देश के सबसे बड़े उद्योगपतियों में शुमार गौतम अडानी की संपत्ति में पिछले कुछ सालों में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। खासकर कोरोनाकाल में तो अडानी ने मुकेश अंबानी से ज्यादा तेजी से कमाई की। हालांकि, उनकी कंपनियों में निवेश करने वाले तीन फंड्स पर पर नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) की ओर से रोक लगाने वाली खबर ने अडानी का खासा नुकसान किया है। वे अब एशिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी का तमगा खोकर तीसरे स्थान पर पहुंच गए हैं। उनकी नेटवर्थ तीन दिन के अंदर ही करीब 70 हजार करोड़ रुपए तक गिर गई।
हालांकि, इस तरह की परेशानियां अडानी समूह के लिए नई नहीं हैं। करीब पांच साल पहले विपक्ष ने केंद्र पर अडानी पर लगा 200 करोड़ के जुर्माने को माफ करने का आरोप लगाया था। अडानी पर यह जुर्माना सुनीता नारायण कमेटी की ओर से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लगाया गया था। हालांकि, तब इस जुर्माने पर 2014 में खुद अडानी ही एक टीवी इंटरव्यू में जवाब दिया था।
क्या था पत्रकार का सवाल?: पर्यावरणविद सुनीता नारायण की कमेटी की ओर से लगाए गए जुर्माने पर जब पत्रकार ने सवाल किया था, तो अडानी ने सूझबूझ से जवाब दिया था। पत्रकार ने पूछा था कि एक कमेटी आई थी जिसे सुनीता नारायण हेड कर रही थीं। उन्होंने कहा कि आपने पर्यावरण के काफी उल्लंघन कर रखे हैं। इतने उल्लंघन करे हैं कि आप पर 200 करोड़ का जुर्माना लगना चाहिए। इतना बड़ा जुर्माना क्यों लगाया गया था?
क्या था गौतम अडानी का जवाब?: इस पर अडानी ने कहा था कि सुनीता नारायण जी जब आई थीं, भारत सरकार ने एक कमेटी बनाई थी। वो उल्लंघन की जहां-जहां बात करती हैं, वहां अडानी ग्रुप ने कुछ किया नहीं है। उन्होंने 200 करोड़ का जुर्माना नहीं लगाया, बल्कि सुझा दिया है कि अडानी को 200 करोड़ का एक फंड बनाना चाहिए, जिससे जहां पर भी नुकसान होता है या जीवन को क्षति पहुंचती है तो उसमें फंड का इस्तेमाल हो।
अडानी ने आगे कहा था कि अब वो तो उनका (सुनीता नारायण कमेटी का) सुझाव है। सरकार ने निर्णय नहीं लिया है, जो भी वो निर्णय लेगी जो हमें ठीक लगेगा हम आगे करेंगे। अडानी ने बताया था कि हम अभी भी हर साल 20-25 करोड़ रुपए खर्च कर ही रहे हैं। ताकि वहां के जीवन पर प्रभाव नहीं पड़े। जो भी सरकार आखिर में फैसला करेगी, हम उसे देखेंगे।
क्या था पूरा मामला?: यह पूरा मामला गुजरा के मुंद्रा पोर्ट के निर्माण से जुड़ा था। इसका निर्माण अडानी समूह की ओर से किया गया था और आरोप लगा था कि बंदरगाह निर्माण में कंपनी ने पर्यावरण नियमों का उल्लंघन किया। केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने 2012 में सुनीता नारायण के नेतृत्व में एक कमेटी का गठन किया था। कमेटी ने पाया कि कई नियमों का उल्लंघन किया गया। यह भी पाया कि बड़े पैमाने पर अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा।
कमेटी ने जांच के बाद प्रोजेक्ट के उत्तरी पोर्ट पर बैन की सिफारिश की थी। इसके अलावा प्रोजेक्ट की कीमत का एक पर्सेंट या 200 करोड़ रुपए (जो भी ज्यादा हो) का जुर्माना भरने के लिए भी कहा था। यह जुर्माना उस अधिकतम 1 लाख रुपए की रकम से ज्यादा थी, जो एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत लगाई जा सकती है।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने इन सिफारिशों को 2013 में मंजूरी दे दी। अडानी ग्रुप ने किसी भी गलती से इनकार किया था। तब गुजरात सरकार ने भी कंपनी का खासा समर्थन किया था। बाद में एनडीए सरकार के आने के बाद प्रकाश जावड़ेकर ने पर्यावरण मंत्री का पद संभाला। पूरे मामले की दोबारा जांच की गई और अधिकारियों ने माना कि इस पर्यावरण को हुए नुकसान के लिए प्रोजक्ट को जिम्मेदार ठहराने के सबूत नहीं हैं।