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15 दिनों के भीतर सरेंडर करें… कोविड-19 महामारी के दौरान रिहा सभी कैदियों को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान रिहा किए गए विचाराधीन कैदी आत्मसमर्पण के बाद सक्षम अदालतों के समक्ष नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं।

Supreme Court | Bilkis Bano
सुप्रीम कोर्ट (सांकेतिक फोटो)

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) के दौरान रिहा किए गए सभी दोषियों और विचाराधीन कैदियों को 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण (Surrender) करने का निर्देश दिया है। अदालत ने सभी दोषियों और विचाराधीन कैदियों को आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया गया है। अपने निर्देश में अदालत ने कहा है कि कोविड महामारी के दौरान रिहा किए गए विचाराधीन कैदी आत्मसमर्पण के बाद सक्षम अदालतों के समक्ष नियमित जमानत (Regular Bail) के लिए आवेदन कर सकते हैं।

दो सदस्यीय बेंच ने कहा- नियमित जमानत की प्रक्रिया अपनाएं

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा कि जिन विचाराधीन कैदियों को कोविड-19 महामारी के दौरान आपातकालीन जमानत ((Emergency Parole Scheme)) पर रिहा किया गया था वे अपने आत्मसमर्पण के बाद सक्षम अदालतों के समक्ष नियमित जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। बेंच ने कहा कि रिहा किए गए सभी दोषी अपने आत्मसमर्पण के बाद अपनी सजा को निलंबित करने के लिए सक्षम अदालतों में जा सकते हैं।

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जेलों में भीड़ कम करने के लिए रिहा किए गए थे कैदी

कोविड -19 महामारी के दौरान जेलों में भीड़ कम करने के प्रयास में कई दोषियों और विचाराधीन कैदियों को रिहा किया गया। इनमें ज्यादातर गैर-संगीन अपराधों (Non-Henious Crime) के लिए बुक किए गए थे। विभिन्न राज्यों में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (High Power Pannel) की सिफारिशों पर यह कदम उठाया गया था। कई राज्यों में जेल से रिहा किए गए कैदियों के फरार होने और वापस नहीं आने की घटनाएं सामने आने के बाद पुलिस को नोटिस भी भेजना पड़ा था। कई कैदियों के लापता होने की खबर भी सामने आई थी।

इन कैदियों को रिहाई स्कीम से बाहर रखा गया था

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार गठित उच्चाधिकार प्राप्त समिति (High Power Pannel) की सिफारिशों के बाद विभिन्न राज्य सरकारों ने बढ़ते कोविड-19 मामलों के मद्देनजर जेलों में भीड़ कम करने का फैसला किया यूएपीए, एनएसए, मकोका, पीएमएलए, एमपीआईडी, टाडा, आर्थिक धोखाधड़ी, बैंकिंग घोटाले, बलात्कार जैसे कड़े कानूनों के तहत मामलों का सामना करने वाले कैदियों को इस अस्थायी राहत से बाहर रखा था। गया। इसके अलावा संगठित अपराध सिंडिकेट के तहत गिरफ्तार किसी आरोपी को भी आपातकालीन पैरोल योजना (Emergency Parole Scheme) के तहत नहीं लाया गया था।

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First published on: 24-03-2023 at 13:34 IST
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