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सात साल तक कम हो रहा ‘ग्राम्य जीवन’

भारत के संदर्भ में ‘अहा ग्राम्य जीवन’ की अवधारणा बड़ा भ्रम साबित होने लगी है।

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प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर। ( फोटो-इंडियन एक्‍सप्रेस)।

रोहित कुमार

अब शहरों में रहने वाले लोग सेहतमंद जिंदगी के लिए गांवों की ओर लौटने की बात शायद ही बोल पाएंगे। एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि गांवों में वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों की मार शहरों की तुलना में ज्यादा पड़ रही है। वायु प्रदूषण वह संकट है जो एक आम भारतीय के जीवन में औसतन चार साल की कटौती कर रहा है। शहरों की तुलना में गांवों में इसका कुप्रभाव ज्यादा है। ग्रामीणों की जिंदगी औसतन सात साल तक कम हो रही है।

भारत में पर्यावरण प्रबंधन की आबोहवा के बारे में बात करें तो साल 2022-23 में उलट-पुलट वाली स्थिति रही। एक तरफ तो ऊर्जा परिवर्तन को लेकर होने वाले लाभ भी उलटी दिशा में चले और दूसरी तरफ जलवायु परिवर्तन का सीधा पड़ता प्रभाव बड़े खतरे के रूप में दिखा। ये बातें विज्ञान व पर्यावरण केंद्र की निदेशक सुनीता नारायण ने संस्था की पत्रिका डाउन टू अर्थ की पर्यावरण पर सालाना रपट ‘स्टेट आफ इंडियाज एनवायरमेंट 2023’ को जारी करते हुए कहीं।

इस रपट में 2020 की आबादी का अध्ययन किया गया है। प्रदूषण पर जारी यह रिपोर्ट वायु प्रदूषण के लगातार बढ़ते खतरे को लेकर चेतावनी है। रपट कहती है कि भारतीय ग्रामीण इलाकों में रहने वाले लोगों में 25.7 फीसद लोगों की उम्र सात साल कम हो गई है। वहीं, 22.5 फीसद लोग 5 से सात साल कम जी रहे हैं। इसके अलावा 26.6 फीसद लोग तीन से पांच साल और 24.4 फीसद लोग एक से तीन साल कम जी रहे हैं। वहीं शहरी क्षेत्र की बात करें तो 17.3 फीसद लोगों की जिंदगी पांच से सात साल कम हो गई। वहीं 23.2 फीसद लोगों की जिंदगी तीन से पांच साल कम हो गई है।

जल ही जीवन है की बात करें तो यह रपट इसे लेकर भी चिंताजनक आंकड़े पेश करती है। देश में लगभग 30,000 जलाशयों का अतिक्रमण कर लिया गया है। इसके साथ ही भारत में हर दिन डेढ़ लाख टन कचरा बन रहा है जिनमें से आधे या तो निगमों की कचरा पट्टी पर डाल दिए जाते हैं या इधर-उधर फैले रहते हैं।

विज्ञान व पर्यावरण केंद्र की शोध निदेशक अनुमिता राय चौधरी का कहना है कि लगभग चार दशकों से शोध के बाद हमारी रपट इस बात का आईना है कि पर्यावरण के मसले पर अभी तक हमने क्या खोया-पाया है। जमीनी शोध की ये रपटें बताती हैं कि अभी तक हमने क्या किया है, क्या नहीं कर सके हैं और वो कौन सी राह है जहां पर हम गलत चल रहे हैं।

रपट बताती है कि पर्यावरण से जुड़े अपराध भी लगातार जारी हैं। 2021 में पर्यावरण कानून से जुड़े 64,414 मामले दर्ज किए गए हैं। पुराने मामलों को निपटाने के लिए अदालतों को रोजाना 245 मामलों पर फैसला देना होगा। मौजूदा साल में प्रचंड मौसम भी बड़ा सवाल बना रहा है। भारत में 271 दिन प्रचंड मौसम की श्रेणी में आए। रिपोर्ट का दावा है कि मौसम के उग्र रूप के कारण 2,900 लोगों की जान गई।

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First published on: 29-03-2023 at 03:34 IST
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