Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें एक साथ दो लोकसभा सीट या विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ने के नियम को चुनौती दी गई थी। मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की अनुमति देने से नेता अखिल भारतीय नेता बनने में सक्षम होंगे। याचिका में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 33 (7) की संवैधानिकता को चुनौती दी गई थी।
मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ ने पूछा, इसमें गलत क्या है?
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि कि कानून बनाना संसद का काम है। भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका में जन प्रतिनिधित्व कानून अधिनियम की धारा-33 (7) को चुनौती दी गयी थी। जिसके तहत प्रावधान है कि एक उम्मीदवार 2 सीटों से चुनाव लड़ सकता है। वहीं धारा-70 कहती है कि 2 सीटों से चुनाव लड़ने के बाद अगर उम्मीदवार दोनों सीटों पर विजयी रहता है तो उसे 1 सीट से इस्तीफा देना होगा क्योंकि वो 1 सीट ही अपने पास रख सकता है।
यह सभी राजनीतिक फैसले
लाइव लॉ के मुताबिक पीठ ने आदेश में कहा कि एक उम्मीदवार को एक से अधिक सीट के लिए चुनाव लड़ने की अनुमति देना विधायी नीति का मामला है क्योंकि यह संसद की इच्छा पर है कि वो राजनीतिक लोकतंत्र को इस तरह का विकल्प देना चाहता है या नहीं। सीजेआई ने कहा कि इसे देखने का एक और तरीका है।
एक नेता कह सकता है कि मैं अपना अखिल भारत स्थापित करना चाहता हूं और यह दिखाना चाहता हूं कि मैं पश्चिम, पूर्व, उत्तर, दक्षिण से खड़ा हो सकता हूं। ये सभी राजनीतिक फैसले हैं और आखिरकार मतदाता तय करेंगे। कोर्ट ने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है।