विजय शेखर ने बताई पेटीएम की सक्सेस स्टोरी: संडे मार्केट से पुरानी पत्रिकाएं खरीद कर पढ़ा करते थे, वहीं से आया था बिज़नेस आइडिया; 24% ब्याज पर लिया था कर्ज
शेखर का कहना है कि उनकी कंपनी के लिए नोटबंदी एक वरदान की तरह से रही। कंपनी के लिए BCCI का वह फैसला अहम रहा जिसके तहत उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम को स्पांसर करने का मौका मिला। इसके बाद पेटीएम ब्रांड बन गया।

पेटीएम के CEO विजय शेखर किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। लेकिन इस मुकाम तक पहुंचने की नींव कहां से पड़ी। शेखर बताते हैं कि इंजीनियरिंग करने के बाद वह दिल्ली की संडे मार्केट से पुरानी पत्रिकाएं खरीद कर पढ़ा करते थे, वहीं से बिज़नेस का आइडिया उनके दिमाग में आया था। अमेरिका की सिलिकॉन वैली में गैराज से जुड़े स्टार्टअप की कहानी पढ़ने के बाद उन्हें लगा कि ऐसा ही कुछ भारत में भी किया जा सकता है।
शेखर कहते हैं कि उस दौरान इंजीनियर्स में अमेरिका जाने की होड़ लगी थी। लेकिन उनका इरादा पहले देश में ही कुछ अच्छा करके पैसे कमाने का था। उसके बाद स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी जाकर आगे की शिक्षा हासिल करने की योजना थी। अलबत्ता वह इस योजना को सिरे नहीं चढ़ा सके। स्टार्टअप को लेकर काम शुरू किया तो उन्हें लगा कि भारत में बहुत कुछ है करने के लिए।
आरंभ में अपनी सेविंग्स से काम शुरू किया। एक टेलीकॉम आपरेटर को अपनी सेवा दी। उस दौरान उन्होंने टेक्नोलॉजी, काल सेंटर, कंटेंट सर्विस से जुड़े कुछ काम किए। लेकिन समय पर पैसे का कलेक्शन न कर पाने की वजह से उनके सामने पैसे का संकट होने लगा। पहले अपना पैसा खत्म हुआ और फिर दोस्तों और परिवार से मिली मदद भी कम पड़ने लगी। आखिर में उन्होंने 24% ब्याज पर 8 लाख रुपए का कर्ज लिया। इन सबके बीच एक व्यक्ति ने उनकी कंपनी में 8 लाख रुपये इनवेस्ट करके 40 फीसदी इक्विटी खरीद ली। शेखर का कहना है कि उसी दौरान उन्हें बिजनेस की समझ मिली। पैसे का इस्तेमाल कैसे किया जाए इसके गुर उन्हें उस व्यक्ति से ही पता चल सके।
शेखर बताते हैं कि 2005 में वेंचर कैपिटलिस्ट VC में निवेश करने के लिए कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं थी। 2005-10 के बीच अमेरिका के बहुत से बिजनेस मैन ने भारत के स्टार्टअप में पैसा लगाया। 2010 में भारत में टेलीकॉम बूम अपने पीक पर था। उस दौरान उन्होंने भारत को अपने सॉफ्टवेयर बिजनेस की कर्मभूमि बनाने का फैसला लिया। तभी पेटीएम की आधारशिला पड़ी। उनकी कोशिश थी कोई कंज्यूमर बेस ब्रांड बनाएं। गहन मंथन के बाद पेटीएम की योजना को अमली जामा पहनाया जा सका।
कंपनी को इस मुकाम तक पहुंचाने का आइडिया उन्हें फ्लिपकार्ट से मिला। उसे देखकर उन्हें लगा कि वह भी भारत में अरबों डॉलर का इंतजाम कर सकते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी कंपनी ONE97 की ई-मेल के बजाए पेटीएम के बिजनेस कार्ड का इस्तेमाल शुरू किया। लेकिन जब उन्होंने अपनी योजना कंपनी के बोर्ड के सामने रखी तो एक पार्टनर ने अंदेशा जताया कि भारत के लोगों की आदत को बदलना मुश्किल है। यहां लोग इंटरनेट और कार्ड पेमेंट के बजाए कैश में लेनदेन को ज्यादा तरजीह देते हैं।
शेखर का कहना है कि तब उन्होंने बोर्ड से कहा कि अगर भारत को 5 ट्रिलियन का अर्थव्यवस्था बनना है तो लोगों को स्मार्टफोन के जरिए पेमेंट करने का तरीका सीखना पड़ेगा। बोर्ड उनकी दलीलों से सहमत हुआ और उन्हें 5 करोड़ रुपए मिल गए। यहीं से पेटीएम का जन्म हुआ। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। शेखर का कहना है कि उनकी कंपनी के लिए नोटबंदी एक वरदान की तरह से रही। इस दौरान लोगों ने डिजीटल पेमेंट को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। कोरोना काल में भी कंपनी को काफी लाभ मिला, लेकिन कंपनी के लिए सबसे अच्छा BCCI का वह फैसला रहा जिसके तहत उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम को स्पांसर करने का मौका मिला। इसके बाद पेटीएम ब्रांड बन गया।