एक ओर झांसी के लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार और केंद्र के बीच राजनीति रस्साकशी चल रही है। हाल ही में केंद्र ने एक वाटर ट्रेन झांसी भेजी, जिसे अखिलेश सरकार ने वापस लौटा दिया। यूपी सरकार का कहना है कि उन्होंने टैंकरों की मांग की थी, क्योंकि उनके पास पानी तो हैं, लेकिन लोगों तक उसे पहुंचाने के लिए साधन नहीं हैं।
इस मामले में सबसे अजीब बात यह थी कि जब यह ट्रेन 4 मई को झांसी पहुंची थी तब यह खाली थी। वहां पहुंचने के दो दिन बाद इसमें वहीं के स्टेशन की टंकियों से 7 लाख लीटर पानी भरा गया था।
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ट्रेन के वहां खड़े रहने पर झांसी और महोबा दोनों ही जिलों के मजिस्ट्रेट्स ने बताया था कि उनके क्षेत्र में इस ट्रेन की कोई जरूरत ही नहीं है। झांसी के मजिस्ट्रेट अजय कुमार शुक्ला ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, ‘पहली बात तो यह कि हमारी तरफ से ऐसी किसी ट्रेन के लिए आवेदन ही नहीं किया गया था। पानी की किल्लत है, पर हमें लोगों के घर तक पानी पहुंचाने के साधन चाहिए। यह काम पानी के टैंकर से ही हो सकता है। स्टेशन पर ट्रेन आने से नहीं।’
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि केंद्र की तरफ से मदद ना मिलने पर उन्होंने खुद ही लगभग 100 टैंकर का इंतजाम किया जिससे वहां के इलाकों में पानी पहुंचाया जा सके।
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9 मई की शाम सात बजे यह ट्रेन झांसी की प्यास बुझाए बिना वहां से रतलाम के लिए 570 किलोमीटर का सफर तय करने के लिए निकल गई। इसमें भरा पानी दो दिन (13 और 14 अप्रैल) में रतलाम के स्टेशन ने ही इस्तेमाल कर लिया।
वहीं, अब यह साफ नहीं हो पा रहा कि इस ट्रेन का खर्चा कौन देगा। उत्तर रेलवे के चीफ पब्लिक रिलेशन आफिसर ब्रिजेश कुमार ने कहा, ‘क्योंकि स्थानीय प्रशासन की तरफ से ना ही ट्रेन मंगाई गई और ना ही पानी का इस्तेमाल किया गया ऐसे में हम भी पक्का नहीं कह सकते की खर्चा कौन उठाएगा।’
झांसी की इस ट्रेन का फोटो लेने के दौरान फोटोजर्नलिस्ट रवि कनोजिया ने अपनी जान गंवा दी थी