संसद में विभिन्न मुद्दों पर सरकार से अलग राय रखने वाला विपक्ष कम से कम एक मुद्दे पर साथ दिखा। किशोर न्याय अधिनियम में सरकार ने बदलाव लाने के लिए संशोधन विधेयक रखा और वह राज्यसभा से पारित हो गया। किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख एवं संरक्षण) संशोधन विधेयक- 2021 या जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन आॅफ चिल्ड्रेन) अमेंडमेंट बिल के जरिए दो बड़े बदलावों ी तैयारी है। एक तो बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया आसान बनाई जा रही है। दूसरा बदलाव ऐसे अपराधों के मामलों में है, जिसमें किशोर आरोपी के लिए न्यूनतम सजा तय नहीं है। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 में प्रस्तावित इस तरह के बदलावों का लोकसभा में विपक्ष ने भी समर्थन किया था। राज्यसभा में विपक्ष के पेगासस मामले पर हंगामे के बीच ये बिल पास हुआ।
क्या है कानून
दिल्ली के निर्भया हत्याकांड सरकार पर चौतरफा दबाव पड़ा और 2015 में किशोर न्याय अधिनियम (जुवेनाइल जस्टिस एक्ट) आया। इसमें जघन्य अपराध के मामलों में 16 से 18 साल के बीच के किशोर आरोपियों पर वयस्कों की तरह मुकदमा चलाने का प्रावधान शामिल किया गया। इस अधिनियम ने 2000 के किशोर अपराध कानून और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण अधिनियम) की जगह ली। इस कानून में दूसरा बड़ा बदलाव बच्चों के गोद लेने से जुड़ा था।
दुनिया भर में गोद लेने को लेकर जिस तरह के कानून हैं वैसे ही देश में भी लागू हुए। पहले गोद लेने के लिए ‘हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट (1956)’ और मुस्लिमों के लिए ‘गार्जियंस आॅफ वार्ड एक्ट (1890)’ का चलन था। हालांकि, नए कानून ने पुराने कानूनों की जगह नहीं ली थी। इस कानून ने अनाथ, छोड़े गए बच्चों और किसी महामारी का शिकार हुए बच्चों के गोद लेने की प्रक्रिया को आसान किया।
बदलाव क्या-क्या
कानून में पहला बदलाव बच्चों के गोद लेने से जुड़ा है। दूसरा बदलाव ऐसे अपराधों से जुड़ा है जिसमें भारतीय दंड विधान में न्यूनतम सजा तय नहीं है। 2015 में पहली बार अपराधों को तीन श्रेणियों में बांटा गया- छोटे, गंभीर और जघन्य अपराध। लेकिन तब ऐसे मामलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है। संशोधन प्रस्तावों के कानून बन जाने पर किशोर अपराधों से जुड़े मामले तेजी से निपटेंगे, साथ ही जवाबदेही भी तय होगी। मौजूदा व्यवस्था में गोद लेने की प्रक्रिया अदालत के जरिए होती थी।
इसकी वजह से इस प्रक्रिया में कई बार लंबा समय लग जाता था। अब जिले के डीएम, एडीएम को इसके लिए अधिकृत किया गया है।
ये अधिकारी जिले में काम कर रहीं एजंसियों के कामकाज की समीक्षा करेंगे। इनमें ‘चाइल्ड वेलफेयर कमेटी’, ‘जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड’, ‘डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट्स’ और ‘स्पेशल जुवेनाइल प्रोटेक्शन यूनिट’ शामिल हैं।
बदलाव की जरूरत क्यों
बाल अधिकार सुरक्षा पर राष्ट्रीय आयोग (एनसीपीसीआर) ने देश भर के बाल संरक्षण गृहों का आॅडिट कर वर्ष 2020 में रिपोर्ट दी थी। 2018-19 में हुए इस आॅडिट में सात हजार से ज्यादा बाल संरक्षण संस्थानों का सर्वे किया गया। इसमें पाया गया कि 90 फीसद संस्थानों को एनजीओ चलाते हैं। इनमें 1.5 फीसद ऐसे हैं जो कानून के हिसाब से काम नहीं कर रहे थे। 29 फीसद के प्रबंधन में कमियां थीं।
2015 में नया कानून आने के बाद भी 39 फीसद एनजीओ रजिस्टर तक नहीं रखते थे। सिर्फ लड़कियों के लिए बने एनजीओ 20 फीसद से भी कम थे। देश में एक भी एनजीओ ऐसा नहीं पाया गया, जो 2015 के कानून का सौ फीसद पालन करता हो। सर्वे में पाया गया कि कई एनजीओ में सफाई तक की बेहतर व्यवस्था नहीं थी। इनमें कई ऐसी संस्थाएं भी थीं, जिन्हें विदेशों से धन मिल रहा था। रिपोर्ट मिलने के बाद बाल विकास मंत्रालय ने कई बाल कल्याण संस्थानों को बंद कर दिया। करीब पांच सौ गैरकानूनी संस्थान बंद किए गए। अब जिलाधिकारी ऐसे संस्थानों को लाइसेंस देंगे और उनकी ग ितविधियों की समीक्षा करेंगे।
बाल अपराधों को लेकर बदलाव
2015 के कानून में बाल अपराध को तीन श्रेणियों में बांटा गया- जघन्य अपराध, गंभीर अपराध और छोटे अपराध। इसके लिए भारतीय दंड सहिंता में किस अपराध के लिए वयस्कों को कितनी सजा है, इसे आधार बनाया गया। ऐसे किशोर, जिन पर जघन्य अपराध का आरोप है और उनकी उम्र 16 से 18 साल के बीच है तो उन पर वयस्कों की तरह केस चलेगा। जघन्य, गंभीर अपराधों को पहली बार श्रेणीबद्ध किया गया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि किस मामले में किशोर पर वयस्क जैसे केस चलें, किस पर नहीं। 2015 के इस कानून में ऐसे मामलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया था जिनमें न्यूनतम सजा तय नहीं है। नए विधेयक में इस तरह के अपराधों को गंभीर अपराधों में शामिल किया गया है। गिरफ्तारी के लिए वांरट जरूरी होगा।
क्या कहते हैं जानकार
संशोधित बिल से बच्चों की सुरक्षा और मजबूत होगी। जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड उन बच्चों से पूछताछ कर सकता है जिनपर गंभीर अपराध के आरोप हैं। गंभीर अपराधों में वे अपराध भी शामिल होंगे, जिनके लिए अधिकतम सजा सात साल से अधिक की कैद है और न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है या सात साल से कम है।
–नीलिमा मेहता, प्रोफेसर एवं बाल अधिकार कार्यकर्ता,मुंबई
यह कानून उन बच्चों से संबंधित है जिन्होने कानूनन अपराध किया हो और वे बच्चे जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता हो। इस एक्ट को बच्चों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीआरसी) का पालन करने के लिए लाया गया था जिसको 1992 में भारत ने माना था। इससे सार्थक बदलाव होगा।
– तनिष्ठा दत्ता, बाल संरक्षण विशेषज्ञ, यूनिसेफ-इंडिया