विधात्री राव
सूरत की एक अदालत द्वारा आपराधिक मानहानि का दोषी ठहराए जाने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता पर खतरा मंडा रहा है। अगर उन्होंने 10 साल पहले मनमोहन सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को ना फाड़ा होता, तो उनकी सदस्यता पर आज संकट नहीं होता। जनप्रतिनिधि कानून के मुताबिक, अगर सांसदों और विधायकों को किसी भी मामले में 2 साल या उससे अधिक समय की सजा होती है, तो उनकी संसद या विधानसभा की सदस्यता रद्द हो जाएगी। इसके अलावा, सजा पूरी होने के बाद भी उन्हें 6 साल तक चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है।
साल 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने एक अध्यादेश पारित किया था। उसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि दोषी पाए जाने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी जाएगी। इस आदेश को निष्क्रिय करने के मकसद से यूपीए सरकार ने यह अध्यादेश पारित किया था, जिसके विरोध में भाजपा और लेफ्ट समेत कई पार्टियों ने कांग्रेस पर जमकर हमला बोला था।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि “कोई भी सांसद, विधायक या एमएलसी जिसे किसी अपराध का दोषी ठहराया जाता है और न्यूनतम 2 साल की जेल दी जाती है, तो उसकी तत्काल प्रभाव से सदस्यता खत्म हो जाएगी।” दो महीने बाद, यूपीए सरकार ने आदेश को नकारने के लिए एक अध्यादेश पारित किया। इसे चारा घोटाला मामले में दोषी साबित होने पर राजद सुप्रीमो और कांग्रेस के सहयोगी लालू प्रसाद को अयोग्यता से बचाने के कदम के रूप में देखा गया था।
भाजपा और वाम दलों सहित उस समय के विपक्ष ने अध्यादेश को लेकर मनमोहन सिंह सरकार और कांग्रेस की कड़ी आलोचना की थी और दोषी सांसदों को बचाने का आरोप लगाया। अध्यादेश पारित होने के कुछ दिनों बाद, 27 सितंबर को, राहुल गांधी ने दिल्ली में पार्टी के एक प्रेस कार्यक्रम में सार्वजनिक रूप से यूपीए सरकार को अध्यादेश पर फटकार लगाई थी और इसे पूरी तरह से बकवास बताया था और कहा कि इसे फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने कहा, “मैं आपको बता रहा हूं कि आंतरिक रूप से क्या हो रहा है। हमें राजनीतिक विचारों के कारण ऐसा (अध्यादेश लाने) की आवश्यकता है। हर कोई ऐसा करता है। कांग्रेस पार्टी ऐसा करती है, बीजेपी ऐसा करती है, जनता दल ऐसा करती है, समाजवादी पार्टी ऐसा करती है और हर कोई ऐसा करता है और अब इसे रोकने का समय आ गया है।” उन्होंने कहा, “मुझे वास्तव में लगता है कि हमें इस प्रकार के समझौते करना बंद कर देना चाहिए क्योंकि अगर हम वास्तव में इस देश में भ्रष्टाचार से लड़ना चाहते हैं हम इन छोटे-छोटे समझौतों को जारी नहीं रख सकते हैं… मुझे दिलचस्पी है कि कांग्रेस पार्टी क्या कर रही है, मुझे दिलचस्पी है कि हमारी सरकार क्या कर रही है और मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है, जहां तक इस अध्यादेश का संबंध है, हमारी सरकार ने जो किया है वह गलत है ।”
जिस समय की यह घटना थी उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका की आधिकारिक यात्रा पर थे। 2 अक्टूबर को लौटने के बाद, मनमोहन सिंह ने कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक से पहले राहुल गांधी से मुलाकात की, जहां यह निर्णय लिया गया कि सरकार के लिए अध्यादेश वापस लेना बेहतर होगा। अगले दिन, सरकार ने अध्यादेश वापस ले लिया।