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Assembly Elections Result 2023: त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड विधानसभा चुनाव नतीजे BJP के लिए राहत- कांग्रेस की आफत, जानिए टॉप 5 मैसेज

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के पूर्वोत्तर राज्यों पर बढ़ाया गया फोकस बीजेपी को राजनीतिक फायदा दे रहा है। पीएम मोदी ने पिछले नौ वर्षों में 50 से अधिक बार पूर्वोत्तर के राज्यों का दौरा किया है।

BJP | North-East | Election 2023
त्रिपुरा, नागालैंड में भाजपा की जीत के बाद जश्न मनाते कार्यकर्ता। (पीटीआई फोटो)

लोकसभा चुनाव से एक साल पहले 2023 की शुरुआत में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में विधानसभा चुनाव के नतीजे ने राजनीतिक दलों के अलावा देश को भी कई संदेश दिया है। दो मार्च को सामने पूर्वोत्तर के तीनों राज्यों के चुनावी नतीजे से केंद्र में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेता कार्यकर्ता जोश में भर कर जश्न मना रहे है। वहीं विपक्षी दलों के लिए अपनी रणनीति पर फिर से विचार करने और कमियों को दूर करने का समय आ गया है।

इस साल इन राज्यों में होने वाला है विधानसभा चुनाव

साल 2023 में उत्तर भारत के तीन प्रमुख हिंदी भाषी राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण के कर्नाटक और तेलंगाना में भी विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। लोकसभा चुनाव से पहले इन राज्यों के चुनाव को भी पूर्वोत्तर से मिला राजनीतिक संदेश प्रभावित कर सकता है। आइए जानते हैं कि त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड विधानसभा चुनाव से इस साल चुनाव का सामना करने वाले राज्यों और देश की सियासत को कौन से पांच प्रमुख संदेश मिले हैं।

बढ़ता जा रहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘मैजिक’

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भाजपा के लिए जश्न मनाने का मौका लेकर आए। लोकसभा चुनाव की तैयारी में लगे भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं के लिए जोश बढ़ाने के साथ ही नतीजे का सबसे बड़ा संदेश यह है कि देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मैजिक बढ़ रहा है। क्योंकि पूर्वोत्तर के पर्वतीय इलाकों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ठीकठाक दखल होने के बावजूद राजनीतिक तौर भाजपा चुनावी बिसात पर काफी पीछे रहती थी। पीएम मोदी के आने के बाद पूर्वोत्तर में भाजपा को जड़े जमाने और प्रभाव बढ़ाने का बड़ा मौका मिला है।

बीते लगभग नौ साल में पीएम मोदी ने पूर्वोत्तर राज्यों के 50 से अधिक बार दौरा किया है। उनके लुक ईस्ट पॉलिसी के तहत किए गए काम ने भी इन राज्यों में उनके प्रशंसकों की संख्या को कई गुणा बढ़ा दिया है। पीएम मोदी ने केंद्र में पूर्वोत्तर के विकास के लिए एक स्वतंत्र मंत्रालय ही गठित कर दिया था। पहले असम में बहुमत की सरकार, फिर त्रिपुरा में 25 साल से जमे वामपंथी शासन को उखाड़ना और बाद में दोबारा सत्ता में वापस आना और अन्य राज्यों में भाजपा का गठबंधन के जरिए सत्ता में आना इसका बड़ा उदाहरण है।

कांग्रेस पर सत्ता से दूरी का साफ असर, कम हो रहा जनाधार

केंद्र और दूसरे कई राज्यों की तरह पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में भी कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता दिखा। त्रिपुरा में कांग्रेस के वोट बैंक पर क्षेत्रीय पार्टी टिपरा मोथा ने कब्जा कर लिया। लेफ्ट से गठबंधन भी उसके कोई काम नहीं आया। वहीं, मेघालय में पहील बार चुनाव लड़ रही तृणमूल कांग्रेस ने उसके मतदाताओं को अपने पाले में कर लिया। नागालैंड में भी कांग्रेस को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। तीनों राज्यों की कुल 180 विधानसभा सीटों में कांग्रेस को महज 8 सीटों से संतोष करना पड़ा। कभी कांग्रेस के कोर वोटर रहा जनजातीय समाज उससे दूर हो गया। तीनों राज्य के चुनावी नतीजे पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बयान में ‘छोटे राज्यों’ या ‘सत्ता से नजदीकी’ जैसे जुमले सामने आए। कांग्रेस के लिए ये नतीजे बड़ा सियासी संदेश है। क्योंकि आगामी चुनावी राज्यों में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है।

देश की राजनीति में अप्रांसगिक हो रहे वामपंथी दल

स्वतंत्रता के बाद देश में सत्तासीन कांग्रेस विरोध की राजनीति के लिए मशहूर वामपंथी दल कई बार बंटने के बाद अब देश की राजनीति में अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। पश्चिम बंगाल के बाग पूर्वोत्तर में भी अपना गढ़ त्रिपुरा गवां चुकी माकपा तमाम कोशिशों के बावजूद सत्ता में वापसी नहीं कर पाई। लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन का समझौता भी काम नहीं आया। केरल को छोड़कर देश के तमाम राज्यों में लेफ्ट पार्टीज की हालत संभलती नहीं दिख रही है। उनके लिए पूर्वोत्तर के नतीजे राजनीतिक सिद्धांतों और चुनावी रणनीतियों पर दोबारा सोचने का मौके जैसा है।

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स्थानीय मुद्दे और जनजातीय वोट ने बढ़ाई भाजपा की परेशानी

जोश और जश्न के बीच भारतीय जनता पार्टी के लिए पूर्वोत्तर के तीन राज्यों के चुनावी नतीजे ने चिंता की लकीरें भी बढ़ाई हैं। त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड में स्थानीय मुद्दे और जनजातीय समाज के वोट को लेकर भाजपा परेशान है। त्रिपुरा में सीटें घटीं। आदिवासी वोट बैंक को लुभाने की कोशिश रंग नहीं ला सकी और टिपरा मोथा का सिक्का चमका। मेघालय में अकेले लड़ने पर सीटें नहीं बढ़ पाईं और नागालैंड में गठबंधन के बावजूद कमोबेश यही हाल रहा। केंद्र की मोदी सरकार के आदिवासी समुदाय के लिए किए गए योजनाएं, पहल और काम के साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की दुहाई भी बड़ा असर नहीं दिखा पाई। लोकसभा चुनाव और उससे पहले के सभी विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों और आदिवासी वोट बैंक को लेकर भाजपा के सामने बड़ी चुनौती से पार पाने का संदेश मिला है।

उपचुनावों में ‘एंटी एस्टिब्लिसमेंट’ रहा नतीजे का संदेश

पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के साथ ही दो मार्च को पांच राज्यों की छह विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी सामने आए। ये नतीजे अधिकतर राज्यों में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ रहे। उम्मीदों के उलट सत्तारूढ़ पार्टी ने अपनी सीट गंवाई। झारखंड में जेएमएम-कांग्रेस, महाराष्ट्र में बीजेपी-शिंदे शिवसेना गुट और पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने अपनी सीट गंवा दी। वहीं, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में विपक्ष की पार्टी कांग्रेस की जीत ने उसकी उम्मीदें बढ़ाई है।

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First published on: 03-03-2023 at 13:43 IST
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