सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सुप्रीम कोर्ट के जजों का सारा शेड्यूल शिद्दत के साथ बयां किया। उनका कहना था कि जज साल में 200 दिन काम करते हैं। जब छुट्टी पर होते हैं तो भी उनके दिमाग में कानून से जुड़े नुक्ते और केसेज होते हैं। अवकाश में भी वो अपने काम के बारे में ही सोच रहे होते हैं।
इंडिया टुडे एंक्लेव में जस्टिस चंद्रचूड़ का कहना था कि जज सप्ताह में सातों दिन काम करते हैं। सोमवार से शुक्रवार तक सुप्रीम कोर्ट के जज रोजाना 50 से 60 केस सुनते हैं। अक्सर फैसले रिजर्व हो जाते हैं तो शनिवार को जज फैसले लिखवाने में व्यस्त रहते हैं। संडे को वो सोमवार की तैयारी करते हैं। सीजेआई ने फिर बताया कि कैसे दुनिया भर के सुप्रीम कोर्ट काम करते हैं और भारत का सुप्रीम कोर्ट उनसे कैसे अलग है।
कॉलेजियम फिलहाल सबसे बेहतर सिस्टम
चंद्रचूड़ ने शनिवार को जजों को नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम प्रणाली का बचाव करते हुए कहा कि कोई प्रणाली पूर्ण नहीं होती, लेकिन यह हमारे पास उपलब्ध सबसे बेहतरीन प्रणाली है। कॉलेजियम प्रणाली केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच विवाद का एक प्रमुख वजह रही है।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि यदि न्यायपालिका को स्वतंत्र रहना है तो इसे बाहरी प्रभावों से बचाना होगा। इसे बनाने का मकसद न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुरक्षित करना था। अगर न्यायपालिका को स्वतंत्र रखना है तो हमें न्यायपालिका को बाहरी प्रभावों से अलग रखना होगा। कॉलेजियम प्रणाली को लेकर कानून मंत्री किरेन रिजिजू की ओर से नाखुशी जताने पर भी प्रधान न्यायाधीश ने जवाब दिया।
चंद्रचूड़ ने कहा कि धारणाओं में अंतर होने में क्या गलत है। लेकिन मुझे अलग-अलग धारणाओं से एक मजबूत संवैधानिक अगुआ की भावना के साथ निपटना होगा। मैं इन मुद्दों में कानून मंत्री से नहीं उलझना चाहता, हम अलग-अलग धारणा रखने के लिए बाध्य हैं। कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ रिजिजू काफी मुखर रहे हैं और वह एक बार इसे ‘संविधान के परे’ की चीज बता चुके हैं।
23 साल से जज पर किसी ने दबाव नहीं दिया
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मैं 23 सालों से न्यायाधीश हूं, लेकिन किसी ने कभी मुझसे यह नहीं कहा कि मामले में किस तरह निर्णय लेना है। यहां सरकार से कोई दबाव नहीं पड़ा। चुनाव अयोग का फैसला इस बात का प्रमाण है कि न्यायापालिका पर कोई दबाव नहीं है।