उन्होंने अपने पद की शपथ इसी एक जनवरी को ली। भारत से अमेरिका जाने के महज पांच साल के भीतर उन्होंने यह उपलब्धि हासिल की है। केरल के रहने वाले पट्टेल ने अपने हाई स्कूल की पढ़ाई के दिनों में बीड़ी बनाने का काम किया। तीन वक्त का भोजन जुटाना उनके परिवार के लिए चुनौती थी। तंगहाली के बीच पहले वे केरल में वकील बने, फिर सुप्रीम कोर्ट में वकालत की। उसके बाद अमेरिका चले गए।
पट्टेल आठवीं कक्षा में थे जब उनकी बहन का देहांत हो गया। उनकी 15 महीने की बेटी थी। उनकी बहन तीन भाई और तीन बहनों में सबसे बड़ी संतान थीं। इनके निरक्षर मां-बाप केरल के कासरगोड जिले में दिहाड़ी मजदूरी करते थे। पट्टेल बताते हैं, बीड़ी बनाने के काम में काफी कम मजदूरी मिलती थी। मैं और मेरी बड़ी बहन देर रात तक बैठे-बैठे बीड़ी बनाते थे। मैंने अपना हाई स्कूल पास किया था, लेकिन अच्छे अंक नहीं आए। मैंने पढ़ाई छोड़ दी।
कुछ अरसे बाद प्री-डिग्री पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। रात में काम करते हुए और सप्ताह के आखिरी दिनों में खेतों में मजदूरी करते हुए पढ़ाई की। पहले साल कम उपस्थिति के चलते उन्हें परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी गई। बाद में शिक्षकों ने उनके घर की हालत का पता चलने पर अनुमति दे दी। नतीजे आए तो पता चला कि वे शीर्ष दो छात्रों में शामिल थे। उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने एक होटल में नौकरी कर ली।
कानून की डिग्री हासिल करने से पहले पट्टेल ने 1992 में राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की।चार साल बाद वकालत करने के लिए वे होसदुर्ग में पी अप्पुकुट्टन की टीम में शामिल हो गए। पट्टेल ने एक दशक तक अप्पुकुट्टन के साथ काम किया लेकिन जब उनकी पत्नी सुभा को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में नौकरी मिल गई तो वे उनके साथ दिल्ली आए गए। पट्टेल नहीं चाहते थे कि अपनी पत्नी के करियर की राह में वे रोड़ा बनें।
दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने उनके एक दशक लंबे अनुभव को देखते हुए अपना जूनियर नियुक्त करने से इनकार कर दिया लेकिन उन्हें अपने चैंबर से थोड़े समय तक काम करने की अनुमति दे दी। एक साल के अंदर ही पट्टेल की पत्नी को अमेरिका में नौकरी मिल गई। वे उनके साथ अमेरिका पहुंच गए। वर्ष 2007 में ह्यूस्टन, टेक्सास पहुंचने के बाद पट्टेल ने एक किराने की दुकान में काम किया।
उन्हें पता चला कि सिर्फ सात साल के अनुभव के साथ वह टेक्सास प्रांत में बार में प्रवेश के लिए परीक्षा दे सकते हैं। इसके बाद ही उन्होंने इंटरनेशनल ला में एलएलएम का कोर्स किया। भारत और अमेरिका दोनों ब्रिटिश राष्ट्रमंडल कानून का पालन करते हैं। बुनियादी बातें एक समान हैं और कानून को समझना मुश्किल नहीं है। पट्टेल 2017 में वहां के नागरिक बने और अब 2022 में महज पांच साल बाद चुनाव जीता।
पट्टेल जिस काउंटी में जज के रूप में चुने गए हैं, वहां 35 फीसद आबादी गोरों की है। 25 फीसद काले लोग हैं। 24 फीसद लोग स्पेनी मूल के हैं। केवल 20 फीसद एशियाई हैं। वे कहते हैं, यह विविधतापूर्ण देश है और अधिकांश लोग एक भारतीय मूल के अमेरिकी को डिस्ट्रिक्ट जज के रूप में स्वीकार करते हैं।