सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य बनाने की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है। न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्न की पीठ ने सालिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा यह सूचित करने के बाद यह आदेश पारित किया कि पुरी में गोवर्धन मठ के शंकराचार्य ने एक हलफनामा दायर किया है। जिसमें अविमुक्तेश्वरानंद की ज्योतिष पीठ के नए शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति का समर्थन नहीं किया गया है। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती की मृत्यु के बाद उनका नाम लेकर अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने खुद को उनका उतराधिकारी और ज्योतिष पीठ का शंकराचार्य घोषित कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है और अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य बनाने पर रोक लगा दी है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने दिवंगत शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारा ज्योतिष पीठ के उत्तराधिकारी के रूप में उन्हें नियुक्त किए जाने का झूठा दावा किया है। यह मामला 2020 से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
याचिका में कहा गया है कि यह सुनिश्चित करने का एक जानबूझकर प्रयास किया गया है कि इस अदालत के समक्ष कार्यवाही निष्फल हो जाए। साथ ही एक व्यक्ति जो योग्य नहीं है और अपात्र है, अनधिकृत रूप से पद ग्रहण कर सके।
याचिका में फरियाद की गई थी कि इस तरह के प्रयासों को अदालत के अंतरिम आदेश से रोकने की जरूरत है। यह दिखाने के लिए आवश्यक दस्तावेज दाखिल किए जा रहे हैं कि नए शंकराचार्य की नियुक्ति पूरी तरह से झूठी है। यह नियुक्ति की स्वीकृत प्रक्रिया का पूर्ण उल्लंघन है।
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने संतों से पट्टाभिषेक में भाग नहीं लेने को कहा
उधर, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी ने संतों से शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक में हिस्सा नहीं लेने की अपील करते हुए शनिवार को कहा कि इस तरह का कृत्य अदालत की अवमानना होगी। दरअसल, उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड में ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य के रूप में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी है।