विशेष: दास्तानगोई
बीते बारह महीने न सिर्फ बारहमासा गाने वाले देश पर बल्कि सभ्यता के अलग-अलग छोर और मुकाम पर बैठे मुल्कों पर भी भारी पड़े हैं। इस दौर ने सभ्यता और विकास के साझे को जहां नए सिरे से मथा है, वहीं संवेदना की हिफाजत की भी नई तमीज दी है। इस मंथन और सीख के बीच कुछ परंपराएं भी नए सिरे से इंसानी जज्बातों की हमजोली बनी हैं।

इंसानी तजुर्बे की दुनिया तब चमत्कारिक हो जाती है जब वह किस्सा बन जाती है। इतिहास लेखन की जब आधुनिक परंपरा विकसित हुई तो उसने दास्तानगोई को यह कहकर खारिज किया कि यह तथ्यों की शुचिता के साथ खिलवाड़ है। दिलचस्प है कि इतिहास लिखने चली मानवता ने धूल-धुएं और हिंसा के बूते जो अध्याय रचे, आज वह उसे देखकर शर्मिंदा है। कोरोनाकाल ने सेहत से ज्यादा अपनी सभ्यता और विकास की समझ को लेकर मनुष्य को मथा है। दास्तानगोई का आकर्षण इस मंथन से पहले भी था पर अब तो यह नए समय की कीमती दरकार बन गई है। बोली-भाषा, परंपरा और समय के कई अक्षांश और देशांतर लांघ चुकी इस सम्मोहनी कला के नए और पुराने विस्तार के दिलचस्प हवालों का जिक्र कर रही हैं- क्षिप्रा माथुर।
बीते बारह महीने न सिर्फ बारहमासा गाने वाले देश पर बल्कि सभ्यता के अलग-अलग छोर और मुकाम पर बैठे मुल्कों पर भी भारी पड़े हैं। इस दौर ने सभ्यता और विकास के साझे को जहां नए सिरे से मथा है, वहीं संवेदना की हिफाजत की भी नई तमीज दी है। इस मंथन और सीख के बीच कुछ परंपराएं भी नए सिरे से इंसानी जज्बातों की हमजोली बनी हैं।
ऐसी ही एक परंपरा है दास्तानगोई या किस्सागोई की। दुनिया एक बार फिर उन किस्सों की तरफ लौट रही है, जहां ठंडक बरसाने वाली चांदनी से लेकर तोहफे बांटने वाली राजकुमारी तक न जाने क्या-क्या हैं सुकूने दिल के लिए। दरअसल, कोरोनाकाल ने सेहत के मोर्चे पर हमें जो सबक सिखाना था, उसे तो वो लगातार सिखा ही रहा है पर इस दौरान वह लोगों के बीच संवाद की शैली को भी बदलने की बड़ी दरकार लेकर सामने आया है।
किस्सागोई की नई दुनिया और इसके लिए बढ़ा सम्मोहन इसी दरकार की देन है। इतिहास लेखन से लेकर विमर्श की किसी भी जमीन पर इंसानी मन की सजलता उतनी बहाल नहीं रही है, जितनी वह किस्सों में रही है। लिहाजा किस्सों में बयां होना इंसानी फितरत तो है ही उसकी भीतरी तड़प भी है।
किस्सों के बादशाह
मशहूर किस्सागो हेनरी लासन रहे हों या फिर नेल बैल, ‘स्वैगमैन’ के तौर पर इन किस्सों के बादशाहों ने नदी किनारे बैठकर, पांव-पांव धरती नापते हुए और अलाव के गर्म घेरे में कान लगाकर आवाज और साज के उतार-चढ़ाव सुनते लोगों को वो तमाम किस्से सुनाए, जिनमें जुदा देशों से जुड़े उनके पुरखों और वहां से सहेज कर लाई गई सदियों की सीख समाई थी। इस कहन की कदमताल से ही उन्हें अपनी पगडंडियां मिलती रहीं।
विज्ञान का नजरिया इस बात की तस्दीक करता है कि जब-जब मायूस हुआ लोकमन दुनिया में उससे हो रहे बर्ताव से या अपने भीतर की खलबली के मुकाबिल होता है तो वह अपनी घुटन को बहने के लिए छोड़ देता है। बेलगाम हो जाता है। फिर दुनिया जो सोचे, जो कहे लेकिन अपने भीतर परत दर परत जमा हुए किस्सों को उड़ेल कर खुद को जाहिर कर लेना इंसान के जींस में जमाबंद चाहत का हिस्सा रहा है।
कोलरिज की कथा
अमेरिकी लेखक कोलरिज ने ‘राइम आॅफ ऐन्शिएंट मरीनर’ में जब एक नाविक के किरदार को मूल में रखकर कमाल का बैलेड लिखा तो उसमें इस ‘कथार्सिस’ की कशिश बखूबी जाहिर हुई। उसमें जहां इंसान और कुदरत के रिश्तों की तड़प की ताजा बयानी समा गई तो वहीं शिकारी के तौर पर इंसानी नस्ल में जमा बर्ताव के तहजीब में तब्दील होने की फिक्र भी सुनाई दी।
एक किरदार अपने जीवन की गलतियों और बीच समंदर में ठहरे जहाज की घुटन भरी आपबीती अब सफर पर जाने की तैयारी कर रहे हर शख्स को सुनाने को बेताब है। आगे वह पूरा किस्सा है जहां इंसानी दिल की धड़कन है, जिंदगी की जद्दोजहद है।
