Writer Khdija Khan
Gay Lawyer Saurabh Kirpal : सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने गुरुवार को वरिष्ठ अधिवक्ता सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की केंद्र सरकार की आपत्तियों को खारिज कर दिया था। केंद्र सरकार को आपत्ति थी कि सौरभ कृपाल समलैंगिक हैं, इसलिए केंद्र का कहना है कि समलैंगिक अधिकारों के लिए उनके ‘लगाव’ के चलते उनमें पूर्वाग्रह होने की आशंकाओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही केंद्र ने कृपाल के पार्टनर के स्विस नागरिक होने पर भी सवाल उठाए हैं।
जानिए होमोसेक्सुअलिटी पर BJP नेताओं की क्या रही है राय
11 दिसंबर 2013 को गे सेक्सुअलिटी को क्राइम के दायरे से बाहर रखने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज फाउंडेशन केस एक निर्णय आया था। गौरतलब है कि इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने 2 जुलाई 2009 के दिल्ली हाईकोर्ट के उस फैसले को पलट दिया था जिसमें हाईकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर किया था। तब इस निर्णय को बीजेपी और कांग्रेस के कई नेताओं ने गलत बताया था।
राजनाथ सिंह
15 दिसंबर, 2013 को तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह जो अब रक्षा मंत्री हैं। उन्होने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि अप्राकृतिक संबंधों को सही नहीं ठहराया जा सकता और इस पर कोर्ट का फैसला पूरी तरह से सही है।
योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी 2013 के फैसले का स्वागत किया था। उस समय लोकसभा सांसद आदित्यनाथ ने संसद के बाहर संवाददाताओं से कहा कि वह समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के किसी भी कदम के खिलाफ हैं।
पीयूष गोयल
लेकिन भाजपा के इन दो बड़े नेताओं से हटकर 2013 में एक ट्वीट में पीयूष गोयल जो अब एक केंद्रीय मंत्री हैं। उन्होने कहा था कि इन रिश्तों में कुछ भी ‘अप्राकृतिक’ नहीं है और मुझे उम्मीद है कि इस विषय की जल्द से जल्द समीक्षा/कानून में संशोधन किया जाएगा।
सुषमा स्वराज
हालांकि दिवंगत सुषमा स्वराज जैसे कुछ भाजपा नेताओं ने स्पष्ट रूप से धारा 377 पर अपनी सार्वजनिक स्थिति को स्पष्ट नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान में कहा था कि संसद इस मुद्दे पर कानून बना सकती है। सरकार एक सर्वदलीय बैठक बुला सकती है और हम सरकार के प्रस्ताव को देखने के बाद इस मुद्दे पर अपना विचार बताएंगे।
अरुण जेटली
दिवंगत अरुण जेटली ने 2015 में टाइम्स लिटफेस्ट में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत है क्योंकि इससे भारत में लाखों लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
पिछले साल नवंबर और दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मोदी सरकार से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा था। इस महीने की शुरुआत में अदालत ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के सामने लंबित समलैंगिक विवाह को वैध बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं के बैच को अपने पास ट्रांसफर कर लिया था।