8 साल की उम्र से शुरू किया, 50 लाख पेड़ लगाए, 96 की उम्र में ‘ट्री-मैन’ का निधन
सकलानी अपने पीछे चार बेटों और पांच बेटियों का परिवार छोड़ गए हैं। जिस सूरजगांव के आस-पास उन्होंने एक घना जंगल तैयार किया, वह तेजी से गायब होता जा रहा है।

विश्वेश्वर दत्त सकलानी आठ साल के थे, जब उन्होंने पहला पौधा रोपा। बाद में वह अपने भाई, फिर अपनी पत्नी की मौत का दुख सहने को पौधे रोपने लगे। शुक्रवार (18 जनवरी) को उत्तराखंड के 96 वर्षीय ‘वृक्ष मानव’ के रूप में पहचाने जाने वाले सकलानी का निधन हो गया। उनके परिवार का अनुमान है कि अपने जीवनकाल में सलकानी ने टिहरी-गढ़वाल में करीब 50 लाख पेड़ लगाए होंगे। सकलानी की दूसरी पत्नी ने उनकी इस मुहिम ने साथ दिया, अक्सर दोनों पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों को समझाते। 1986 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सकलानी को इंदिरा प्रियदर्शिनी अवार्ड से सम्मानित किया था।
राज भवन में राज्यपाल के प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में तैनात उनके बेटे संतोष स्वरूप सकलानी ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “उन्होंने करीब 10 साल पहले देखने की शक्ति खो दी थी। पौधे रोपने से धूल और कीचड़ आंखों में जाता था, जिससे उन्हें परेशानी होने लगी थी। छोटे बच्चे थे, तब से उन्होंने पौधे रोपना शुरू किया था। कलम तैयार करने का हुनर उन्होंने अपने चाचा से सीखा था।”
सकलानी अपने पीछे चार बेटों और पांच बेटियों का परिवार छोड़ गए हैं। जब उनके भाई का निधन हुआ तो वह घंटों गायब रहने लगे, इस दौरान वह पूरा दिन पौधे लगाने में बिताते थे। संतोष के अनुसार, “1958 में जब हमारी मां गुजरी, तो यह दूसरी ऐसी घटना थी जिसके बाद हमने उन्हें पेड़ों के और नजदीक पाया।” सकलानी का काम भले ही अपने जिले तक सीमित रहा हो, मगर जिस सूरजगांव के आस-पास उन्होंने एक घना जंगल तैयार किया, वह तेजी से गायब होता जा रहा है।
संतोष ने बताया, “दुर्भाग्य से, जंगल का बड़ा हिस्सा पिछले कुछ सालों में खत्म हो गया है क्योंकि लोगों को दूसरे कार्यों के लिए जगह चाहिए।” सकलानी के अंतिम संस्कार को उनके बेटे-बेटियां ऋषिकेश में जुट रहे हैं। संतोष के अनुसार, उनके पिता की आत्मा उन्हीं जंगलों में रहती है, जिन्हें बड़ा करने में उन्होंने मदद की। बकौल संतोष, “वो अक्सर कहते थे कि उनके नौ नहीं, 50 लाख बच्चे हैं। मैं अब उन्हें जंगलों में तलाशा करूंगा।”
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