इस दास्तान को कहते हुए कोलरिज ‘वाटर-वाटर एवरीवेयर, नॉट अ ड्रॉप टू ड्रिंक’ यानी बीच समंदर में प्यासे रह जाने की तड़प इस तरह पेश करते हैं कि पूरा जीवन समंदर पर उड़ान भरते हुए बिताने वाले दुनिया के सबसे बड़े समुद्री पक्षी एल्ब्रेटॉस को अपने गुरूर में मार देने की हिमाकत करते इंसान की बेरहमी रोंगटे खड़े कर देती है। लेकिन फिर जब कुदरत उस पर कहर बरपाती है तो वो टूटता है और अपने सबक को बयां करता हुआ पगलाया सा नजर आता है।
संवाद और किस्सा
हमारे पूरे जीवन में किए गए कुल संवाद में किस्सों और गप्पों की भरमार करीब 65 फीसद है। जब दुनिया भर में धूम मचा रहे प्रोफेसर युवाल नोवा हरारे मानव सभ्यता पर लिखी अपनी किताब ‘सेपियंस’ में इस बात का जिक्र करते हैं कि इंसान को इस ग्रह पर हासिल ताकत की बड़ी वजह उसकी गप्प मारने की खूबी है तो हमें ये इशारा भी मिलता है कि दास्तानों की कताई-बुनाई से ही इंसानी दुनिया ने एकछत्र राज किया है।
हालांकि खुद को धरती का मालिक मान लेने की गलती का खमियाजा भी हम भुगत ही रहे हैं। इसलिए अब किस्सागोई की कला को फिर से जिंदा करने की मुहिम जारी है क्योंकि जल-जंगल-जमीन से जो रिश्ते हमें मजबूत करने थे उनमें हम कमजोर रह गए। अब कोशिश यह है कि हम खुद को ये नसीहत दे पाएं कि टिकाऊ विकास के जुमलों से दुनिया में तब्दीली हासिल नहीं होगी। पहले भी सदी के लक्ष्य तय करके उन्हें हमने ही ध्वस्त कर दिया था।
दौर नया, दरकार नई
अब नई लकीरें हैं, नई हसरतें हैं लेकिन नीयत है कि नहीं इसे कौन टटोलेगा! इस दौर में चाहे हंसाने वाली कहानियों से, या फिर रुलाने वाले किस्सों से, सुरों में बांध कर या फिर अदायगी में ढाल कर, असल जीवन से उठाकर या फिर बीते हुए वक्त के ईमान और हौसले वाले किरदारों को सामने लाकर जैसे भी हो लेकिन हम इस वक्त इंसानियत को जगाना बेहद जरूरी काम लगता है। अब हम उस मुहाने पर हैं कि बस हमारा वजूद तभी कायम रह पाएगा जब हम कुदरत के साथ बेवजह दखलंदाजी न करें।
2016 में अमेरिका के बॉब डिलन को मिले साहित्य के नोबेल ने दास्तानगोई को वो मुकाम सौंपा कि जिसके बाद उस लकीर पर चलने वाले खुद को और तराशने के लिए तैयार हुए। डिलन के किस्सों को गीतों में लिखकर पेश करने की जादुई शैली ने यह भी जाहिर किया कि कहने के अंदाज में आपने मकसद भी घोल दिया हो तो उसका असर सुनने वालों के दिल-दिमाग पर जीवन भर कायम रहता है।
आज जब शब्दों और तुकबंदी की फिजूलखर्ची पर ही मनोरंजन का पूरा बाजार टिका है तो साठ के दशक में डिलन का लिखा और गाया ‘मास्टर्स आॅफ वार’ 21वीं सदी की दुनिया पर कालिख की तरह काबिज नस्ल, रंग और मजहबी भेद, दूरियोें और नफरतों पर चोट करने के लिए उतना ही मौजूं है।
बदलाव के देसी किस्से
बदलाव के लिए उकसाने वाली कहानियों से भरे गीतों ने हमारे यहां भी राजे-रजवाड़ों की ज्यादतियों के खिलाफ छिड़े आंदोलनों की अगुवाई की। मेवाड़ रियायत में बिजौलिया किसान आंदोलन की चिंगारी भले ही साधुराम ने लगाई लेकिन उस चिंगारी को आग में बदला माणिक्यलाल वर्मा के लिखे और गाए ‘पंछीड़ा’ के जरिए फैली जुल्म की दास्तानों ने।
किस्सागोई सिखाने वाला सॉफ्टवेयर
किस्सागोई का आकर्षण तकनीक की दुनिया तक पहुंच गया है। एक सॉफ्टवेयर कंपनी ने ऐसी तकनीक बनाई है, जो कृत्रिम बुद्धि के जरिये कंप्यूटर को छोटी-छोटी कहानियां लिखने की कला सिखाती है। इस तकनीक के ज्यादातर ग्राहक खेल कारोबार से जुड़े हैं। इन लोगों ने मैच को संक्षेप में लिखने के लिए इसका इस्तेमाल बखूबी किया है।
कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जरिये मैच के निर्णायक क्षणों को चुना जाता है और फिर उनके सूत्र जोड़े जाते हैं। इसके साथ ही अब कुछ ऐसे सॉफ्टवेयर भी आ गए हैं जो किस्सा कहने की आपकी कला को तकनीकी सज्जा से और बेहतर बना देंगे। इंटरनेट की दुनिया में किस्सागोई का इस तरह आगे बढ़ना आभासी दुनिया का एक ऐसा रोमांच है, जिसे लेकर जुनून दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है। वेब ठिकानों को लेकर किए गए कई सर्वेक्षणों में भी यह बात आई है कि कल्पना और कहन को लेकर होने वालों नए ई-प्रयोगों का भविष्य और बाजार दोनों है।
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