क्यों उस व्यक्ति को एंबुलेंस उपलब्ध करवाने से मना कर दिया गया ? क्यों उसे बाहर से गाड़ी कर लेने को कहा गया ? जबकि पुलिस के दबाव के बाद उसे एंबुलेंस दे दी गई।
यानी एंबुलेंस तो अस्पताल के पास थी, लेकिन उस गरीब के लिए नहीं। मामला सिर्फ एंबुलेंस तक ही सीमित नहीं है। जिला अस्पतालों में मरीजों को जिस तरह के भ्रष्टाचार से रूबरू होना पड़ता है, वह जगजाहिर है। हर काम के लिए कर्मचारियों द्वारा सेवा-पानी करवाना पुराना चलन बना हुआ है। पीड़ादायक बात यही है कि अब सरकारें भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी सतर्कता और सख्ती दिखाने का दावा करती दिखती हैं, उसमें भी अस्पतालों में खुल कर मरीजों को लूटने की शिकायतें आम हैं।
मुरैना की यह घटना कोई नई नहीं है। इससे पहले भी दूसरे राज्यों से ऐसी घटनाएं हृदयविदारक घटनाएं सामने आती रही हैं। एंबुलेंस नहीं मिलने की वजह से कोई साइकिल या ठेले पर शव ले जाता देखा गया तो कोई कंधे पर रख कर। लेकिन लगता है कि किसी भी पुरानी घटना से सरकारें और प्रशासन सबक नहीं लेते। मुरैना की इस घटना का वीडियो वायरल होते ही प्रशासन हरकत में आया।
जिला कलक्टर ने इस मामले में अस्पताल प्रशासन और चिकित्सकों की लापरवाही को जिम्मेदार माना और पीड़ित को आर्थिक मदद भी मुहैया करवाई। यह सराहनीय है। पर ऐसी घटनाएं और न हो, इसके लिए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सरकारी सुविधाओं पर एक गरीब का भी उतना ही अधिकार है जितना दूसरों का। और इससे भी ज्यादा गरिमा और सम्मान के साथ जीने का। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि गरीब की गरिमा और सम्मान को लेकर सरकारी तंत्र बेहद संवेदनहीन है।